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तीन बार के पैरा ओलंपिक पदक विजेता, सर्वोच्च खेल पुरस्कार से सम्मानित देवेंद्र झाझडिय़ा ने अपने जीवन के कई नए खुलासे किए हैं।
राष्ट्रपति से पदम भूषण सम्मान मिलने के बाद देवेंद्र झाझडिय़ा ने कहा कि
जब नौ-दस साल की उम्र में करंट लगने से हाथ कट गया और मैं अस्पताल से वापस घर आया तो लोग मेरे मम्मी-पापा से कहते थे कि यह लड़का तो बर्बाद हो गया। कहते थे कि यह लड़का कुछ नहीं कर पाएगा, सब खत्म हो गया है। दसवीं कक्षा में जब रतनपुरा के सरकारी सीनियर स्कूल से खेल की शुरुआत की थी तो बहुत से लोगों ने कहा कि क्यों खराब हो रहा है, विकलांग भी कभी खेल सकता है क्या। पढाई पर फोकस करो तो क्या पता कोई सरकारी नौकरी मिल जाए तो जिंदगी कट जाए। लेकिन मेरे भीतर एक जोश था, जुनून था, कमजोर नहीं कहलाने की जिद थी। वह इतने बड़े संघर्ष का समय था कि मैं बता नहीं सकता लेकिन मेरे मां-पिता ने हमेशा मुझे हौसला दिया। सबने मना किया लेकिन उन्होंने कभी खेलने के लिए मना नहीं किया। मुझे आगे बढ़ाया। कमजोर नहीं कहलवाने की जिद ने मुझे चैंपियन बनाया।