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100 करोड़ की सेल, ना विज्ञापन-ना दान, आखिर कैसे चलता है गीता प्रेस का कारोबार?

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भारत के लगभग हर हिंदू घर में ‘गीता प्रेस, गोरखपुर’ की कम से कम एक किताब आपको अवश्य देखने को मिल जाएगी. इस साल गीता प्रेस की स्थापना को 100 साल पूरे होने जा रहे है. इसी साल उसे ‘गांधी शांति पुरस्कार’ के लिए चुना गया है और इसी साल उसके कारोबार के 100 करोड़ रुपये की सेल पार कर जाने की उम्मीद है. गीता प्रेस ने ‘गांधी शांति पुरस्कार’ को तो स्वीकार कर लिया है, लेकिन इसके साथ मिलने वाली 1 करोड़ रुपये की पुरस्कार राशि को स्वीकार करने से मना कर दिया है. इसे लेकर गीता प्रेस, गोरखपुर ने कहा है कि अपनी स्थापना के समय से ही उनकी किसी भी तरह का विज्ञापन और दान नहीं स्वीकार करने की परंपरा रही है. इसलिए उसकी गवर्निंग काउंसिल ( ट्रस्ट बोर्ड) ने ये राशि स्वीकार करना उचित नहीं माना है.

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ना दान-ना विज्ञापन, फिर भी 100 करोड़ की सेल

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‘गीता प्रेस, गोरखपुर’ की स्थापना साल 1923 में मारवाड़ी बिजनेसमैन श्री जय दयालजी गोयंदका ने की थी. तभी से इस संगठन का नियम रहा है कि वह ना तो कोई दान लेती है, और ना ही अपने प्रकाशन में किसी का विज्ञापन देती है. इसके बावजूद उसकी सेल में लगातार इजाफा हुआ है. गीता प्रेस, गोरखपुर की नीति साफ है एक विभाग का घाटा दूसरे विभाग की इनकम से पूरा किया जाए. गीता, महाभारत, रामायण और रामचरितमानस जैसी पुस्तकों के प्रकाशन के अलावा गीता प्रेस एक धार्मिक मासिक पत्रिका ‘कल्याण’ भी प्रकाशित करती है. इसकी आय का साधन इस पत्रिका के सब्सक्रिप्शन चार्ज से ही आता है. इसके देशभर में करीब 2.5 लाख सब्सक्राइबर हैं. वहीं घाटे को पूरा करने में गीता प्रेस की मदद गोविंद भवन- कोलकाता, गीता भवन-ऋषिकेष, आयुर्वेद संस्थान-ऋषिकेष और वैदिक स्कूल से होने वाली इनकम से होता है. टीओआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक गीता प्रेस गोरखपुर की सेल बीते कुछ सालों में लगातार बढ़ी है. साल 2016 में ये 39 करोड़ रुपये थी. जबकि 2017 में 47 करोड़, 2018 में 66 करोड़ और 2019 में 69 करोड़ रुपये रही. साल 2020 में कोविड के चलते संगठन की सेल काफी बाधित हुई, जबकि साल 2021 में ये 78 करोड़ और 2022 में 100 करोड़ रुपये रही.

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ना जीएसटी का असर, ना नोटबंदी का

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गीता प्रेस, गोरखपुर के कारोबार पर जीएसटी लगाए जाने या नोटबंदी जैसे बड़े आर्थिक बदलावों का कोई असर नहीं पड़ा. बल्कि ऊपर बताए आंकड़े गवाही दे रहे हैं कि उसकी सेल बढ़ी है. यानी 2016 में नवंबर की नोटबंदी और 2017 की जुलाई में आए जीएसटी का असर उस पर ना के बराबर रहा. गीता प्रेस, गोरखपुर बीते 100 साल में करीब 41.7 करोड़ की किताबों की बिक्री कर चुकी है. इसमें 16.21 करोड़ संख्या अकेले श्रीमद्भगवत गीता की है. संगठन देश की 14 भाषाओं में धार्मिक किताबों का पब्लिकेशन करती है. देशभर में इसके 22 रिटेल आउटलेट हैं. साथ ही ये रेलवे स्टेशन से लेकर मोबाइल शॉप से भी अपनी किताबों की सेल करती है.

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