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INDIA गठबंधन में सबकी अपनी डफली, अपना राग, 5 राज्यों की 223 सीटों पर उलझा खेल

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लोकसभा चुनाव में बीजेपी से मुकाबले के लिए विपक्षी पार्टियों ने इंडिया गठबंधन बनाया है. पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के दौरान इंडिया गठबंधन के घटक दलों में आपसी सहमति नहीं बन पाई. चाहे वह मध्य प्रदेश हो, छत्तीसगढ़ या फिर राजस्थान. सभी ने एक-दूसरे के खिलाफ उम्मीदवार उतारे और जमकर बयानबाजी की. परिणाम साफ है, हिंदी पट्टी के इन तीन राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में बीजेपी ने कांग्रेस सहित विपक्षी दलों को पराजित कर सत्ता पर काबिज हो गई है. विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की पराजय के बाद आनन-फानन में इंडिया गठबंधन की दिल्ली में बैठक हुई. इस बैठक में यह निर्णय लिया गया कि 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए सीट-बंटवारे की बातचीत को जल्द से जल्द अंतिम रूप दिया जाना चाहिए. दिल्ली में हुई बैठक में इस बात पर जोर दिया गया कि मुख्य फोकस सीट-बंटवारे पर होनी चाहिए. 31 दिसंबर की समय सीमा तय की गई, अब इस समय सीमा में केवल एक दिन बचा है, लेकिन सीट बंटवारे पर घमासान के सिवा कोई फॉमूला या निष्कर्ष नहीं निकल पाया है.

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इंडिया गठबंधन की बैठक में संसद से 146 सांसदों के निलंबन के खिलाफ संयुक्त रूप से पूरे देश में प्रदर्शन का निर्णय किया गया था, लेकिन इंडिया गठबंधन का यह प्रदर्शन केवल दिल्ली तक ही सीमित रहा. हर राज्य में घटक दलों ने अपने तरीके से अलग-अलग प्रदर्शन किया. इंडिया गठबंधन के बैनर तले कोई भी प्रदर्शन नहीं हुआ. अब हर राज्य में घटक दलों के बीच औपचारिक या अनौपचारिक रूप से सीट बंटवारे को लेकर बातचीत और दावे-प्रतिवादे शुरू हो गए, लेकिन देखा जा रहा है कि हर पार्टी की अपनी डफली और अपना राग चल रहा है.

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5 राज्यों की 223 सीटों पर मचा घमासान

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पश्चिम बंगाल में चाहे तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी हों या फिर उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव या पंजाब में आम आदमी पार्टी या फिर महाराष्ट्र में शिवसेना उद्धव गुट और एनसीपी हो या फिर बिहार के सीएम नीतीश कुमार या उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव हों. सभी राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन की बात कर रहे हैं, लेकिन अपने राज्यों में अपनी पकड़ या सहयोगी पार्टियों को कम से कम सीट छोड़ने को तैयार हैं. ऐसे में कांग्रेस के लिए बड़ी मुश्किल है कि कैसे अपने राज्यों में ताकतवर इन क्षेत्रपों को संतुष्ट करती है या कैसे सीटों को लेकर समझौता के अंतिम बिंदु तक पहुंचती है. आइए समझते हैं कि पांच राज्यों बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और पंजाब की 223 सीटों पर कैसे विपक्ष उलझा हुआ है.

