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उत्तर प्रदेश के कानपुर में रघुनाथपुर के पांचालेश्वर महादेव की बहुत महिमा है. लोकमत के मुताबिक महाभारत कालीन इस पांचालेश्वर महादेव की स्थापना द्वापर युग में पांडवों की महारानी द्रोपदी ने किया था. द्रोपदी महाभारत की लड़ाई में पांडवों की पूजा के लिए यहां भगवान शिव की पूजा करती थी. इसके लिए उन्होंने भगवान कृष्ण के कहने पर खुद अपने हाथों से शिवलिंग की स्थापना की. हालांकि आधुनिक भारत में जब अंग्रेजों से छिपकर नाना राव पेशवा यहां ठहरे थे तो उन्होंने इस स्थान पर मंदिर का निर्माण कराया. मान्यता है कि इस मंदिर में भगवान शिव की पूजा से असाध्य शारीरिक कष्ट भी दूर हो जाते हैं.मंधना से करीब 5 किलोमीटर दूर रघुनाथपुर गांव में स्थित मंदिर में दूर दूर से भक्त आते हैं भोले नाथ को कांवड़ चढ़ाकर मनौतियां मांगते हैं.इस मंदिर में पुजारी दिनेश त्रिवेदी कहते हैं जुए में हारने के बाद कौरवों ने महारानी द्रोपदी का भरी सभा में चीर हरण का प्रयास किया था. इसके लिए दुर्योधन का भाई दुशासन द्रोपदी का केश पकड़ कर घसीटते हुए राज्य सभा में ले आया था.
उसी समय द्रोपदी ने शपथ ले लिया था कि दुशासन की छाती के लहू से केश धोने के बाद ही इन्हें बांधेगी.इसके बाद उन्हें 12 वर्ष का बनवास और एक वर्ष काअज्ञातवास हो गया. उन्होंने बताया कि बनवास के दौरान पांडवों ने एक साल मंधना में गुजारे थे. इस दौरान द्रोपदी ने कौरवों के साथ संभावित युद्ध में विजय के लिए यहां भगवान शिव की कठिन उपासना की थी. पुजारी दिनेश त्रिवेदी के मुताबिक पांचाली द्वारा स्थापित होने की वजह से ही इस मंदिर का नाम पांचालेश्वर महादेव पड़ गया. रघुनाथपुर गांव के बुजुर्गों की माने तो 18वीं शताब्दी में अंग्रेजों से नाना राव पेशवा लोहा ले रहे थे. इस दौर में समय थोड़ा खराब आया तो वह यहां सेना के साथ मजदूरों का वेश में छिपे थे.यहां प्रवास के दौरान नाना राव पेशवा ने भी पांचालेश्वर महादेव की पूजा की और विजयी होने के बाद इस स्थान पर भव्य मंदिर का निर्माण कराया. ग्रामीणों के मुताबिक पेशवा ने यहां पर एक कुआं भी बनवाया था. यह कुआं आज भी मौजूद है, जहां भोले के भक्त कांवड़ चढ़ाकर अपनी मन्नत मांगते हैं.
इस मंदिर में शिवलिंग के अलावा बजरंगबली, कार्तिकेय और माता पार्वती के साथ नंदी और आशा मां की प्रतिमा भी स्थापित है. बाबा पांचालेश्वर महादेव के शिवलिंग का पत्थर बेहद चमकीला है और अंधेरे में भी चमकता है.पुजारी के मुताबिक हाल तक इस शिवलिंग के पास पांच सर्प हमेशा मौजूद रहते थे. लेकिन कुछ वर्षों से यह सर्प नजर नहीं आ रहे. ऐसे में इन सर्पों की आकृति मंदिर के अंदर बना दी गई है. उन्होंने बताया कि इस मंदिर के अंदर अक्सर सर्प आते जाते रहते हैं. ऐसे में मंदिर में पूजा के बाद भक्तगण इन सर्पों के लिए दूध रखना नहीं भूलते. पुजारी के मुताबिक इसके पीछे की भी एक कहानी प्रचलन में है. बताया जाता है कि यहां शिवलिंग पर हमेशा सोना चढ़ा मिलता था. एक बार कुछ चोर सोना चुराने की नीयत से मंदिर में घुस आए, जिन्हें सर्पों ने डस लिया था.