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एक महिला के लिए मां बनना जीवन का सबसे सुखद अहसास है, लेकिन कॅरिअर और देर से शादी के कारण से कई महिलाएं इस सुख से दूर रह जाती हैं। वहीं समाज में निसंतान हाेने काे लेकर एक मिथक के कारण इस बारे में बात करने से भी हिचकते हैं। बड़े शहराें में आईवीएफ तकनीक काफी पहले से है, लेकिन गांवाें में इसकी पहुंच नहीं थी। अब बीते तीन साल में जिले में कई कस्बाें व गांवाें में आईवीएफ और आईवीआर तकनीक सेंटर प्रारंभ हाे गए हैं।
2019 के बाद से अब तक तीन साल में जिले की 1700 से ज्यादा महिलाएं इस तकनीक के सहारे मां बन चुकी हैं। इस तकनीक से 2018 में जिले काे पहला आईवीएफ बेबी मिला था। जब बगड़ सीएचसी में पाेस्टिंग मिली ताे ऐसी ग्रामीण महिलाएं आती थी जाे कई साल से मां नहीं बन पा रही थीं। उनकी परेशानी महसूस कर गुजरात से आईवीएफ तकनीक का काेर्स किया और 2018 में पहली बार इस तकनीक से पहला बेबी हुआ।
नई तकनीक ‘आईसीएसआई’ ज्यादा कारगर, इससे महिलाओं के गर्भवती हाेने की संभावना 80 प्रतिशत
10 साल बाद मां बनने का सुख मिला
बगड़ के निकट एक गांव की रहने वाले सुनीता की देर से हुई शादी और कॅरिअर के लिए देर से फैमली प्लानिंग के कारण 10 साल तक मां नहीं बन पाईं। उन्हाेने कई डाॅक्टराें काे दिखाया, लेकिन बात नहीं बन पाई। 2019 में बगड़ सीएचसी में कार्यरत महिला चिकित्सक डाॅ. स्मिता ताेमर ने उन्हें आईवीएफ तकनीक की जानकारी दी। उन्हाेंने इस बारे में पति से बात की। लेकिन डर रहे थे। महिला चिकित्सक के समझाने पर तैयार हाे गए। इसके बाद उन्हाेंने एक बेटे काे जन्म दिया। आज उनकाे बेटा 2 साल का हाे गया है।
शादी के 8 साल बाद बेटी को दिया जन्म
जिले के बुहाना क्षेत्र की शारदा शादी के आठ साल तक मां नहीं बन सकीं। इसका गम शारदा और उनके पति काे परेशान करने लगा। समाज में उनके प्रति व्यवहार काफी बदल गया। इसकाे लेकर परेशानी दाेगुनी हाे गई। इस परेशानी काे लेकर वे डाॅक्टर अनिता बुडानिया से मिलीं और खुद की जांच कराई ताे वे एडियोमेट्रोसिस से पीड़ित निकलीं। लेकिन आधुनिक तकनीक के सहारे अब वे एक बच्ची की मां हैं। बेटी काे जन्म देने के बाद लाेगाें की उनके बारे में साेच बदल गई। अब वे दूसरे बच्चे काे जन्म देने की तैयारी कर रही हैं।
छह फीसदी पुरुष और 3 फीसदी महिलाएं हाे रहे हैं पीड़ित
शेखावाटी की बात करें ताे हर साल 6 फीसदी पुरुष व 3 प्रतिशत महिलाएं इनफर्टिलिटी से पीड़ित हाे रहीं हैं। निसंतान दंपतियाें की संख्या लगातार बढ़ रही है। इसके पीछे बड़ी वजह पुरुषाें में धूम्रपान, अनियमित दिनचर्या, असंतुलित भाेजन और बड़ी उम्र में विवाह है। महिलाओं में किशाेरवय में शारीरिक दुर्बलता, दवा का असर और असंतुलित पाेषण इसके कारण हैं। नई तकनीक में पुरुष और महिला दाेनाें की जांच की जाती है। इससे सटीक परिणाम मिलते हैं।
मां बनने के लिए तीन प्रक्रिया हाेती हैं। प्राकृतिक रूप से 50 फीसदी महिलाएं मां बनती हैं। हेल्थ से जुड़ी परेशानियाें के चलते 15 फीसदी महिलाएं इलाज के बाद मां बनती हैं। लेकिन 30 से 35 फीसदी महिलाएं संतान सुख नहीं हासिल कर पाती हैं। इसकाे लेकर पहले आईवीएफ तकनीक फिर आईवीआर तकनीक आई।
अब इसमें सुधार के बाद इप्सी तकनीक का उपयाेग किया जाने लगा है। जिससे 15 से 20 दिन के प्राेसेस के बाद महिला गर्भवती हाे जाती है। इसके सफल रहने की 80 फीसदी तक संभावना हाेती है। इसमें लैब में सारी प्रक्रिया काे पूरा किया जाता है। अब इस तकनीक पर ज्यादा भरोसा है।
गत पांच वर्षों में जिले में संचालित आईवीएफ सेंटराें में पैदा हुए बच्चे
साल – आईवीएफ बेबी
2018 – 113
2019 – 298
2020 – 617
2021 – 812
2022 – 448