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नीतीश ने कांग्रेस-राजद की उड़ाई नींद

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इस सप्ताह सबसे बड़ी उथल पुथल बिहार की सियासत को लेकर हुई. बिहार की सियासत पर सभी की निगाहें टिकी हुई थी. राजद समर्थक माने जाने वाले ललन सिंह की जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से छुट्टी हो गई और नीतीश कुमार ने राज्य के साथ-साथ जदयू संगठन पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली है. इसके साथ ही यह कयास तेज हो गए हैं कि क्या नीतीश कुमार इंडिया गठबंधन में रहेंगे या फिर राजग की ओर से कदम बढ़ाएंगे? बिहार की 40 लोकसभा सीटों पर सभी पार्टियों की नजर है. इंडिया गठबंधन में कांग्रेस, जदयू और राजद सहित कुल छह पार्टियां शामिल हैं. कांग्रेस ने राज्य की कुल नौ सीटों पर दावेदारी की है, जबकि जदयू और राजग 16-16 सीटों की दावेदारी कर रही है. लेफ्ट भी सीटें मांग रही हैं. ऐसे में कांग्रेस को अपनी दावेदारी कम करनी होगी. नीतीश कुमार ने राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद कहा भी है कि बड़ी पार्टी को बड़ा दिल दिखाना होगा.

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ममता की चाल में उलझी कांग्रेस

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इसी तरह से पश्चिम बंगाल में इंडिया के घटक दलों कांग्रेस, माकपा और तृणमूल कांग्रेस में घमासान मचा है. तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी ने साफ कर दिया है कि टीएमसी 2024 का लोकसभा चुनाव राज्य में अकेले लड़ेगी, जबकि इंडिया गठबंधन राष्ट्रीय स्तर पर मौजूद रहेगा. इसके मतलब साफ है कि टीएमसी का पश्चिम बंगाल में इंडिया गठबंधन के घटक दलों कांग्रेस या वाम मोर्चा के साथ सीट-बंटवारा नहीं होगा. ममता बनर्जी ने कांग्रेस को दो सीटें देने की पेशकश की है, जबकि माकपा के लिए एक भी सीट छोड़ने के लिए तैयार नहीं है, जबकि कांग्रेस सात सीटें मांग रही है. ममता बनर्जी के बयान के जवाब में अधीर चौधरी का भी बयान आ गया है कि ममता वास्तव में गठबंधन चाहती ही नहीं हैं. कांग्रेस अकेले लड़ती रही है और आगे भी उनकी लड़ाई जारी रहेगी. पश्चिम बंगाल में, कांग्रेस ने 2019 का लोकसभा अकेले चुनाव लड़ा था. उस समय कांग्रेस नेताओं ने माकपा के साथ सीट साझा करने की मांग की थी, लेकिन कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला लिया था. 42 सीटों में से कांग्रेस ने केवल 2 सीटें जीतीं जबकि टीएमसी ने 22 सीटें जीतीं थी और बीजेपी ने पहली बार 18 सीटों पर जीत हासिल की थी. अब तक के राजनीति बयानबाजी से साफ है कि बंगाल के सभी घटक दलों में समझौता होना असंभव तो नहीं लेकिन नामुमकिन है.

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कांग्रेस, उद्धव और पवार के बीच घमासान

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कुछ यही हाल महाराष्ट्र का भी है. 2024 के लोकसभा चुनावों में महाराष्ट्र न केवल कांग्रेस के लिए बल्कि घटक दल शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) और एनसीपी (शरद पवार गुट) के लिए एक महत्वपूर्ण राज्य है. कांग्रेस महाराष्ट्र में अपना आधार मजबूत करने के लिए कई रणनीतियां बना रही है. कांग्रेस ने न्याय यात्रा 20 मार्च को मुंबई में समाप्त करने का ऐलान किया है. कांग्रेस ने राज्य में ताकत दिखाने के लिए नागपुर में अपना 139 वां स्थापना दिवस मनाया और राहुल गांधी ने बीजेपी पर जमकर हमला बोला, लेकिन इसके साथ ही उद्धव ठाकरे की शिव सेना ने महाराष्ट्र में 23 सीटों की मांग की है, लेकिन कांग्रेस ने मांग खारिज कर दी. इसे लेकर शिवसेना उद्धव ठाकरे गुट, एनसीपी और कांग्रेस के नेताओं में जमकर बयानबाजी हो रही है. कांग्रेस नेता संजय निरुपम ने संजय राउत को आज यह सलाह दे डाली कि वह कांग्रेस को नसीहत देना बंद करें और यदि हमला बोलना है, तो बीजेपी पर बोले कांग्रेस पर नहीं. बता दें कि साल 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस एवं एनसीपी ने मिलकर चुनाव लड़ा था. इस चुनाव में राज्य की 48 सीटों में से कांग्रेस को 1 सीट और एनसीपी को 4 ही मिले थे. 2019 का चुनाव भी शिवसेना और बीजेपी ने मिलकर लड़ा था. बीजेपी ने 23 सीटें और शिवसेना ने 18 सीटें जीती थी.

