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चुनाव से पहले वसुंधरा ने फेंका सियासी गठजोड़ का पासा! धुर विरोधियों को साध कर बढ़ाई बैचेनी

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राजस्थान में विधानसभा चुनाव रोचक होने के अलावा इस बार बीजेपी और कांग्रेस की अंदरूनी हलचल इस साल कई रंग दिखाएगी. कांग्रेस का खेमा जहां इन दिनों शांत है लेकिन अब बीजेपी गुट में सरगर्मियां अचानक से बढ़ गई है. गुलाब चंद कटारिया के राज्यपाल बनाए जाने और पीएम मोदी के हाल के दौसा दौरे के बाद राज्य में नए मित्रताओं और गठजोड़ की चर्चाएं जोरों पर है. हम बात कर रहे हैं राजस्थान की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे सिंधिया और बीजेपी सांसद किरोड़ी लाल मीणा की जिनकी हाल में दौसा में दिखी नजदीकियों ने विरोधियों को चिंता में डाल रखा है. दरअसल पीएम मोदी की सभा के बाद राजे और मीणा ने मंच पर काफी देर एक दूसरे से गुफ्तगू की जिसको लेकर अब सियासी गलियारों में इस अनअपेक्षित गठजोड़ को लेकर उत्सुकता है. सूबे में साल के आखिर में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले दोनों नेताओं की परवान चढ़ रही मित्रता के कई मायने निकाले जा रहे हैं. मालूम हो कि राजस्थान के राजनीतिक इतिहास में डॉ. किरोड़ी लाल मीणा और वसुंधरा राजे एक दूसरे के धुर विरोधी माने जाते हैं लेकिन पिछले कुछ समय से दोनों नेताओं को हर मौके पर एक दूसरे का साथ मिल रहा है जिससे सतीश पूनिया खेमे में एक अलग बैचेनी दिखाई दे रही है. इधर बीते दिनों वसुंधरा राजे ने किरोड़ी लाल मीणा के पेपर लीक पर चल रहे धरने को समर्थन दिया था. राजे ने उस दौरान कहा था कि किरोड़ी लाल अकेले नहीं है और हम सब उनके साथ हैं. बता दें कि इसके बाद ही मीणा ने सतीश पूनिया से अपेक्षित सहयोग नहीं मिलने पर नाराजगी जताई थी. हालांकि, बाद में किरोड़ी लाल ने कहा कि सतीश पूनिया से उनकी कोई नाराजगी नहीं है.

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राजे और किरोड़ी रहे हैं धुर विरोधी

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प्रधानमंत्री की हाल में हुई सभा के बाद दोनों नेताओं की लंबी चली बैठक को जानकार चुनावों से पहले बन रहे नए सियासी गठजोड़ के रूप में देख रहे हैं. मालूम हो कि डॉ. किरोड़ी लाल मीणा की पूर्वी राजस्थान में खासी पकड़ है और पूर्वी राजस्थान की 50 सीटों पर उनका वोटबैंक पर प्रभाव है. वहीं राजस्थान के राजनीति इतिहास में एक जमाने में राजे और किरोड़ी एक दूसरे के धुर विरोधी माने जाते रहे हैं. जानकारों का कहना है कि राजे चुनावों से पहले अपने विरोधी गुट के नेताओं का गठजोड़ तैयार कर आलाकमान को एक बार फिर पशोपेश में डाल सकती है. वहीं दूसरी तरफ एक चर्चा यह भी चल रही है कि मोदी कैबिनेट में किरोड़ी लाल मीणा को आने वाले दिनों में जगह मिल सकती है.

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पूर्वी राजस्थान में बीजेपी है कमजोर

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दरअसल राजस्थान विधानसभा चुनाव में पूर्वी राजस्थान को साधना बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती बना हुआ है. 2018 के चुनावों को देखें तो पूर्वी राजस्थान के दौसा, सवाई माधोपुर, अलवर, धौलपुर, भरतपुर और करौली जिलों में बीजेपी साफ हो गई थी. ऐसे में बीजेपी रणनीतिक तौर पर पीएम मोदी की सभाएं करवा रही हैं. हालांकि, पार्टी में अभी भी चल रही गुटबाजी आलाकमान के सामने चुनौती का एक कारण बनी हुई है. इसके अलावा बीते दिनों पूर्वी राजस्थान में राहुल गांधी की भारत जोड़ो याात्रा भी निकली थी जिसको भी जनता का जोरदार समर्थन मिला था जिसके बाद बीजेपी के राज्य इकाई के नेताओं ने अब सियासी दांवपेंच चलने शुरू कर दिए हैं.

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गुर्जर समाज की नाराज को भुनाने का मौका !

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इधर कांग्रेस में सचिन पायलट को तरजीह नहीं मिलने से गुर्जर समाज नाराज चल रहा है. माना जा रहा है कि बीजेपी इस नाराजगी का फायदा उठाना चाहती है. डॉ. किरोड़ी लाल मीणा की पूर्वी राजस्थान सक्रियता को बीजेपी एक बढ़त के तौर पर देख रही है. ऐसे में राजे की किरोड़ी से नजदीकियां विरोधी खेमे के नेताओं की धड़कनें बढ़ा रही हैं. मालूम हो कि 2018 में बीजेपी में आंतरिक विरोध के बावजूद भी राजे 72 सीट लाने में कामयाब हुई थी.

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