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वो घड़ी बस आने वाली है जिसका इंतजार न सिर्फ हिन्दुस्तान के 140 करोड़ लोगों को है, बल्कि पूरी दुनिया को भी है. भारत का मिशन चंद्रयान-3 बुधवार शाम 6 बजकर 4 मिनट पर चांद की सतह पर लैंड करेगा. विक्रम लैंडर जब चांद के दक्षिणी ध्रुव पर अपने कदम रखेगा, तब तिरंगा शान से यहां लहराएगा और कुछ ही देर बाद फिर प्रज्ञान रोवर अपना काम शुरू कर देगा. लेकिन चांद की सतह पर लैंडिंग से पहले जो 15 मिनट होंगे, वो चंद्रयान-3 के लिए काफी अहम होंगे. इस पूरे प्रोसेस को समझिए…इसरो के स्पेस सेंटर से शाम 5 बजकर 44 मिनट पर विक्रम लैंडर के लिए आखिरी कमांड भेजी जाएगी, बस यही कमांड अंतिम है और इसके बाद विक्रम लैंडर को सबकुछ खुद करना होगा. यानी वो लैंडिंग की जगह चुनने से लेकर सतह पर उतरने और प्रज्ञान के बाहर आने तक सभी फैसले खुद ले रहा होगा. इसरो ने जानकारी दी है कि वह लैंडिंग से कुछ वक्त पहले ऑटोमैटिक सिस्टम ऑन कर देगा.
विक्रम लैंडर के लैंड होने से पहले आखिरी 15 मिनट जो काफी अहम हैं, उनमें ये चार फेज़ सबसे जरूरी हैं:
पहला रफ ब्रेकिंग फेज: ये तब शुरू होगा, जब चंद्रयान लैंडिंग वाली जगह से 745.5 किलोमीटर दूर और 30 किलोमीटर ऊपर होगा.
दूसरा एटीट्यूड होल्ड फेज: ये लैंडिंग साइट से 32 किलोमीटर दूर और 7.4 किलोमीटर की ऊंचाई पर शुरू होगा.
तीसरा फाइन ब्रेकिंग फेज: ये लैंडिंग साइट से 28.52 किलोमीटर दूर और 6.8 किलोमीटर की ऊंचाई पर शुरू होगा.
चौथा टर्मिनल डिसेंट फेज: जो लैंडिंग साइट से सिर्फ 800 से 1300 मीटर की ऊंचाई पर होगा. इसी फेज में चंद्रयान लैंडिंग साइट पर उतरेगा
इस बार नहीं होगी पुरानी गलती…
इसरो ने इस बार ऐसी तैयारी की है ताकि जो चूक चंद्रयान-2 के दौरान चार साल पहले हुई थी वो इस बार ना हो. लेकिन कई मुश्किलें इस मिशन में भी आएंगी. इसरो प्रमुख एस. सोमनाथ ने जानकारी दी थी कि जब सॉफ्ट लैंडिंग हो रही होगी, तब चंद्रयान-3 की दिशा सबसे अहम होगी. क्योंकि पहले ये हॉरिजॉन्टल होगा तो उसे 90 डिग्री वर्टिकल आना होगा. इसके बाद इसकी गति को भी धीमी करना होगा, यहां हर एक सेकंड जरूरी है क्योंकि इसमें चूके तो कुछ भी हो सकता है. यहां ये भी समझना जरूरी है कि चंद्रयान-2 और चंद्रयान-3 की लैंडिंग में सबसे बड़ा अंतर क्या है. चंद्रयान-2 में लैंडिंग साइट 500 मीटर * 500 मीटर थी, जबकि अबकी बार ये 4 किमी. * 2.5 किमी. है. यानी इस बार चंद्रयान-3 को लैंड करने के लिए अधिक जगह मिलेगी, साथ ही इस बार थ्रस्टर्स पर अधिक जोर दिया गया है ताकि लैंडिंग से ठीक पहले गति को कंट्रोल किया जा सके.
चंद्रयान-3 के अहम पड़ाव:
14 जुलाई : एलवीएम-3 एम-4 व्हीकल के माध्यम से चंद्रयान-3 ने नियत कक्षा में अपनी यात्रा शुरू की.
15 जुलाई : इसरो से कक्षा बढ़ाने की पहली प्रक्रिया पूरी की गई.
1 अगस्त : इसरो ने ट्रांसलूनर इंजेक्शनको पूरा किया और अंतरिक्ष यान को ट्रांसलूनर कक्षा में स्थापित किया.
5 अगस्त : चंद्रयान-3 की लूनर ऑर्बिट इनसर्शन पूरी हुई.
16 अगस्त : फायरिंग की प्रक्रिया पूरी होने के बाद यान को 153 किलोमीटर x 163 किलोमीटर की कक्षा में पहुंचाया गया
17 अगस्त : लैंडर मॉडयूल को प्रणोदन मॉड्यूल से अलग किया गया
20 अगस्त : लैंडर मॉड्यूल पर एक और डी-बूस्टिंग पूरी की गई.