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उद्धव ठाकरे का पार्टी प्रमुख पद अवैध है. उद्धव ठाकरे ने इस पद को बिना किसी चुनावी प्रक्रिया के हथियाया है. ऐसे में शिंदे गुट ही असली शिवसेना है. शिंदे गुट के पास नंबर्स हैं. विधायक और सांसदों का बहुमत शिंदे गुट के पास है. पार्टी के वैध सदस्यों की संख्या भी शिंदे गुट के साथ है. लोकतंत्र में नंबर की ही अहमियत है. बालासाहेब ठाकरे के बाद उद्धव ठाकरे ने पार्टी संविधान को बदल दिया और अपने हाथ में सारी ताकत ले ली. यह दावा आज केंद्रीय चुनाव आयोग के सामने शिंदे गुट के वकील महेश जेठमलानी ने किया.
इस तरह से मंगलवार (10 जनवरी) को शिंदे गुट ने केंद्रीय चुनाव आयोग के सामने असली शिवसेना किसकी? लड़ाई में अपना हुकुम का एक्का फेंक दिया. केंद्रीय चुनाव आयोग की ओर से इस बात की सुनवाई हुई कि ‘शिवसेना’ पार्टी नाम और इसका निशान- ‘धनुष बाण’ के सही हकदार ठाकरे गुट है या शिंदे गुट? इस संबंध में केंद्रीय चुनाव आयोग के फैसले और सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पूरे भारत की नजरें लगी हुई हैं. कहा जा रहा है कि जो भी फैसला आएगा वो भारत के लोकतंत्र का भविष्य तय करेगा.
‘उद्धव ने जबर्दस्ती पार्टी प्रमुख का पद कब्जाया, चुनाव नहीं करवाया’
शिंदे गुट की ओर से उनके वकील महेश जेठमलानी ने बेहद असरदार और जोरदार तरीके से दलील रखी. शिंदे गुट के टीम के वकीलों में निहार ठाकरे ने भी बहस की. निहाल ठाकरे आदित्य ठाकरे के चचेरे भाई हैं. शिंदे गुट ने दलील दी कि बालासाहेब ठाकरे के निधन के बाद उद्धव ठाकरे ने खुद ब खुद अपने नाम सारे अधिकार कर लिए. बालासाहेब ठाकरे के जाने के बाद के सारे बदलाव अवैध हैं. 2018 में उद्धव ठाकरे ने बिना चुनाव करवाए गुप्त रूप से पद हासिल कर लिया. इसलिए महेश जेठमलानी ने कहा कि उद्धव ठाकरे का पार्टी प्रमुख का पद अवैध है.
‘हम ही असली शिवसेना, संगठन पर भी हमारी ही पकड़ मजबूत’
महेश जेठमलानी ने कहा कि हम ही असली शिवसेना हैं. पार्टी का संगठन, जो सही में संगठन है, उसका नियंत्रण भी हमारे (शिंदे गुट) पास है. साथ में विधायकों और सांसदों का बहुमत भी है. महेश जेठमलानी ने इस पक्ष में तर्क देते हुए कहा कि शिवसेना का पुराना संविधान बालासाहेब ठाकरे केंद्रित था. उद्धव ने पार्टी का कंट्रोल अपने हाथ में लेने के लिए इस संविधान में बदलाव किया और पार्टी प्रमुख बन गए. यह बोगसपन है.
‘उद्धव का पद नहीं, शिंदे गुट द्वारा पेश किए गए कागजात बोगस’
शिंदे गुट का यह तर्क था कि ना सिर्फ विधायकों और सांसदों का बहुमत बल्कि जो सही में संगठन कहे जाने लाएक है, उस पर भी शिंदे गुट का कंट्रोल है. इसके जवाब में ठाकरे गुट के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि शिंदे गुट ने संगठन में पकड़ होने का दावा करने के लिए जो कागजात पेश किए हैं वो बोगस हैं. कपिल सिब्बल ने चुनाव आयोग से मांग की कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने से पहले चुनाव आयोग इस मुद्दे पर सुनवाई ना करे. सुप्रीम कोर्ट ने अगर शिंदे गुट के विधायकों को अयोग्य ठहरा दिया तो चुनाव आयोग के फैसले हास्यास्पद हो जाएंगे.
‘विधायकों और सांसदों का बहुमत नजरअंदाज नहीं किया जा सकता’
लेकिन जेठमलानी का कहना था कि अब तक विधायकों की विधायकी अयोग्य नहीं ठहराई गई है. इसलिए शिवसेना के चुनाव चिन्ह पर फैसला दिया जा सकता है. विधायकों और सांसदों का बहुमत देखते हुए इसमें कोई हर्ज नहीं है. शिंदे गुट ने विधायकों और सांसदों के बहुमत के सवाल को बेहद मजबूती से रखा. जेठमलानी ने कहा कि किसी भी विधानमंडल में या संविधान के किसी भी चौखटे में इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.
उद्धव का पार्टी प्रमुख का पद अवैध,तो उनके दिए टिकट से चुने विधायक कैसे वैध?
इस बहस और सुनवाई के बाद ठाकरे गुट के नेता चंद्रकांत खैरे ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि अगर उद्धव ठाकरे का पार्टी प्रमुख का पद अवैध है तो उनके दिए हुए टिकट से चुने गए विधायक और सांसद वैध कैसे हुए? आज जो शिंदे गुट के साथ हैं, उन्हें टिकट तो उद्धव ने ही दिया था ना. फिर चुनाव आयोग उनकी विधायिकी भी अवैध घोषित करे. शिंदे गुट के साथ इस वक्त शिवसेना के 18 में से 12 सांसद हैं और 55 में से 40 विधायक हैं. इनके अलावा शिंदे गुट को संगठन के 711, स्थानीय स्वराज संस्थाओं के 2046 प्रतिनिधी और 4 लाख प्राथमिक सदस्यों का साथ है. हालांकि शिंदे गुट के इस दावे को ठाकरे गुट ने बोगस बताया है.अब देखना है कि चुनाव आयोग असली शिवसेना किस गुट को ठहराता है.