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चिड़ावा। गौर ए गणगौर माता खोल किवाड़ी : होलिका की राख से गणगौर पूजन शुरू

चिड़ावा।संजय दाधीच

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होली  त्यौहार के साथ ही अब …गौर ए गणगौर माता खोल किवाड़ी….बाहर ऊबी थारी पूजन वारी…जैसे गणगौरी गीतों की गूंज भी शुरू हो गई है। गणगौर एक ऐसा पर्व है जिसे कुंवारी कन्या व विवाहिता दोनों ही विधि-विधान से करती हैं। गणगौर पूजन में भगवान शिव व माता गौरा का पूजन होता है। सुहागिनें सोलह श्रृंगार कर पूरे सोलह दिन विधि-विधान से पूजन करती हैं। यह मुख्यत: मारवाड़ी समाज की महिला व युवतियां करती हैं। मारवाड़ी महिलाएं सोलह दिनों तक गणगौर पूजती है। इसमें मुख्य रूप से विवाहित कन्या शादी के बाद की पहली होली पर अपने माता-पिता के घर या सुसराल में सोलह दिन की गणगौर बिठाती है। अपने साथ सोलह कुंवारी कन्याओं को भी पूजन के लिये पूजा की सुपारी देकर निमंत्रण देती हैं। सोलह दिन गणगौर धूम-धाम से मनाया जाएगा। गणगौर पूजन में होलिका दहन की राख महत्वपूर्ण होती है। फाल्गुन पूर्णिमा जिस दिन होलिका दहन होता है , उसके दूसरे दिन पड़वा यानी कि जिस दिन रंगों से होली खेली जाती है उस दिन से गणगौर की पूजा शुरू होती है। शहर में जगह-जगह ससुराल से पीहर में आकर गणगौर पूजन में नव विवाहिताएं जुटी हैं। उनके मोहल्ले की कुंवारी लड़कियां भी उनके साथ पूजन में शामिल हो रही हैं। शीतला पूजन के बाद कुण्डारे में माटी से गणगौर बनाकर विराजी जाएगी।

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