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पॉक्सो एक्ट में आरोपी भारतीय कुश्ती महासंघ अध्यक्ष बृजभूषण सिंह इसलिए नहीं हो रहे गिरफ्तार !

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लंबे समय से जंतर-मंतर पर धरना दे रही भारत ही महिला पहलवान मामले में दो-दो एफआईआर दर्ज हो चुकी हैं. इसके बाद भी मगर अब तक पॉक्सो (POCSO ACT) में मुकदमा दर्ज होने के बावजूद, मामले के मुख्य आरोपी बीजेपी सांसद और भारतीय कुश्ती महासंघ अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह को गिरफ्तार नहीं किया गया है! आखिर क्यों? न केवल धरने पर लंबे समय से डटीं महिला पहलवान और उनके समर्थक इस अनसुलझे सवाल का जवाब न मिलने से व्याकुल हैं.देश-दुनिया में पहलवानी से जुड़े बाकी तमाम लोग भी इस सवाल का जवाब पाने को परेशान है कि, आखिर जब नई दिल्ली जिला पुलिस कनाट प्लेस थाने में एक ही दिन में दो-दो मुकदमे (FIR) दर्ज किए बैठी है. वो भी पॉक्सो जैसे गंभीर एक्ट के तहत भी. तो फिर आरोपी या आरोपियों को अब तक गिरफ्तार क्यों नहीं किया जा सका है?

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अब तक बृजभूषण शरण सिंह गिरफ्तार क्यों नहीं?

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इस सवाल का जवाब जानने के लिए टीवी9 ने गुरुवार को देश के कई कानूनविदों और पूर्व पुलिस अधिकारियों से विस्तृत बात की. कानूनी राय तो सबकी कमोबेश एक सी ही मिलती-जुलती थी. मगर निजी राय सबकी अपनी अपनी रही. आइए जानते हैं कि आखिर इस बातचीत में क्या निकलकर सामेन आया? क्या जवाब मिला इस सवाल का कि, आखिर दो-दो एफआईआर में नामजद मुलजिम/संदिग्ध/आरोपी अब तक गिरफ्तार क्यों नहीं किए जा सके हैं? हालांकि यही सवाल दो दिन पहले नई दिल्ली जिला डीसीपी को तलब करने के लिए भेजे गए नोटिस के जरिए दिल्ली राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने भी पूछा है.

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इस बारे में सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया के वरिष्ठ क्रिमिनल लॉयर डॉ. ए पी सिंह ने कहा, “बेशक पॉक्सो एक्ट एक बेहद गंभीर कानून है. जिसके बारे में सोचकर ही संदिग्ध/नामजद या मुलजिम की रूह कांप जाती है. आम आदमी की नजर में भी यह एक्ट किसी हौवा से कम नहीं है. सच यह है कि बाहर से देखने-सुनने में यह पॉक्सो एक्ट जिस कदर का डरावना और सख्त नजर आता है. विशेष कर उन लोगों को जो कायदा-कानून में विशेष दखल नहीं रखते हैं.

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पॉक्सो एक्ट में गिरफ्तारी पर क्या है नियम?

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उन्हें तो यह और भी ज्यादा डराने वाला, होश फाख्ता करने वाला एक्ट या कानून है. अगर एक क्रिमिनल लॉयर की हैसियत से अगर मैं या कोई भी दूसरा कानूनविद पॉक्सो एक्ट पर बात करें, तो यह कानून सख्त जरूर है. मगर इसे लागू करने के बाद आरोपी या आरोपियों अथवा संदिग्धों के खिलाफ इस्तेमाल करने के कई पड़ाव हैं.” देश में निर्भया हत्याकांड जैसे मुकदमे में फांसी के सजायाफ्ता मुजरिमों के पैरोकार वकील रह चुके, डॉ. ए पी सिंह ने आगे कहा,

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“पॉक्सो एक्ट सुनने-पढ़ने और देखने में बेशक एक छोटा सा सिमटा हुआ सा कानून नजर आता हो. मगर इसकी परिभाषा कानून की नजर में बेहद विस्तृत है. पॉक्सो एक्ट अलग-अलग उम्र के शिकायतकर्ता द्वारा दर्ज कराए गए मुकदमों के हिसाब से लागू होता है. यह पुलिस को भी देखना होता है कि, पॉक्सो एक्ट के किस मुकदमे में आरोपी की तत्काल गिरफ्तारी जरूरी है. किस मुकदमे में विस्तृत जांच के बाद आरोपी को गिरफ्तार किया जाना है?

