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कैसे आगरा, कानपुर वाया दिल्ली पहुंचा नेहरू खानदान? किस्सा 18वीं सदी का

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मैं कश्मीर की तरफ आ रहा था… तब मैं सोच रहा था कि जिस रास्ते पर मैं नीचे से ऊपर जा रहा हूं… इसी रास्ते से सालों पहले मेरे रिश्तेदार ऊपर से नीचे आए थे… कश्मीर से इलाहाबाद-गंगा की ओर… मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं वापस अपने घर जा रहा हूं.’ कन्याकुमारी से चलते-चलते राहुल गांधी की यात्रा कश्मीर पहुंच गई है. यात्रा के आखिरी दिन, आखिरी पड़ाव पर राहुल गांधी ने संबोधन शुरू किया तो उनकी जुबां पर जिक्र आ गया उनके पूर्वजों का, जो कभी इसी घाटी से गंगा-यमुना के दोआब में पहुंचे थे.जिस कश्मीर कनेक्शन के बारे में राहुल गांधी बात कर रहे थे, उसको विस्तार से बताया है उनके पूर्वज और भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने. खुद को कश्मीरी बताते हुए जवाहरलाल नेहरू आत्मकथा में लिखते हैं कि 18वीं सदी की शुरुआत में उनके पूर्वज धन और यश कमाने के लिए कश्मीर की तराइयों से उतरकर नीचे के उपजाऊ मैदान में आए थे. ऐसा करने वाले उनके सबसे पहले पूर्वज थे राजकौल, जो कि अपने समय में कश्मीर में संस्कृत और फारसी के विद्वानों में गिने जाते थे. ये वो दौर था जब भारतीय उपमहाद्वीप से मुगल साम्राज्य का अंत दिखाई देने लगा था.

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कश्मीर से दिल्ली…

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मुगल सल्तनत की कमान उन दिनों फर्रुखसियर के हाथ में थी. एकबार कश्मीर दौरे पर गए इस मुगल बादशाह की मुलाकात राजकौल से हुई और उन्हीं के आग्रह पर राजकौल परिवार समेत घाटी से दिल्ली आ गए. दिल्ली पहुंचने पर राजकौल को जागीर और मकान दिया गया. ये मकान नेहर के किनारे पर था, जिसके चलते उन्हें नेहरू उपनाम मिला. ये नाम उनके कौटुम्बिक नाम कौल के साथ जुड़ गया और वो कौल-नेहरू कहलाने लगे.

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आत्मकथा में जवाहरलाल नेहरू बताते हैं कि धीरे-धीरे कौल गायब होता चला गया और नेहरू ही बच गया. नेहरू का कहना है कि इसके बाद उनके पूर्वजों की जागीर समय के साथ तबाह हो गई. आत्मकथा में नेहरू अपने परदादा लक्ष्मीनारायण नेहरू का जिक्र करते हैं, जो दिल्ली के बादशाह के दरबार में कंपनी सरकार के पहले वकील थे. जवाहरलाल नेहरू के दादा गंगाधर नेहरू थे, जो कि दिल्ली के कोतवाल रहे. उनका निधन महज 34 साल की उम्र में हो गया था. ये बात 1857 के आस-पास की है.

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दिल्ली से आगरा…

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1857 के समर में नेहरू परिवार के दस्तावेज तहस-नहस हो गए और सब खत्म होने के बाद परिवार आगरा आ गया. 6 मई 1861 को आगरा में ही जवाहरलाल नेहरू के पिता मोतीलाल नेहरू का जन्म हुआ. मोतीलाल नेहरू के दो बड़े भाई थे- बंशीधर नेहरू और नंदलाल नेहरू. बंशीधर नेहरू ब्रिटिश सरकार के न्याय विभाग में नौकरी करते थे और नंदलाल नेहरू राजपूताना की एक रियासत के दीवान थे. कानून की पढ़ाई करने के बाद नंदलाल नेहरू ने आगरा में वकालत शुरू की और उन्ही के साथ मोतीलाल नेहरू भी काम करने लगे.

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कानपुर और इलाहाबाद

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नंदलाल नेहरू हाई कोर्ट जाया करते थे और जब हाई कोर्ट इलाहाबाद चला गया तो उनका परिवार भी इलाहाबाद आ गया. मोतीलाल नेहरू ने कानपुर और इलाहाबाद के कॉलेज से शिक्षा हासिल की. उन्होंने कुछ समय तक कानपुर की जिला अदालत में वकालत भी की. तीन साल कानपुर में वकालत करने के बाद वो इलाहाबाद चले गए और हाई कोर्ट में वकालत शुरू की. मोतीलाल नेहरू की गिनती इलाहाबाद के नामी वकीलों में होने लगी थी. इलाहाबाद में ही 14 नवंबर 1886 जवाहरलाल नेहरू का भी जन्म हुआ.

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और फिर दिल्ली…

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नेहरू परिवार लंबे अरसे तक इलाहाबाद में ही रहा और उनका पता ‘आनंद भवन’ देश की राजनीति का अहम केंद्र. आजादी के बाद जवाहरलाल नेहरू भारत के पहले प्रधानमंत्री बने और उनका नया पता बना तीन मूर्ति भवन. जब तक नेहरू जीवित रहे तब तक देश के प्रधानमंत्री रहे. 26 मार्च 1942 को नेहरू की बेटी इंदीरा गांधी की शादी फिरोज गांधी से हो गई और वो लखनऊ अपने ससुराल चली गईं. हालांकि कुछ समय बाद इंदिरा वापस आनंद भवन लौट आई थीं. आजादी के बाद वो अपने पिता के साथ दिल्ली में रहने लगी थीं.

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जवाहरलाल नेहरू के निधन के दो साल बाद राहुल गांधी की दादी इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री बनीं, जिनके साथ राहुल गांधी भी रहा करते थे. इसके बाद से लगातार गांधी परिवार सरकारी आवासों में रहा है.इसका जिक्र राहुल गांधी ने कश्मीर में अपने संबोधन में भी किया. उन्होंने कहा, ‘मैं छोटा था.. तब से सरकारी घरों में ही रहा हूं… मेरा अपना घर नहीं है… स्ट्रक्चर को मैंने कभी घर नहीं माना.. मेरे लिए वो इमारत होती है. वो घर नहीं होता है… घर मेरे लिए एक सोच है, जीने का तरीका है, सोचने का तरीका है… यहां पर जिस चीज को आपक कश्मीरियत कहते हो, उसको मैं अपना घर मानता हूं.’

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