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यूपी में सपा के तेवर से कांग्रेस परेशान

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उत्तर प्रदेश का हाल अन्य राज्यों से अलग नहीं है. पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के दौरान सपा और कांग्रेस में सीटों के लेकर जमकर बयानबाजी हुई थी. सपा और कांग्रेस ने एक-दूसरे के खिलाफ उम्मीदवार उतारे थे. कांग्रेस आलाकमान को हस्तक्षेप करना पड़ा था.राज्य की कुल 80 सीटों में से सपा कांग्रेस को 15 सीट छोड़ने का प्रस्ताव दिया है. पांच या छह सीटें राष्ट्रीय लोकदल, एक सीट भीम आर्मी को छोड़ने की बात कही है, जबकि सपा लगभग 58 सीटों पर खुद चुनाव लड़ना चाहती है. केंद्र की राजनीति में उत्तर प्रदेश पर पकड़ होना काफी अहम है. ऐसे में कोई भी पार्टी कम सीट पर राजी नहीं है. हाल में ही कांग्रेस संगठन ने फेरबदल में प्रियंका गांधी से उत्तर प्रदेश का प्रभार वापस लेकर यह संकेत दिया है कि प्रियंका गांधी अपनी बड़ी भूमिका में नजर आएंगी. ऐसे में देखना होगा कि सीट शेयरिंग में कांग्रेस कितना त्याग कर पाती है और सपा के दावे को मान पाती है. बता दें कि साल 2019 लोकसभा चुनाव में कुल 80 सीटों में से एनडीए ने 64 सीटों पर जीत हासिल पर विपक्षी पार्टियों को करारा झटका दिया था. इनमें बीजेपी ने 62 सीटें जीती थी. अपना दल (सोनेलाल) दो सीटें, महागठबंधन बहुजन पार्टी ने 10, समाजवादी पार्टी ने 5 और कांग्रेस ने एक सीट जीती थी, जबकि राष्ट्रीय लोकदल को एक भी सीट नहीं मिली थी.

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पंजाब में कांग्रेस-APP आमने-सामने

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पंजाब के हालात अन्य राज्यों से अलग नहीं है. पंजाब के आप नेताओं ने ऐलान कर दिया है कि वह अकेले चुनाव लड़ेगी. राज्य के नेताओं ने पहले सार्वजनिक रूप से कहा है कि वे चाहते हैं कि पार्टी पंजाब में अकेले चुनाव लड़े. हाल में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पंजाब के बठिंडा में रैली में साल 2024 के लोकसभा चुनाव में सभी 13 सीटों पर सत्तारूढ़ आप के उम्मीदवार को वोट देने की अपील की थी. इससे कांग्रेस के साथ सीट बंटवारे को लेकर टकराव सामने आ गया है. पंजाब में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी आमने-सामने हैं. बता दें कि साल 2019 के लोकसभा चुनाव 13 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस ने आठ ,जबकि आप ने केवल एक सीट ही जीत पाई थी. इसी तरह से कांग्रेस को दिल्ली, झारखंड सहित दक्षिण भारत के राज्यों में क्षत्रपों की मांग से जूझना पड़ रहा है.साफ है कि लोकसभा में गठबंधन का रास्ता आसान नहीं है.

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