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अगर किसी बच्चे के साथ हुई यौन हिंसा के मुकदमे में पॉक्सो एक्ट लगाया गया है. तो वो संदिग्ध/आरोपी या मुलजिम पर बहुत भारी पड़ता है. उसमें बिना किसी यदि, किन्तु, परंतु के मुकदमा दर्ज करते ही, प्राथमिक पूछताछ और पीड़ित के बयान कोर्ट में दर्ज कराते ही, आरोपियों या संदिग्ध की गिरफ्तारी में पुलिस तत्कालिक कदम उठाती है. जो सही भी है. यही होना चाहिए.”

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पॉक्सो एक्ट पर सीनियर क्रिमिनल लॉयर की राय

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पॉक्सो एक्ट पर बेबाक बातचीत के दौरान वरिष्ठ क्रिमिनल लॉयर डॉ. एपी सिंह ने कहा, “पॉक्सो एक्ट अगर किसी ऐसे मामले या घटना में लगाया है जहां, पीड़ित की उम्र 16-17 साल या उससे ऊपर है. तो ऐसे मामले में पुलिस भले ही मुकदमा दर्ज कर ले. मगर इसकी तफ्तीश में और पीड़ित को 164 सीआरपीसी में कोर्ट में बयान आदि दर्ज करने-कराने में वक्त लेती ही है. क्योंकि पॉक्सो एक्ट की जांच में हुई गलती किसी बेकसूर का जीवन भी तबाह कर सकती है. इसलिए मेरी समझ से तो अगर पॉक्सो एक्ट (POCSO ACT) में कोई जांच देरी से चल रही है तो उसमें बुराई नहीं है. बुराई उसमें है कि जल्दबाजी की उल्टी-पुल्टी जांच के चलते कोई बेकसूर कानून के शिकंजे में फंस जाए.”

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जंतर मंतर पर धरने पर बैठी महिला पहलवानों के मामले में दर्ज पॉक्सो एक्ट की एफआईआर (मुकदमे) में तो, शिकायतकर्ता की उम्र 16-17 साल बताई जा रही है. उसके बयानों की प्राथमिक पुलिसिया तफ्तीश भी हो चुकी है. इस मुकदमे पर देश दुनिया की नजरें हैं. फिर भी पुलिस अब तक आरोपी बीजेपी सांसद और भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह को आखिर गिरफ्तार क्यों नहीं कर रही है?

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पॉक्सो में कब तक हो सकती है गिरफ्तारी?

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टीवी9 ने इस सवाल के जवाब के लिए बात की दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi Highcourt)के वरिष्ठ क्रिमिनल लॉयर और, दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल (Delhi Police Special Cell) के रिटायर्ड डीसीपी एल एन राव से. एल एन राव बोले, “पॉक्सो एक्ट में यह तो लिखा है कि इस विशेष एक्ट के मुकदमे की जांच बेहद सतर्कता से अंजाम तक पहुंचाई जाए. विशेषकर बच्चों से जुड़े पॉक्सो एक्ट के मुकदमों में. मगर कानून की यह किसी भी किताब में नहीं लिखा है कि, पॉक्सो एक्ट के मुकदमें में पुलिस निर्धारित सीमित समयावधि में मुलजिम को गिरफ्तार करने के लिए बाध्य है.” यह बात आप एक पूर्व डीसीपी पुलिस की हैसियत से कह रहे हैं ताकि, दिल्ली पुलिस की लेट-लतीफी पर कोई उंगली न उठा सके?

