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सचमुच जादुई है लाल डायरी, गहलोत जादूगर हैं तो गुढ़ा उनका जिन्न

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ये तो गलत बात है, साफ बेईमानी है. जब मालूम है कि गुढ़ा को अशोक गहलोत सरकार का गूढ़ रहस्य पता है तो उसे दुलार कर-पुचकार कर रखना चाहिए था. बंदा फूट-फूट कर मीडिया के सामने रो रहा है. रो रो कर बता रहा है कि विधानसभा में घुसने से रोकने के लिए पचास लोगों ने उस पर हमला किया. उससे लाल डायरी छीनने के लिए गहलोत सरकार ने जान लगा दी. फिर भी बंदे ने सदन में घुस कर वही लाल डायरी लहरा दी. अब यही लाल डायरी गहलोत सरकार के लिए लाल किताब साबित होने जा रही है. लोकतंत्र में विरोध की सबसे सही जगह सदन होता है. ये बात कांग्रेसियों से बेहतर कौन जानता है.संसद में विरोध करने तक के लिए तरस जाते हैं. तब बाहर आ कर मीडिया में दहाड़ते हैं कि लोकतंत्र की हत्या हो गई. राजेंद्र गुढ़ा भी इसी भावना के साथ लाल डायरी लेकर राजस्थान विधानसभा पहुंचे. गुढ़ा ने जब सदन में बोलने की कोशिश की तो मार्शलों ने सदन से घसीट कर बाहर कर दिया गया. यही नहीं, गुढ़ा का कहना है कि उनको मुक्का मारा गया. घसीटा गया. मनेकि लोकतंत्र सिर्फ कांग्रेस के लिए है, गुढ़ा के लिए नहीं. आप करें तो रासलीला, गुढ़ा करे तो कैरेक्टर ढीला. अब उनके करुण क्रंदन को पूरी मीडिया मजे ले ले कर सुन रही है. और तो और मणिपुर का मुद्दा भी काग्रेस के हाथ से निकल गया.

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अपने गिरेबां में झांको कह कर दिखाया आईना

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गुढ़ा ने मणिपुर हिंसा पर अत्याचार पर सवाल उठाने पर ही सवाल उठा दिया. अपने गिरेबां में झांको कह कर गहलोत सरकार को आईना दिखा दिया. महिलाओं पर अत्याचार के आंकड़े भी राज्य सरकार के खिलाफ गवाही दे रहे हैं. सफाई में कहा जा रहा है कि हमारे यहां बलात्कार की सुप्रीम कोर्ट की व्याख्या के मुताबिक केस रजिस्टर्ड हो रहे हैं. ज्यादा मामले दर्ज करना अब सरकार को महंगा पड़ रहा है. बीजेपी को भी कांग्रेस सरकार पर दहाड़ने का मौका मिल रहा है. बीजेपी भी समझ गई है कि मणिपुर पर बचाव की मुद्रा में आने के बजाय दूसरे राज्यों में महिलाओं पर अत्याचार के मामले उठाने में ही समझदारी है. वरना तो ये मुद्दा विधानसभा चुनाव के लिए भी भारी है.

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गहलोत ने आनन फानन में गुढ़ा को किया बर्खास्त

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उधर गहलोत ने भी आननफानन में गुढ़ा को बर्खास्त कर दिया. चोट खाए शेर को और खूंखार बना दिया. सब जानते है कि गुढ़ा की जुबान कतरनी की तरह चलती है. लेकिन उसे दुखी करने से भला क्या हासिल हुआ. अब बीजेपी ने लाइफ साइज़ लाल किताब तैयार कर ली. भ्रष्टाचार कृत लाल किताब जिसका नाम रखा है. अब गहलोत की लाल किताब ले कर सड़कों पर बीजेपी उतरेगी. इसके नाम पर सैकड़ों कहानियां गढेगी. जैसे बोफोर्स को लेकर वीपी सिंह ने एक चक्रव्यूह रचा था. बाद में भले ही माफी मांगनी पड़ी, लेकिन 1989 में तो कांग्रेस का बेड़ा डुबो दिया था.

