रिपोर्ट टाइम्स।
माघ माह के कृष्ण पक्ष को आने वाली अमावस्या को ही मौनी अमावस्या कहते है. हिंदू धर्म में मौनी और सोमवती अमावस्या का विशेष महत्व है. सोमवती अमावस्या पर शिवजी की पूजा की जाती है. वहीं मौनी अमावस्या पर जगत के पालन हार श्री हरि विष्णु की पूजा का विधान है. इस दिन भगवान विष्णु के साथ पीपल के पेड़ की भी पूजा की जाती है.
विष्णु और पीपल के पेड़ की पूजा
धार्मिक मान्यता के अनुसार, मौनी अमावस्या पर पितर धरती पर आते है, इसलिए लोग इस दिन पितरों का तर्पण, पिंडदान श्राद्ध आदि कार्य करते हैं. इसके अलावा मौनी अमावस्या के दिन पूजा-पाठ से जुड़े कई सवाल हमारे मन में आते है. जिसमें से एक यह भी है मौनी अमावस्या पर भगवान विष्णु और पीपल के पेड़ की पूजा क्यों की जाती है. इस सवाल का जवाब मौनी अमावस्या की कथा में मिलता है.
मौनी अमावस्या की पौराणिक कथा के अनुसार
मौनी अमावस्या की पौराणिक कथा के अनुसार, कांचीपुरी में देव स्वामी नाम का एक ब्राह्मण रहता था. उसके साथ बेटे थे और एक बेटी गुणवती थी. पत्नी का नाम धनवती था. उसने अपने सभी बेटों का विवाह कर दिया. उसके बाद उसने अपने बड़े बेटे को बेटी के लिए सुयोग्य वर देखने के लिए नगर से बाहर भेजा. उसने बेटी की कुंडली एक ज्योतिषी को दिखाई. कुंडली देखने बाद ज्योतिषी ने कहा कि कन्या का विवाह होते ही वह विधवा हो जाएगी. यह बात सुनकर देव स्वामी दुखी हो गया.
तब ज्योतिषी ने उसे एक उपाय बताया. कहा कि सिंहलद्वीप में सोमा नामक की धोबिन है. वह घर आकर पूजा करे तो कुंडली का दोष दूर हो जाएगा. यह सुनकर देव स्वामी ने बेटी के साथ सबसे छोटे बेटे को सिंहलद्वीप भेज दिया. दोनों समुद्र के किनारे पहुंचकर उसे पार करने का उपाय खोजने लगे. जब कोई उपाय नहीं मिला तो वे भूखे-प्यासे एक वट वृक्ष के नीचे आराम करने लगे.
उस पेड़ पर एक गिद्ध परिवार वास करता था. गिद्ध के बच्चों ने देखा दिनभर इन दोनों के क्रियाकलाप को देखा था. जब उन गिद्धों की मां उनको खाना दी, तो वे भोजन नहीं किए और उस भाई बहन के बारे में बताने लगे. उनकी बातें सुनकर गिद्धों की मां को दया आ गई. वह पेड़ के नीचे बैठे भाई बहन को भोजन दी और कहा कि वह उनकी समस्या का समाधान कर देगी. यह सुनकर दोनों ने भोजन ग्रहण किया.
क्या है कहानी?
अगले दिन सुबह गिद्धों की मां ने दोनों को सोमा के घर पहुंचा दिया. वे उसे लेकर घर आए. सोमा ने पूजा की. फिर गुणवती का विवाह हुआ, लेकिन विवाह होते ही उसके पति का निधन हो गया. तब सोमा ने अपने पुण्य गुणवती को दान किए और इससे उसका पति भी जीवित हो गया. इसके बाद सोमा सिंहलद्वीप आ गई, लेकिन उसके पुण्यों के कमी से उसके बेटे, पति और दामाद का निधन हो गया.
इस पर सोमा ने नदी किनारे पीपल के पेड़ के नीचे भगवान विष्णु की आराधना की. पूजा के दौरान उसने पीपल की 108 बार प्रदक्षिणा की. इस पूजा से उसे महापुण्य प्राप्त हुआ और उसके प्रभाव से उनके बेटे, पति और दामाद जीवित हो गए. उसका घर धन-धान्य से भर गया. इस वजह से ही मौनी अमावस्या के दिन पीपल के वृक्ष तथा भगवान विष्णु जी की पूजा की जाने लगी