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श्याम बाबा के मंदिर के शिखर पर चढ़ता है केवल सूरजगढ़ का निशान

चिड़ावा। संजय दाधीच

 खाटूश्यामजी  में लाखों श्रद्धालु बाबा श्याम को धोक लगाने के लिए आते हैं और सभी श्रद्धालु हाथ में निशान लेकर बाबा के दरबार में पहुंचते हैं. वैसे तो बाबा श्याम के दरबार में लाखों निशान पहुंचते हैं लेकिन बाबा के मंदिर के शिखर पर केवल सूरजगढ़ का निशान ही चढ़ता है. . शिखर पर चढ़ता है सूरजगढ़ का ध्वज। आखिर क्या है इसकी विशेषता जानने के लिए पढ़िए यह खबर ………

                                                                                                                                                                                                                इस निशान के अलावा जितने भी भक्त निशान लेकर आते हैं उनके निशान नीचे ही रोक लिए जाते हैं. मंदिर के शिखर तक नहीं पहुंचने दिए जाते हैं. 374 साल से सूरजगढ़ के यह लोग निशान पदयात्रा लेकर खाटू पहुंच रहे हैं और इनका निशान हर बार मंदिर के शिखर पर जा रहा है. केवल इन्हीं का निशान यहां पर पहुंचता है. इसके पीछे भी एक कहानी बताई जाती है.

इसलिए चढ़ता है सिर्फ सूरजगढ़ का निशान

सूरजगढ़ के जिन परिवारों के लोग यह निशान लेकर आते हैं उनके पूर्वज पहले खंडेला इलाके में साठावास गांव में रहते थे. वहीं से यह निशान की परंपरा शुरू हुई और उसके बाद वे लोग सूरजगढ़ जाकर बस गए. माना जाता है कि सैकड़ों साल पहले खाटूश्यामजी में जो भी निशान आते थे वह सभी मंदिर के शिखर पर जाते थे. हालांकि उस वक्त बहुत कम निशान आते थे और मुश्किल से 20 से 30 निशान पहुंचते थे.

बाबा श्याम को क्यों प्रिय है सूरजगढ़ का ध्वज

एक बार मंदिर के शिखर पर पहले निशान ले जाने को लेकर आपस में विवाद हो गया. कहा जाता है कि उस वक्त के पुजारी ने मंदिर को ताला लगा दिया और कहा कि जिसके निशान की मोर छड़ी से मंदिर का ताला खुल जाएगा वही निशान शिखर पर जाएगा. इसके बाद सूरजगढ़ से आने वाले निशान के भक्तों ने अपने सेवक को भेजा और ताले पर मोर छड़ी लगाने के लिए कहा. मोर छड़ी जैसे ही ताले पर लगी तो ताला अपने आप खुल गया. उसके बाद से हर वर्ष केवल सूरजगढ़ के निशान ही बाबा श्याम के शिखर पर जाता है.

सूरजगढ़ के निशान से जुड़ी है पुरानी कथा

140 किलोमीटर पदयात्रा से आता है निशान

खाटूश्यामजी से सूरजगढ़ की दूरी करीब डेढ़ सौ किलोमीटर है. हर बार 4 दिन की पदयात्रा के बाद यह निशान यात्रा खाटू पहुंचती है. इस दौरान निशान के साथ साथ सिर पर जलती हुई सिगड़ी लिए महिलाएं भी आती हैं. यह लोग दशमी के दिन खाटू पहुंच जाते हैं और उसके बाद दशमी को एकादशी की रात को भजन कीर्तन के कार्यक्रम होते हैं और दिन में भी भजन कीर्तन चलते हैं. द्वादशी की सुबह 11:15 इन का निशान मंदिर के शिखर पर चढ़ाया जाता है. यह निशान चढ़ने के बाद खाटू के वार्षिक मेले का समापन मान लिया जाता है.

1 साल तक लगा रहता है निशान

सूरजगढ़ का निशान बाबा श्याम मंदिर के शिखर पर पूरे साल लगा रहता है. अगर निशान खंडित हो जाए तो उसे उतार दिया जाता है. अन्यथा अगले साल तक निशान चढ़ता है. तभी पुराने निशान को उतारा जाता

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