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खुली डायरी खाक की, बंद डायरी लाख की

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खुली डायरी खाक की, बंद डायरी लाख की. जो कभी गहलोत का तारनहार रहा, ईडी-सीबीआई के छापों के दौरान स्पाइडर मैन बन कर आरटीडीसी के चैयरमैन धर्मेंद्र राठौड़ के घर से वो लाल डायरी उठा लाया. अब उसी स्पाइडरमैन की दुश्मनी महंगी पड़ रही है.गुढ़ा का दावा है कि अगर सेंट्रल एजेंसियों के हाथ ये डायरी लग जाती तो गहलोत जेल तो जाते ही, कुर्सी भी जाती. किसी शायर ने ठीक ही कहा है कि कुछ तो मजबूरियां रहीं होगी उनकी, वरना कोई यूं ही बेवफा नहीं होता. लिहाजा असली सवाल तो ये है कि गहलोत ने अपने दुलारे राजेंद्र गुढ़ा को दिया क्या. और गुढ़ा ने गाढ़े वक्त पर गहलोत के लिए किया क्या. जब सचिन अपने समर्थक विधायकों को लेकर हरियाणा पहुंच गए थे.

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…तब तो गुढ़ा गहलोत के जिगर का टुकड़ा थे

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गहलोत के राजयोग के सितारे गर्दिश में आ गए थे. तब गुढ़ा अपने साथ बीएसपी के छह विधायक लेकर कांग्रेस में समा गए थे. तब तो गहलोत भी मानते थे कि ये सरकार गुढ़ाजी की कृपा से ही चल रही है. इसी व्यवस्था की वजह से सचिन पायलट अपने एमएलए के साथ उल्टे पांव जयपुर लौट लिए थे. तब तो गुढ़ा गहलोत के जिगर का टुकड़ा थे. बदले में राज्यमंत्री का दर्जा एक टुकड़े की तरह फेंक दिया. और उसी विभाग के कैबिनेट मंत्री के रूप में रमेश मीणा को बिठा दिया. बिना कमाई के लाल बत्ती देने में भला कौन सी भलाई है. जबकि मीणा के पास तो असली मलाई है. खुद को जादूगर मान बैठने का यही नुकसान होता है. हुडिनी बनें बगैर तालाबंद बक्से में बैठ कर पानी में उतरन का यही अंजाम होता है.

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गुढ़ा की काली डायरी तैयार कर लेते तो ये हश्र नहीं होता

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वरना गहलोत ने भैरोसिंह शेखावत जी से ही कुछ सीख लिया होता. पुराने पत्रकार बताते हैं कि जब उनके खिलाफ पार्टी, सरकार या विपक्ष का कोई नेतागुढ़ा बनने की कोशिश करता था. शेखावतजी उसे बुला कर सामने बिठाते थे. अपने पीए को सबसे ऊपर वाली फाइल निकालने को कहते थे. कहते थे कि विधानसभा में ये कागज़ात रखवा दिए जाएंगे. चुपचाप दोस्ती का हाथ बढ़ा देता था अगर वो समझदार होता था. कार्रवाई भी होगी सूद में बदनामी भी मिलेगी, वो ये जानता था. लेकिन खुद को गुरू मानने वाले गहलोत ने ये गुर नहीं सीखा. अगर अपनी लाल डायरी के जवाब में गुढ़ा की काली डायरी तैयार कर लेते तो ये हश्र नहीं होता.

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गहलोत की लाल डायरी को लेकर खबरों का बाज़ार गरम

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अब राजस्थान भर में गहलोत की लाल डायरी को लेकर खबरों का बाज़ार गरम है. गुढ़ा भी जानता है कि अभी ही चोट कर दो लोहा गरम है. उनका कहना है कि इस डायरी को उसने धर्मेंद्र राठौड़ के ठिकाने से जा कर अपने कब्ज़े में लिया. उन्होंने वैसा ही किया है जैसा गहलोत जी ने उन्हें कहा. अब लाल डायरी छीन कर गहलोत सरकार इतरा रही है. धर्मेंद्र राठौड़ गहलोत के सबसे मुंह लगे मंत्री हैं, सो ये बात बीजेपी और मीडिया जम कर उठा रही है. गहलोत की लाल डायरी में क्या है, ये पहेलियां बुझाई जा रही है. गुढ़ा का कहना है कि असंतुष्ट विधायकों को मनाने के लिए बूट पालिश से लेकर उनकी तेल मालिश तक का हिसाब है इस डायरी में. तो राजस्थान सरकार को कांग्रेस का एटीएम बताने वाली बीजेपी को भी बैठे ठाले मुद्दा मिल गया है. जो काम सौ रावण मिल कर भी नहीं कर सकते, वो काम एक विभीषण ने चुटकी में कर दिया है.

