पुरुषों के वर्चस्व वाले कोयला खदानों में महिलाओं की एंट्री होने लगी है। सैकड़ों महिलाकर्मी कोल इंडिया से संबद्ध खदानों में अलग-अलग तरह के काम कर रही हैं, इसमें ब्लॉस्टिंग, वर्कशॉप, सिक्युरिटी, डॉक्टर-नर्सिंग समेत तकरीबन सभी फील्ड शामिल हैं। लेकिन एक्सकेवेशन यानी उत्खनन के काम के लिए एसईसीएल में पहली महिला इंजीनियर के रूप में अंकिता पुंढीर की पोस्टिंग हुई है। अंकिता फिलहाल कोरबा में मैनेजमेंट ट्रेनी के तौर पर काम कर रही हैं। ऐसा इसलिए मुमकिन हो पाया क्योंकि तीन साल पहले 4 फरवरी 2019 को खान अधिनियम, 1952 में संशोधन किया गया।
वह तोड़ती पत्थर… महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी ने सालों पहले अपनी यह कालजयी रचना इलाहाबाद की सड़कों के किनारे पत्थर तोड़ रही महिला को देखकर लिखी थी। महाकवि की इस कविता का विस्तार अब ऐसे क्षेत्र मेें भी हो चुका है, जहां अब तक सिर्फ पुरुषोें का वर्चस्व था। लेकिन अब हालात तेजी से बदल रहे हैं। देश के विकास में महिलाएं पुरुषों के बराबर योगदान दे रही हैं। ऐसे में देश की ऊर्जा की जरूरतों को पूरा करने में अहम योगदान दे रहे कोयला उद्योग भी इससे अछूते नहीं है।
4 फरवरी 2019 में एक्ट में संशोधन कर अधिसूचना जारी होने के बाद के बाद कोयला खदानों में महिला कर्मियों की एंट्री का रास्ता खुला था। उसके बाद से एसईसीएल समेत कोल इंडिया की विभिन्न कोयला खदानों में अलग-अलग विभागों में सैकड़ों महिला कर्मचारियों की नियुक्ति हो चुकी है। हाल ही में एसईसीएल में पहली लेडी एक्सकैवेशन यानी उत्खनन अधिकारी के तौर पर उत्तराखंड की रहने वाली अंकिता पुंढीर की पोस्टिंग हुई है। अंकिता ने एक साल पहले हिमाचल प्रदेश के मंडी के आईआईटी से एनर्जी साइंस में एम टेक किया है।
पहाड़ों की अंकिता को भा गईं छत्तीसगढ़ की खदानें
उत्तराखंड के रुड़की में जन्मी अंकिता ने स्कूल की पढ़ाई रुड़की से ही पूरी की। 8वीं की पढ़ाई के दौरान कल्पना चावला की कहानियां सुनकर अंकिता ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई का विचार किया और उत्तराखंड से ही बी.टेक किया। यहां पढ़ाई पूरी करने के बाद उनका कैंपस चयन होंडा के राजस्थान स्थित प्लांट में हो गया। वहां भी अंकिता इकलौती मैकेनिकल क्वालिटी इंजीनियर थीं। अंकिता ने कहा कि उत्तराखंड की तरह छत्तीसगढ़ भी बेहद खूबसूरत जगह है।