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देश की दूसरी सबसे बड़ी लोकसभा सीट पर जाट-राजपूत मतदाताओं का वर्चस्व रहा है, इस बार मुकाबला कड़ा होने की उम्मीद

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लोकसभा चुनाव से पहले हुए विधानसभा चुनाव को सेमीफाइनल की तरह देखा जा रहा है. इन सेमीफाइनल में भाजपा ने उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन कर कांग्रेस को तीन राज्यों में पटकनी दी और कांग्रेस को एक बार फिर हार का स्वाद चखना पड़ा. भाजपा एक बार फिर फ्रंट फुट पर आकर खेलने की तैयारी कर रही है. वहीं कांग्रेसी कार्यकर्ता भी अब हार का बदला लेना चाहते हैं. लेकिन कहीं ना कहीं कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में मायूसी भी है, क्योंकि विधानसभा चुनाव में बहुत सी सीटों पर कांग्रेस हार गई है. बाड़मेर लोकसभा सीट पर भाजपा और कांग्रेस दोनों की राह आसान नहीं है. क्योंकि यहां सबसे बड़ा फैक्टर जाट नेताओं का दबदबा रहा है. बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा क्षेत्र के तहत कुल 8 विधानसभा सीटें आती हैं. इसमें बाड़मेर जिले की बाड़मेर, शिव, बायतू, पचपदरा, सिवाना, गुढ़ामलानी और चौहटन सीटें शामिल हैं. इसके अलावा जैसलमेर विधानसभा सीट भी इसी संसदीय सीट के तहत आती है. जाट लॉबी के भारी दबाव के बावजूद पिछली बार कांग्रेस ने इस सीट से जसवंत सिंह के पुत्र मानवेंद्र सिंह को मैदान में उतारा है, जिसके चलते जाट वोटर्स भाजपा में शिफ्ट हो गए. वहीं भाजपा से वर्तमान में सांसद कैलाश चौधरी को कहीं न कहीं इस बार भी केंद्रीय नेतृत्व से हरी झंडी मिल गई है. चौधरी लगातार लोकसभा क्षेत्र में घूम रहे हैं. वहीं कांग्रेस के पास इस बार कोई ऐसा चेहरा अब तक नजर नहीं आ रहा है, जो मोदी के क्रेज के बीच यहां जीत सके. 2014 में कर्नल सोनाराम चौधरी और 2019 में कैलाश चौधरी भाजपा से जीतकर संसद पहुंचे थे.

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पिछली बार कांग्रेस ने मानवेन्द्र पर जताया था भरोसा 

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2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने नया फार्मूला भी अपनाया था, लेकिन वो फ्लॉप हो गया. कांग्रेस ने भाजपा से बागी हुए मानवेन्द्र सिंह पर भरोसा जताया था, लेकिन मानवेन्द्र हार गए. वहीं भाजपा ने लोकसभा चुनाव में भाजपा ने जाट चेहरे पर दाव खेलते हुए कैलाश चौधरी को मैदान में उतारा था. आपको बता दें कि 2004 का चुनाव मानवेन्द्र सिंह ने इसी सीट से जीता था और सबसे अधिक मतों से जीतने का रिकॉर्ड भी बनाया था.

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विधानसभा की 8 सीटों पर यह रहा जीत का गणित 

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बाड़मेर जैसलमेर लोकसभा सीट में शामिल 8 विधानसभाओं में से 5 पर भाजपा, 1 पर कांग्रेस और 2 पर निर्दलीयों का कब्जा है. जिसमें से बाड़मेर और शिव विधानसभा सीट पर निर्दलीय प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की. वहीं जैसलमेर, पचपदरा, गुड़ामालानी, चौहटन और सिवाना सीट पर भाजपा विजयी हुई, जबकि कांग्रेस को सिर्फ बायतु सीट पर जीत मिल सकी.

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9 बार कांग्रेस, 3 बार भाजपा जीती, पांच बार जीते अन्य 

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पश्चिमी राजस्थान के भारत पाक सीमा के बाड़मेर लोकसभा सीट से 1952 से अब तक 71 साल में 17 लोकसभा चुनाव हो चुके है. दोनों जिलों की जनता ने अब तक अपने 17 सांसद चुनकर संसद में भेजे हैं, जिसमें से 6 नए चेहरे और 11 जाने-पहचाने चेहरे शामिल रह. तीन ऐसे सांसद भी रहे, जिन्हें जनता ने दूसरी बार मौका दिया. वहीं लगातार तीन बार सांसद बनने का रिकॉर्ड कर्नल सोनाराम चौधरी के नाम दर्ज है. वे चौथी बार 2014 में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े और सांसद चुने गए. इस सीट पर 71 साल में केंद्र में केवल दो लोग ही मंत्री बने. अब तक चुने गए 17 सांसदों में से कल्याण सिंह कालवी केंद्र सरकार में ऊर्जा मंत्री बने. वहीं पिछले 2019 के चुनाव में भाजपा से जीतकर संसद पहुंचे कैलाश चौधरी को केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री बनाया. इसके अलावा किसी सांसद को मंत्री बनने का मौका नहीं मिला.

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यह है जातिगत समीकरण 

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क्षेत्रफल के हिसाब से रेगिस्तानी राज्य की सबसे बड़ी संसदीय सीट बाड़मेर पर लगभग 18.5 लाख वोटर्स हैं. इस सीट पर जाटों के साथ राजपूतों का भी दबदबा है, जिनमें क्रमश: 4 लाख और 2.7 लाख मतदाता हैं. साथ ही करीब 2.5 लाख मुस्लिम मतदाता हैं, जबकि 4 लाख मतदाता अनुसूचित जाति के हैं.वहीं 5 लाख के करीब अन्य जातियों के मतदाता हैं.

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