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कांग्रेस को दुश्मनों की कभी जरूरत ही नहीं रही

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कांग्रेस को दुश्मनों की कभी जरूरत ही नहीं रही. उसने अपनों से दुश्मनों सा बर्ताव किया तो उसके अपनों ने दुश्मनों की कमी कभी खलने भी नहीं दी. हर बार बीएसपी से टिकट ले कर कांग्रेस सरकार में मंत्री बनने वाले गुढ़ा को राजस्थान का मौसम विज्ञानी माना जाता है. गहलोत की बेरुखी ने उन्हें बेवफा बना दिया. पायलट से नजदीकियां बढ़ा ली, साथ ही सचिन का काम आसान भी कर दिया. तब से पायलट ने प्लास्टिक सर्जरी करवा कर हर दम मुस्कुराने वाला मुखौटा लगा लिया है. तो गहलोत के खिलाफ हर मुद्दे को उछालनें का जिम्मा गुढ़ा ने सम्हाल लिया है. गुढ़ा को गूजरों का समर्थन मिला हुआ है. एक तरह से पायलट से बिरादरी का भी रिश्ता है.

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गहलोत जादूगर हैं तो गुढ़ा उनका जिन्न

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गहलोत जादूगर हैं तो गुढ़ा उनका जिन्न. लेकिन अपने आका की बेवफाई का उन्हें अंदाजा था. सो चिराग से निकल भागा था. तीन साल पहले लाल डायरी को गुढ़ा ने अपने कब्जे में ले लिया था. जादू से डायरी अपने पास मंगाने का मंतर गहलोत को नहीं आता था. मज़े की बात ये है कि जिस शख्स ने कांग्रेस के पुराने वफादार सिपाही सचिन पायलट पर भरोसा नहीं किया, उसने बीएसपी से आए दलबदलू पर इतना भरोसा कैसे कर लिया. कांग्रेसियों की खासियत यही रही कि दुश्मनों पर निछावर हो जाते हैं, अपनों से पूरी अदावत निभाते हैं. एक गुलाम जब राज्यसभा से आजाद हुआ तो वजीरे आजम जार-जार रो पड़े. इन आंसुओं का असर रहा कुछ इस कदर कि कांग्रेस के नबी समझे जाने वाले शख्स ने पार्टी छोड़ दी और अपने नेता के खिलाफ राशन-पानी लेकर टूट पड़े.

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अब गुढ़ा की वजह से गहलोत की बन आई

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इसी तरह गहलोत भी गदर काटने को तैयार बैठे थे. आलाकमान के कारिंदों को ही बेइज्जत करवा कर दिल्ली रवाना कर चुके थे. मुश्किल से टॉप लीडरशिप ने अपनी इज्जत बचाई. तो अब गुढ़ा की वजह से गहलोत की बन आई. बीजेपी औरगुढ़ा से ज्यादा राजस्थान की आधी कांग्रेस खुश है, यही है भी सच्चाई. अब कहा जा रहा है कि गुढ़ा के पास लाल डायरी है ही नहीं. अगर नहीं थी तो छीनने की कोशिश की ही क्यूं थी. और अगर छीन ली है तो ये सोचना बेवकूफी है. गुढ़ा गहलोत नहीं है, उन्होंने गूढ़ ज्ञान की डिजिटल कॉपियां भी बना ली होंगी. लेकिन गुढ़ा भी इस गूढ़ रहस्य को बगैर मुफीद सौदे के जगजाहिर करने को तैयार नहीं. कौन कहता है कि उसके दावों का कोई खरीदार नहीं.

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गुढ़ाजी बयान बहादुर है

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गुढ़ाजी बयान बहादुर है, ये सबको पता है. अब ज़ोर-जोर से चिल्ला रहे हैं कि भाया रे भाया, खूब खाया. हमारी सरकार ने तो चालीस पर्सेंट से ज्यादा कमीशन खाया. लोग क्यों न करें गुढ़ा का यकीन. बरसों तक जो रहा गहलोत का साया है. गुढ़ा राजस्थान में गहलोत-वसुंधरा की मिलीजुली सरकार बता रहे हैं. जाहिर है कि दुधारी तलवार चला रहे हैं. साफ है कि पार्टी में वसुंधरा राजे की विरोधी लॉबी से भी तालमेल बनाया गया है. खाली ही सही, सचमुच जादुई है लाल डायरी. दोनों पार्टियों के भीतर की सियासत की वजह है लाल डायरी. इस डायरी की वजह से चुनाव के वक्त कल्याणकारी योजनााओं को लागू कर चुनाव जीतने का गहलोत का सपने में खलल पड़ गया है. कांग्रेस की दोबारा सत्ता में वापसी की संभावना पर ग्रहण लग गया है.

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