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रांची : सरहुल की शोभायात्रा आज यानी गुरुवार को निकाली जायेगी. इसके लिए शहर की विभिन्न सरना समितियों ने तैयारी कर ली है. गुरुवार सुबह सभी मौजा में पाहन पूजा करेंगे और मुर्गे-मुर्गियों की बलि देंगे. इसके बाद चावल और मुर्गे की टिहरी (प्रसाद) का वितरण होगा. पाहन बारिश की भविष्यवाणी भी करेंगे. फिर दोपहर के बाद शोभायात्रा निकाली जायेगी. शोभायात्रा विभिन्न मार्गों से होती हुई केंद्रीय सरना स्थल सिरमटोली जायेगी. इसलिए ट्रैफिक व्यवस्था में कुछ बदलाव किया गया है.
पहले दिन पाहनों ने उपवास रखा, केकड़ा पकड़ा
सरहुल के पहले दिन (बुधवार को ) कई अनुष्ठानों को विधिपूर्व संपन्न किया गया. विभिन्न मौजा के पाहन और पूजा में बैठनेवाले श्रद्धालु उपवास पर रहे. सुबह पाहन और ग्रामवासियों ने सरना स्थलों के आसपास के जलस्रोतों के पास जाकर केकड़ा और मछली पकड़ा. केकड़ा को रसोई में चूल्हे के ऊपर लटका कर रख दिया गया है. कुछ महीने बाद इसके चूर्ण को धान की बीजों की बुआई के समय खेतों में छिड़का जायेगा. मान्यता है कि इससे धान की बालियां भी फैली हुई और समृद्ध होगी.
शाम को हुई जलरखाई पूजा
शाम में पाहनों ने सरना स्थलों पर दो नये घड़ों में पानी रखा. पानी को शाल के वृक्ष की टहनियों से मापा गया. इसी के साथ सरना स्थल पर पांच मुर्गे मुर्गियों की बलि भी दी गयी. सफेद मुर्गा की बलि सिंगबोंगा को, रंगुआ मुर्गा की बलि ग्राम देवता को, माला मुर्गा की बलि जल देवता (इकिर बोंगा) को, पूर्वजों को रंगली मुर्गी की बलि और अनिष्ट करनेवाली आत्माओं की शांति के लिए काली मुर्गी की बलि चढ़ाई गयी.
दीक्षांत मंडप में मनाया गया सरहुल पूर्व संध्या समारोह, थिरक उठे युवा
स्थान : मोरहाबादी स्थित रांची विवि का दीक्षांत मंडप. अवसर : सरहुल पूर्व संध्या समारोह. सरना नवयुवक संघ का मंच और विभिन्न कॉलेजों, समूहों के जनजातीय युवाओं की टोली. लाल पाड़ की साड़ी में युवतियां और सफेद गंजी व धोती में उपस्थित युवक. संताली, मुंडारी, कुड़ुख और हो भाषाओं में सरहुल के गीत. डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विवि के संताली भाषा के विद्यार्थियों ने इष्ट देव से विनती की : ओका रेदो हो बाबा सारजोम बाहा, ओका रेदो हो बाबा मातकोम गेले-कहां है बाबा सरई फूल? कहां है बाबा महुआ फूल. इस संताली गीत पर एक साथ दर्जनों युवाओं ने लयबद्ध नृत्य किया. मुंडारी भाषा के छात्रों ने साराजोम बा रेदो सुड़ा सागेन रेदो…गीत पर सामूहिक नृत्य पेश किये. कुड़ुख भाषा के युवाओं ने बरतो बहिन बेचोत बरतो बईया बेचोत आयो बाबा ऐरा गे बराओत…,और एन्देर पूपन चाल माना नानोन रे..जैसे गीतों पर सामूहिक नृत्य की प्रस्तुति दी. इन गीतों में सरहुल के अवसर पर फूलों के खिलने की, नृत्य के लिए आमंत्रित करने का संदेश था.