REPORT TIMES
नई दिल्ली: नेशनल डॉक्टर्स डे 2023 के मौके पर दिल्ली में “नेशनल डॉक्टर्स डे कॉन्क्लेव” का आयोजन किया. इस दौरान स्वास्थ्य के क्षेत्र में अहम योगदान देने के लिए डॉक्टरों को सम्मानित किया गया. इस कॉन्क्लेव में डॉक्टरों और फार्मा एक्सपर्ट्स के साथ कई सेशन हुए. इसमें उन्होंने अपने जीवन के एक्सपीरियंस, हेल्थ सेक्टर में नई तकनीक, स्वास्थ्य क्षेत्र की चुनौतियों समेत कई विषयों पर राय रखी. सभी डॉक्टरों ने एक स्वर में कहा कि भारत में अब टेक्नोलॉजी और हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर के मामले में काफी आगे बढ़ गया है. भविष्य में किसी भी हेल्थ इमरजेंसी के के लिए देश तैयार है. इस हेल्थ कॉन्क्लेव के पहले सेशन की शुरुआत दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सौरभ भारद्वाज से बातचीत के साथ हुई. इस दौरान उन्होंने कोविड काल के समय आई चुनौतियों को याद किया. सौरभ भारद्वाज ने कहा कि कोरोना जब आया उस दौरान टेस्टिंग किट और अस्पतालों में बेड की कमी का सामना करना पड़ा था. तब ऑक्सीजन सप्लाई की परेशानी भी हुई थी. लेकिन कोविड के बाद सरकार ने हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर को काफी बढ़ा दिया है. कोविड के समय में सरकारी अस्पतालों में करीब 12,400 बेड थे, जिनकी संख्या 2024 तक दो गुना से भी अधिक हो जाएगी. दिल्ली में देश का सबसे बड़ा ट्रामा सेंटर भी 2024 तक बनकर तैयार हो जाएगा. अब दिल्ली सरकार कोविड जैसी किसी भी महामारी से निपटने के लिए तैयार है.
अच्छी सेहत के लिए लाइफस्टाइल को रखें ठीक
हेल्थ कॉन्क्लेव के दूसरे सेशन में मेंदाता हॉस्पिटल के इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर ट्रांसप्लांटेशन और रीजेनरेटिव मेडिसिन के चेयरमैन डॉ अरविंदर सिंह ने अपने विचार साझा किए. उन्होंने लोगों को लिवर की सेहत के बारे में जागरूक किया. डॉ सिंह ने कहा कि आजकल आरामतलब लाइफस्टाइल और खानपान की गलत आदतों की वजह से लिवर से संबंधित बीमारियां बढ़ रही है. ऐसे में लोगों को अपने रूटीन को ठीक करने की जरूरत है. लिवर फिट रहेगा तो शरीर में कई बीमारियों का रिस्क कम होगा. इस सेशन में अपोलो अस्पताल में सीनियर जॉइंट रिप्लेसमेंट एंड ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ. यश गुलाटी ने भी अपने विचार रखे. उन्होंने कहा कि प्राइवेट अस्पतालों की तरह ग्रामीण इलाकों के सरकारी हॉस्पिटल में भी इलाज की बेहतर सुविधाएं मिलनी चाहिए. इसके लिए सभी स्तर पर काम करना होगा. ग्रामीण इलाकों में सुविधाएं बढ़ने से शहरों को अस्पतालों में मरीजों का लोड कम करने में मदद मिलेगी.
भारत बना मेडिकल टूरिज्म का हब
नेशनल डॉक्टर्स डे कॉन्क्लेव के तीसरे सेशन में स्वास्थ्य के क्षेत्र की चुनौतियों और नए अवसरों पर चर्चा हुई. स्वास्थ्य क्षेत्र की चुनौतियों पर डॉक्टरों ने कहा कि आजकल डॉक्टरों के साथ हिंसा की घटनाएं बढ़ रही है. ऐसे में डॉक्टरों और मरीजों के बीच विश्वास को बढ़ाने की जरूरत है. इसके साथ ही सरकारी अस्पतालों की संख्या बढ़ाने की भी जरूरत है. हेल्थ सेक्टर में नए अवसरों के विषय में एम्स के डॉ संजय राय ने कहा कि भारत मेडिकल टूरिज्म का हब बन गया है. देश 100 से ज्यादा देशों को एचआईवी की दवा और 170 से अधिक देशों को अलग-अलग बीमारियों की वैक्सीन एक्सपोर्ट करता है. भारत में कई देशों से मरीज इलाज के लिए आते हैं. अन्य देशों की तुलना में यहां स्वास्थ्य सेवाएं सस्ती हैं.
