रिपोर्ट टाइम्स।
राजस्थान में भाषा को लेकर बड़ा बदलाव होने जा रहा है। जहां शब्द केवल संवाद का माध्यम नहीं होते, बल्कि वे हमारी संस्कृति और सोच का प्रतिबिंब भी होते हैं, वहीं राज्य की पुलिस भाषा के स्तर पर एक नई दिशा में कदम बढ़ाने की तैयारी कर रही है।
राजस्थान पुलिस अब उर्दू शब्दों को हटाकर हिंदी के सरल और प्रचलित शब्दों को अपनाने की दिशा में आगे बढ़ रही है। यह बदलाव राज्य के गृह राज्य मंत्री जवाहर सिंह बेढम की पहल पर हो रहा है। पुलिस महकमे ने ऐसे उर्दू शब्दों की पहचान शुरू कर दी है, जो रोजमर्रा के कामकाज में उपयोग होते हैं, और उनके हिंदी विकल्पों की तलाश तेज़ कर दी है। माना जा रहा है कि यह पहल न केवल संवाद को और स्पष्ट बनाएगी, बल्कि स्थानीय भाषा के प्रति जुड़ाव को भी मजबूत करेगी।
वैकल्पिक शब्दों का ब्योरा जुटा रहा महकमा
पुलिस महानिदेशक (DGP) यू. आर. साहू ने पिछले महीने अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (प्रशिक्षण) को एक चिट्ठी लिखकर उर्दू शब्दों का ब्योरा जुटाने का निर्देश दिया था, जो पुलिस के सामान्य कामकाज में प्रयोग होते हैं। इस पहल का उद्देश्य यह जानना था कि पुलिसिंग में उर्दू के कौन से शब्द प्रयुक्त हो रहे हैं और उनकी जगह हिंदी के कौन से शब्दों का इस्तेमाल किया जा सकता है।
कांग्रेस ने राजस्थान सरकार पर साधा निशाना
कांग्रेस महासचिव स्वर्णिम चतुर्वेदी ने इस बदलाव की प्रक्रिया को लेकर राजस्थान सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि सरकार को इस तरह के आदेशों के बजाय कानून-व्यवस्था सुधारने और अपराधों पर नियंत्रण करने पर ध्यान देना चाहिए। चतुर्वेदी ने आरोप लगाया कि राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़ती जा रही है, और सरकार इसे नजरअंदाज कर रही है।
हिंदी के विकल्पों से बदले जाएंगे उर्दू के ये शब्द
कांग्रेस नेता ने कहा कि लंबे समय से उपयोग में आए उर्दू शब्दों को बदलने के बजाय सरकार को अपराध नियंत्रण और कानून व्यवस्था को बहाल करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। हालांकि, पुलिस महकमे में उर्दू के कई शब्द आमतौर पर उपयोग किए जाते हैं, जिनमें मुकदमा (मामला), मुल्जिम (आरोपी), मुस्तगिस (शिकायतकर्ता), इल्जाम (आरोप), इत्तिला (सूचना), जेब तराशी (जेब काटना), फर्द बरामदगी (वसूली मेमो) जैसे शब्द शामिल हैं।