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शिवनगरी चिड़ावा के शिवालयों की श्रृंखला में आज हम पहुंचे हैं परमहंस पण्डित गणेशनारायण बावलिया बाबा के समाधि स्थल के पीछे बनी ब्रह्मचारी जी की बगीची में।बगीची में प्रवेश करते ही आप देखेंगे कि चारों तरफ हरियाली छाई हुई है। पेड़-पौधों से आच्छादित ये बगीची ब्रह्मचारी जी के पर्यावरण प्रेम की एक जीती जागती मिसाल है। प्राप्त जानकारी के अनुसार यहां बाबा 1971में जब चिड़ावा आए तो सबसे पहले इसी स्थान पर बाबा ने एक कुटिया बनाई। कुटिया की दीवार बना दी गई। लेकिन छत का काम अधूरा रह गया। इसी दौरान अल्लारखा नाम के एक व्यक्ति की गाय गुम हो गई। गाय खोजता हुआ वो बाबा के आश्रम में पहुंचा। बाबा ने उससे कहा कि शाम को गाय स्वयं ही घर पहुंच जाएगी। अल्लारखा घर चला गया। शाम को गाय खुद ही घर पहुंच गई। इस चमत्कार से प्रभावित होकर अल्लारखा ने आश्रम में कुटिया की छत का निर्माण अपनी जमा पूंजी से करवाया। बाद में धीरे धीरे यहां बगीची की चारदीवारी बनाई गई। बाबा ब्रह्मचारीजी ने वर्ष 1998 में नश्वर शरीर का त्याग किया।
वर्तमान में यहां के महंत दयागिरि जी हैं। वे और उनके शिष्य बालकगिरि निरन्तर यहां पेड़-पौधों की देखभाल करते हैं और यहां की व्यवस्थाएं संचालित कर रहे हैं। अब कराते हैं आपको यहां के दर्शन। बगीची में प्रवेश करते ही एक विशाल पीपल का वृक्ष लगा है इस वृक्ष के बिल्कुल नीचे विराजी हैं मां भगवती दुर्गा मां दुर्गा की मूर्ति के पास ही एक सिंदुरवदन माता की मूर्ति और विराजित हैं। ब्रह्मचारी बाबा के कृपा पात्र शिष्य आचार्य पं.मुकेश पुजारी ने बताया कि इस सिंदूरवदन मूर्ति पर बाबा ब्रह्मचारी जी ने कामाख्या माता से सिंदूर लाकर अर्पण किया था। ऐसे में इसे कामाख्या स्वरूप में भी पूजा जाता है। इसी मन्दिर के सामने बना है मृत्युंजय महादेव मन्दिर। यहां भगवान मृत्युंजय महादेव का अद्भुत चित्र बना हुआ है। इसी चित्र के नीचे विराजे हैं मृत्युंजय महादेव। ये छोटा सा नर्मदेश्वर शिवलिंग बाबा को उनके गुरु ने दिया। बताया जाता है कि ये गुरु शिष्य परम्परा का एक हिस्सा भी है। वर्तमान महंत दयागिरि जी भी अब अपने शिष्य बालक गिरि के साथ प्रतिदिन इनकी विधिवत पूजा अर्चना करते हैं। इस कुटिया के पास ही एक गुफा बनी हुई है। इसी गुफा में एकांतवास में ब्रह्मचारी जी तप किया करते थे।
वहीं दुर्गा मन्दिर के बाईं तरफ बनी हैं ब्रह्मचारी जी की समाधि। यहां ब्रह्मचारी जी की संगमरमर की मूर्ति लगी हुई है। समाधि स्थल के पीछे विशाल वटवृक्ष लगा हुआ है। इसी वटवृक्ष के सामने बना है हनुमान महाराज का मन्दिर। वहीं बगीची में दक्षिण दिशा की ओर बने दरवाजे के बाहर यहां प्राण त्यागने वाले एक नन्दी की समाधि है। इसी समाधि स्थल के सामने महंत दयागिरि ने नन्दी की याद में एक पत्थर को शिवलिंग के रूप में विराजित कराया। भविष्य में यहां भव्य शिवालय निर्माण और उसके सामने नन्दी की समाधि पर शिवालय की ओर मुख किए हुए नन्दी की मूर्ति लगाने की योजना है। महंत दयागिरि ने इसमें भामाशाहों से योगदान की अपील भी की है। इस दिव्य और पवित्र आश्रम में एक बार आप भी पधारें और रमणीय धर्म स्थल पर भक्ति और आस्था के असीम आनन्द की अनुभूति लें। अब दीजिए हमें इजाजत। कल फिर मिलेंगे एक और देवालय में… हर हर महादेव