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अविवाहित महिलाओं को किराए की कोख यानी की सरोगेसी की अनुमति देने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करने के दौरान जस्टिस बीवी नागरत्ना की बेंच ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया. बेंच से वरिष्ठ वकील सौरभ कृपाल ने कहा कि अगर, कोई महिला बच्चा चाहती है, लेकिन गर्भधारण नहीं कर सकती है तो हम उसे शादी के लिए मजबूर नहीं कर सकते. इन नियमों में भारी अंतर है, जो अनुच्छेद 14 और 21 को प्रभावित करता है.
अपने युग्मकों का उपयोग नहीं कर सकती महिला
मामले पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि यदि महिला को गोद लेना है तो (सरोगेसी में) वह अपने स्वयं के गेमेट्स का उपयोग नहीं कर सकती. हम इस पर अतिशयोक्ति नहीं करेंगे. केवल इसी आधार पर हम यह याचिका खारिज कर सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि भारत में अविवाहित महिलाओं के लिए कितनी एआरटी प्रक्रियाएं हुई हैं? हमें भारतीय समाज की नब्ज का भी ध्यान रखना होगा. सुप्रीम कोर्ट ने इन दलीलों पर नोटिस जारी कर चार हफ्तों में विभिन्न पक्षकारों से जवाब तलब किया.
बीते दिनों भी आया था बड़ा फैसला
पिछले महीने बॉम्बे हाई कोर्ट के सामने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक हलफनामे में कहा था कि डोनर्स के शुक्राणु और एग्स का सरोगेसी के लिए उपयोग नहीं किया जा सकता. उन्होंने कहा है कि इससे बच्चे के साथ माता-पिता का मजबूत रिश्ता नहीं बन पाएगा. स्वास्थ्य मंत्रालय ने डोनर्स गेमेट्स का उपयोग करने की अनुमति मांगने वाली याचिका को भी खारिज करने का अनुरोध किया। मंत्रालय ने कहा कि नए सरोगेसी नियम केवल सरोगेसी के लिए सेल्फ गेमेट की अनुमति देते हैं.
क्या है सरोगेसी?
आसान शब्दों में अगर इसे समझें तो दूसरी महिला के कोख को प्रयोग में लेने को सरोगेसी कहा जाता है. यानी एक कपल का बच्चा किसी दूसरी महिला की कोख में पलता है. सरोगेसी की सुविधा वे महिलाएं ले सकती हैं, जो शारीरिक समस्या के कारण खुद गर्भवती नहीं हो पातीं. सरोगेसी दो तरह की होती है- ट्रेडिशनल और जेस्टेशनल. ऐसे कई देश हैं जहां सरोगेसी को अवैध माना जाता है. हालांकि, भारत में सरोगेसी मान्य है, लेकिन इसके कुछ नियम कानून भी हैं, जिनके पालन के साथ ही इस प्रक्रिया को अपनाया जा सकता है. इसे लेकर नियम कानून हाल ही में लाए गए हैं, वो भी इसलिए क्योंकि सरोगेसी को लोग व्यवसायिक रूप न दे सकें और इसका उपयोग जरूरतमंद कपल उठा सकें.