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ब्रह्म कमल : ब्रह्म कमल के दर्शन मात्र से ही भाग्य खुल जाता है, यह साल में एक बार ही खिलता है

हिंदू धर्म में दिव्य कमल को बहुत पवित्र माना जाता है। मान्यता है कि यह फूल भगवान शिव का प्रिय पुष्प है। यह फूल आमतौर पर ऊंचाई वाले क्षेत्रों या हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाता है। इसे केदारनाथ, बद्रीनाथ और तुंगनाथ के पवित्र मंदिरों में भगवान शिव को चढ़ाया जाता है। ब्रह्म कमल का नाम ब्रह्मा के नाम पर रखा गया है और यह वही फूल है जिसे देवता अपने हाथों में धारण करते हैं।

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हिंदू धर्म में दिव्य कमल को बहुत पवित्र माना जाता है। मान्यता है कि यह फूल भगवान शिव का प्रिय पुष्प है। यह फूल आमतौर पर ऊंचाई वाले क्षेत्रों या हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाता है। इसे केदारनाथ, बद्रीनाथ और तुंगनाथ के पवित्र मंदिरों में भगवान शिव को चढ़ाया जाता है। ब्रह्म कमल का नाम ब्रह्मा के नाम पर रखा गया है और यह वही फूल है जिसे देवता अपने हाथों में धारण करते हैं। इसके अलावा ऐसी भी धार्मिक मान्यता है कि भगवान शिव को दिव्य कमल का फूल अर्पित करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। हिंदू धर्म में दिव्य कमल के फूल को सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
धार्मिक मान्यताओं में यह फूल काफी लोकप्रिय है। धार्मिक पुराणों की मानें तो दिव्य कमल मां नंदा का प्रिय पुष्प है, इसलिए इसे नंदा अष्टमी के दिन तोड़ा जाता है। ब्रह्म कमल का शाब्दिक अर्थ है “ब्रह्मा का कमल”। माना जाता है कि किस्मत वालों को ही इस फूल को खिलते हुए देखने का मौका मिलता है। और जो लोग इस फूल को खिलते हुए देखेंगे उनके जीवन में हमेशा सुख और शांति मिलेगी।
औषधीय गुणों से भरपूर है ब्रह्म कमल ब्रह्म कमल दिखने में जितना खूबसूरत है, औषधीय गुणों से भरपूर है। इसे औषधि के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। इस फूल का उपयोग जलन, जुकाम, हड्डियों के रोगों में किया जाता है। माना जाता है कि इसका जूस पीने से थकान भी दूर हो जाती है। चिकित्सा प्रयोगों में इस फूल के 174 अलग-अलग सूत्र पाए गए हैं। वनस्पति विज्ञानियों ने इस दुर्लभ फूल की 31 विभिन्न प्रजातियों की खोज की है। जो चिकित्सकीय रूप से बहुत प्रभावी है।
ब्रह्म कमल जमीन से ऊपर खिलता है : वनस्पति विज्ञानियों के अनुसार ब्रह्म कमल एस्टेरेसिया कुल का पौधा माना जाता है। यह पौधा सामान्य कमल की तरह पानी में नहीं बल्कि जमीन पर उगता है।यह पौधा 4000 मीटर से अधिक ऊंचाई पर खिलता है लेकिन कुछ वर्षों में यह पौधा 3000 मीटर की ऊंचाई पर भी खिलता हुआ दिखाई देता है।
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