रिपोर्ट टाइम्स।
हिंदू धर्म में गोत्र को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है. मान्यताओं के अनुसार, गोत्र ऋषियों की परंपरा से सबंधित है. ब्राह्मण गोत्र को बहुत महत्व देते हैं. क्योंकि मान्यता है कि हर ब्राह्मण का रिश्ता ऋषियों के कुल से होता है. जो भी भारत में जन्म लेता है उसका कोई न कोई कुल, गोत्र अवश्य होता है, लेकिन क्या संसार और सांसारिक मोह माया का त्याग कर चुके नागा साधुओं का भी गोत्र होता है. आइए जानते हैं.
साधु संतों के होते हैं गोत्र
पुरी शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती जी के अनुसार, जो साधु संत होते हैं उनके भी गोत्र होते हैं. भले ही साधु संत इस संसार की मोह माया का त्याग कर ऊपर उठ चुके होते हैं. उन्होंने बताया कि श्रीमद्भागवत के चतुर्थ स्कंद के अनुसार, साधु संत सब त्याग चुके होते हैं. ऐसे में उनका गोत्र अच्युत माना जाता है. क्योंकि मोह माया को त्यागने के बाद साधु संतों का जुड़ाव सीधे ईश्वर से हो जाता है.
नागा साधुओं का होता है ये गोत्र
नागा साधुओं को संसार से कोई मतलब नहीं रह जाता. वो सभी सांसारिक मोह माया से ऊपर उठ चुके होते हैं. नागा साधु धर्म के रक्षक कहे जाते हैं. वो हमेशा भगवान की भक्ति में लीन रहते हैं. नागा साधु भगवान शिव की उपासना करते हैं. सब कुछ त्याग देने के बाद नागा साधुओं का गोत्र भी अच्युत माना जाता है.
गोत्र पंरपरा की शुरुआत कब हुई?
बता दें कि गोत्र पंरपरा की शुरुआत प्राचीन काल में हुई. गोत्र पंरपरा की शुरुआत चार ऋषियों से हुई. ये ऋषि हैं अंगिरा, कश्यप, वशिष्ट और भगु. इन चार ऋषियों के बाद जमदग्नि, अत्रि, विश्वामित्र और अगस्त मुनि भी इसका हिस्सा हो गए. सरल शब्दों में कहा जाए तो गोत्र का मतलब एक तरह से पहचान है.
जब गोत्र नहीं पता होता तब क्या?
जिस किसी ब्राह्मण को उसका गोत्र नहीं पता होता तो साधु संत उसे कश्यप ऋषि का गोत्र दे देते हैं. गोत्र न मालूम होने पर ब्राह्मण को कश्यप गोत्र का उच्चारण करने के लिए कह दिया जाता है. गोत्र मालूम न होने पर कश्यप गोत्र इसलिए दिया जाता है, क्योंकि ऋषि कश्यप ने कई शादियां की थी. उनके कई पुत्र हुए थे. जिनके अनुसार उनके गोत्र हैं. इसलिए जिसे अपना गोत्र पता नहीं होता उसे ऋषि कश्यप के गोत्र का माना जाता है.