किसी भी नई महामारी से निपटने के लिए तैयार
कार्यक्रम के चौथे सेशन में “क्या भारत किसी नई पब्लिक हेल्थ क्राइसिस से निपटने के लिए तैयार है”? इस विषय पर चर्चा की गई. इस सेशन में इंडियन मेडिकल काउंसिल (आईएम) के अध्यक्ष डॉ. शरद कुमार अग्रवाल ने कहा कि कोविड के दौरान देश के 2 हजार डॉक्टरों ने मरीजों की सेवा करते -करते अपना बलिदान दिया था. डॉक्टरों की बदौलत देश इतनी बड़ी महामारी का सामना कर पाया था. कोविड के दौरान डॉक्टरों ने दिन-रात मरीजों की सेवा की थी. इस दौरान हजारों डॉक्टर संक्रमित भी हुए थे. लेकिन अपनी परवाह किए बिना मरीजों का इलाज किया था. डॉ शरद ने कहा कि देश में अब हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर कई गुना तक बढ़ गया है. अस्पतालों में बेड बढ़े हैं और नई मशीनों आई हैं. अधिकतर हॉस्पिटल में ऑक्सीजन के प्लांट लग गए हैं और इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ाया गया है. ऐसे में अब किसी नई महामारी से घबराने की जरूरत नहीं है. देश कोविड जैसी किसी भी दूसरी महामारी का मुकाबला करने के लिए तैयार है. डीजीएफ की जनरल सेक्रेटरी डॉ. शारदा जैन ने कहा कि कोरोना का समय काफी चुनौतीपूर्ण था, कोविड के दौरान डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ ने काम लगन और मेहनत से काम किया था. उस दौरान डॉक्टरों को भी काफी परेशानी हो रही थी, लेकिन वे फिर भी अपना फर्ज निभाते रहे. डॉक्टरों ने कोविड में लाखों मरीजों का इलाज किया गया. भारत ने जिस तरह कोविड महामारी का सामना किया उसको दुनियाभर ने सराहा था. कोविड के बाद अब हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर काफी बढ़ा है. अब किसी भी नई महामारी का आसानी से सामना किया जा सकता है.
मरीजों को प्राथमिकता देना जरूरी
हेल्थ कॉन्क्लेव के पांचवे सेशन में “वंडर वुमन- मैनेजिंग वर्क लाइफ बैलेंस” विषय पर चर्चा की गई. इसमें डॉ. सुशीला( गायनेकोलॉजिस्ट) डॉ. रश्मि गुप्ता, डॉ. इला गुप्ता ( क्लाउड 9 अस्पताल) डॉ श्वेता गर्ग शामिल हुई. इसमें महिलाओं के जीवन में काम और परिवार के बीच संतुलिन कैसे बनाया जाए इस पर चर्चा की गई.फेलिक्स हॉस्पिटल की डायरेक्टर और पीडियाट्रिशियन डॉ रश्मि गुप्ता ने कहा कि कई बार डॉक्टरों को अपने परिवार से ज्यादा प्राथमिकता मरीज को देनी होती है. अगर मरीज गंभीर स्थिति में है तो उसको ट्रीटमेंट देना ही डॉक्टर का धर्म है. चूंकि उन्होंने डॉक्टर का प्रोफेशन को चुना है तो इसको निभाना भी उनकी जिम्मेदारी है. कई मामलों में ऐसा भी हुआ है कि उन्होंने अपने बच्चे कि किसी परेशानी के समय में भी अस्पताल में इमरजेंसी में भर्ती हुए बच्चे का इलाज किया है. डॉ रश्मि ने कहा कि डॉक्टरों के लिए वर्क लाइफ बैलेंस जरूरी है, लेकिन एक डॉक्टर के नाते मरीजों की सेवा उनका धर्म है.