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पूछने पर दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल के रिटायर्ड डीसीपी एल एन राव (DCP LN Rao)ने कहा, “नहीं ऐसा नहीं है. मैं यह बात एक पूर्व पुलिस अफसर और दिल्ली हाईकोर्ट का अनुभवी क्रिमिनल लॉयर, दोनों की ही हैसियत से कह रहा हूं. मैं पॉक्सो एक्ट और उसकी गंभीरता को भली भांति समझता हूं. पॉक्सो एक्ट में कहीं नहीं लिखा है कि मुकदमा दर्ज करने के इतने दिन या घंटे के अंदर ही, पुलिस द्वारा मुलजिम या सस्पेक्ट्स को गिरफ्तार करके कोर्ट में पेश करना है. पॉक्सो एक्ट के हर मुकदमे की जांच के हिसाब से गिरफ्तारी की प्राथमिकता तय करना, पुलिस का ह़क है. ”

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जल्दबाजी में बेकसूर की जिंदगी हो सकती है तबाह

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दिल्ली हाईकोर्ट को वरिष्ठ क्रिमिनल लॉयर एल एन राव कहते हैं कि, “बेशक पॉक्सो एक्ट यौन हिंसा से जुड़े मुकदमों के मामले में एक गंभीर कानून है. मगर उसकी भी अपनी सीमाएं-हदें-कायदा है. इसकी जांच करने के लिए पुलिस अपने हिसाब से स्वतंत्र है. गिरफ्तारी भी टाइमबाउंड नहीं है. चूंकि यह कानून बेहद कठोर है. इसलिए पुलिस इसकी पड़ताल में हर कदम फूंक-फूंक कर रखती है. ताकि कहीं पुलिस की जरा सी जल्दबाजी में किसी बेकसूर की जिंदगी तबाह न हो ले.

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बात जहां तक अगर इस समय चल रहे महिला पहलवानों और भारतीय कुश्ती महासंघ अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के मुकदमे की है. तो इसमें पीड़िता/शिकायतकर्ता की उम्र और उसके द्वारा लगाए गए आरोपों की गंभीरता की दृष्टि से ही पुलिस तफ्तीश चल रही होगी. पुलिस की जिम्मेदारी कोर्ट के प्रति है. पुलिस को कोर्ट को बताना है कि उसने बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ दर्ज पॉक्सो एक्ट के मुकदमे में अब तक क्या जांच की?”

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जरा सोचिए कोई भी पुलिस टीम कोर्ट में अपनी छीछालेदर या बेइज्जती जान-बूझकर क्यों कराना चाहेगी, किसी मामले में लेट-लतीफ जांच करके. हां, इतना जरूर है कि इस मुकदमे को लेकर जितना शोर मच रहा है. या मचाया जा रहा है. पुलिस उस शोर से खुद को जल्दी जांच के गर्त में किसी भी कीमत पर धकियाना नहीं चाह रही होगी. दूसरे, पुलिस जानती है कि जिस उम्र की लड़की ने और जिस तरह के आरोप भारतीय कुश्ती महासंघ अध्यक्ष के ऊपर पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज मुकदमे में लगाए हैं, उसकी जांच रिपोर्ट उसे कैसे करके कब तक कोर्ट में दाखिल करनी है.

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‘पॉक्सो एक्ट में तुरंत गिरफ्तारी की बात कहीं नहीं’

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जहां तक बृजभूषण शरण सिंह की गिरफ्तारी में देरी की बात है. तो पॉक्सो एक्ट में ऐसा कहीं भी नहीं लिखा है कि, जांच पूरी होने से पहले ही या फिर, मुकदमा दर्ज करने के तुरंत बाद पुलिस द्वारा हर पॉक्सो के मुकदमे में, आरोपी या संदिग्ध को तत्काल गिरफ्तार करके जेल भेज दिया जाना चाहिए. अगर पुलिस जांच से पहले ही संदिग्ध को गिरफ्तार करके जेल में डाल देगी. तब गिरफ्तार पक्ष भी तो पुलिस की कमजोरियों के खिलाफ मजबूती से कोर्ट के सामने खड़ा हो सकता है.

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तब पुलिस क्या जवाब देगी कोर्ट को? और जो लोग सोचते हैं कि पॉक्सो एक्ट में मुलजिम को तुरंत गिरफ्तार करके जेल भेज देना चाहिए. जब पुलिस कोर्ट में कमजोर तफ्तीश के चलते या फिर जल्दबाजी में मुलजिम को जांच पूरी होने से पहले ही गिरफ्तार करने लेने के फेर में फंसेगी तो, वहां शोर मचाने वाले नहीं, तफ्तीश करने वाली पुलिस की टीम अकेली खड़ी होगी.

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