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रामचरितमानस के बहाने फिर से कमंडल बनाम मंडल की राजनीति? संयोग या प्रयोग

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समाजवादी पार्टी नेता स्वामी प्रसाद मौर्य पर केस दर्ज होने की जानकारी तब आई, उस समय उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य  गुरुग्राम में बीजेपी के ओबीसी मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी को संबोधित कर रहे थे. दूसरी तरफ, लखनऊ में रामचरितमानस पर स्वामी प्रसाद मौर्य के बयान को लेकर हंगामा मचा था. इस बीच केशव मौर्य बिहार में बीजेपी की प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक में मुख्य अतिथि के रूप में पहुंचे. दरभंगा में हुई मीटिंग में केशव मौर्य ने पार्टी के पिछड़े वर्ग के नेताओं से भी अलग से मुलाकातें की और लोकसभा चुनाव को लेकर चर्चा की. ये दोनों घटनाएं महज संयोग नहीं, बल्कि बीजेपी का ये प्रयोग है. केशव प्रसाद मौर्य के ट्विटर हैंडल पर जो पिन ट्वीट लगा है, उससे ही बीजेपी की जवाबी राजनीति समझ में आ जाती है. यूपी के डिप्टी सीएम अखिलेश यादव को हिंदू विरोधी बताने और समझाने में जुटे हैं. सारा मामला रामचरितमानस के बहाने फिर से शुरू हुई कमंडल बनाम मंडल की राजनीति का है. मतलब बीजेपी के हिंदुत्व के मुकाबले समाजवादी पार्टी पिछड़ों और दलितों को एकजुट करने में लगी है.

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80 बनाम 20 की लड़ाई शुरू

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हालांकि, बिहार में यही काम जेडीयू और आरजेडी गठबंधन कर रही है. इस बार इसकी शुरुआत भी बिहार से ही हुई है. जहां शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर ने रामचरितमानस को पिछड़ा और दलित विरोधी बताया. फिर लखनऊ में समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने एंट्री मारी. रामचरितमानस के विरोध के बहाने उन्होंने 80 बनाम 20 की लड़ाई शुरू कर दी. मतलब अगड़ा बनाम पिछड़ा और दलित. अखिलेश यादव के ताज़ा बयान में विधानसभा में योगी जी से पूछूंगा कि मैं शूद्र हूं न !

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विरोध के बावजूद स्वामी के समर्थन में आए अखिलेश यादव

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2024 में अयोध्या में भव्य राम मंदिर में दर्शन और पूजन का काम शुरू हो जाएगा. उसी साल की शुरुआत में देश में आम चुनाव होने हैं. बीजेपी के राम नाम से मुकाबले के लिए समाजवादी पार्टी ने कमंडल की राजनीति आजमाने का मन बना लिया है. इसीलिए तो पार्टी के कई स्वर्ण नेताओं के विरोध के बावजूद स्वामी के समर्थन में अखिलेश यादव चट्टान की तरह खड़े है. उन्होंने स्वामी प्रसाद मौर्य का प्रमोशन कर उन्हें समाजवादी पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बना दिया. कभी भी उनके बयान का विरोध नहीं किया. उलटे उनसे मिल कर उन्हें जातिगत जनगणना का मुद्दा उठाने को कह दिया. मतलब साफ़ है कि समाजवादी पार्टी की नजर बीजेपी के गैर यादव पिछड़े वोट बैंक पर है. अखिलेश की नजर मायावती के दलित वोटरों पर भी है.

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समाजवादी से मुकाबले के लिए मौर्य आए फ्रंट फुट पर

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बीजेपी भी समाजवादी पार्टी के रामचरितमानस के विरोध वाले राजनीतिक खेल को बखूबी जानती है. वो 2015 में बिहार चुनाव में हुई गलती के नहीं दोहराना चाहती है. इसीलिए लखनऊ में रामचरितमानस की प्रतियां जलाए जाने के बावजूद बीजेपी अभी साइलेंट मोड में है. उसने अब पिछड़ी बिरादरी के नेताओं को आगे कर दिया है. इसीलिए बदले हुए हालात में पार्टी के अंदर इस वर्ग के नेताओं की अहमियत बढ़ती जा रही है. केशव प्रसाद मौर्य आगे कर दिए गए हैं. विधानसभा चुनाव हारने के बावजूद पार्टी ने उन्हें यूपी का डिप्टी सीएम बनाया. अब समाजवादी से मुकाबले के लिए मौर्य फ्रंट फुट पर हैं. बीजेपी के अंदर पिछड़ों और दलितों का कितना मान सम्मान है. ये अगर उसी वर्ग के नेता बतायेंगे तो बात दिल तक पहुंचेंगी. तो ये मान कर चलिए कि बीजेपी में इस समाज के नेताओं के अच्छे दिन जारी रहेंगे.

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