REPORT TIMES
एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने आज (10 जून, शनिवार) एक ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया. एनसीपी की 25 वीं सालगिरह के मौके पर शरद पवार ने दो बड़े ऐलान कर अजित पवार को हैरान कर दिया. शरद पवार ने अपनी सांसद बेटी सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल को एनसीपी का वर्किंग प्रेसिडेंट बनाने का ऐलान कर दिया. अजित पवार कार्यक्रम में मौजूद थे. यह ऐलान सुन कर बिलकुल चुप रहे. मीडिया से बात किए बिना दिल्ली के कार्यक्रम स्थल से निकल गए. बात यहीं तक सीमित नहीं रही. शरद पवार ने प्रफुल्ल पटेल के हाथ मध्यप्रदेश, गुजरात, गोवा, राजस्थान और झारखंड की कमान दी और सुप्रिया सुले के हाथ हरियाणा और पंजाब के साथ-साथ महाराष्ट्र के चुनावों की भी कमान दे दी. यानी यह जो कहा जा रहा था कि ‘दिल्ली में दीदी, महाराष्ट्र में दादा’, वो भी गलत साबित हुआ. शरद पवार के ऐलान से साफ हो गया कि राज्य की कमान भी धीरे-धीरे पूरी तरह से सुप्रिया सुले को देने का उनका प्लान है.
सुप्रिया सुले, प्रफुल्ल पटेल कार्यकारी अध्यक्ष; अजित पवार हतप्रद
सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल को कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने के साथ-साथ शरद पवार ने सुनिल तटकरे को राष्ट्रीय सचिव बनाया और उन्हें ओडिशा, वेस्ट बंगाल और किसानों के मुद्दों की जिम्मेदारियां दीं. डॉ. योगानंद शास्त्री को दिल्ली की कमान दी. के.के.शर्मा को उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों की जिम्मेदारिया दीं. अजित पवार के नाम से किसी भी जिम्मेदारी का जिक्र नहीं हुआ, ऐलान नहीं हुआ. अजित पवार सर नीचे कर इस ऐलान को सुनते रहे. हौले से तालियां बजाईं और मीडिया से बात किए बिना चले गए.
दिल्ली में भी दीदी, महाराष्ट्र में भी दीदी; दादा अब करेंगे क्या?
कुछ समय पहले शरद पवार ने मुंबई की एक सभा में कहा था, ‘रोटी पलटने का समय आ गया है.’ इसके बाद उन्होंने अजित पवार और बीजेपी के बीच बढ़ते संपर्कों की खबर के दरम्यान एनसीपी प्रमुख पद से इस्तीफा देकर सबको चौंका दिया था. इसके बाद इस्तीफा वापस लेकर और ज्यादा चौंका दिया. इसके बाद उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं से इस बात के लिए माफी भी मांगी कि उन्होंने अपने इस्तीफे का ऐलान करने से पहले उनसे चर्चा नहीं की. उन्होंने यह भी बताया कि उनकी इस्तीफे की योजना का पता सिर्फ अजित पवार को था.
आखिर चाचा ने भतीजे का गेम बजा दिया, अजित के सामने अब ऑप्शन है BJP का
यानी अजित पवार लगातार विलेन के तौर पर सामने लाए जा रहे थे और आज किनारे लगा दिए गए. एक बार फिर भारतीय राजनीति में संतान के लिए प्यार आइडियोलॉजी और काम की क्षमता से ज्यादा प्रभावी दिखाई दिया. बड़े-बड़े नेता इस कमजोरी से नहीं बच पाए. राज ठाकरे का प्रभाव ज्यादा था लेकिन बालासाहेब ठाकरे ने उद्धव ठाकरे के हाथ कमान सौंपी थी. अजित पवार का प्रभाव आज महाराष्ट्र में ज्यादा है लेकिन शरद पवार ने बिटिया के हाथ महाराष्ट्र का भी सारा इंतजाम सौंपा, अजित पवार अब क्या करेंगे?