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जयपुर: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि किसी के दुख से दुखी होना सेवा नहीं है, बल्कि किसी दुखी का इलाज करना सेवा है. इंसान और पशु दोनों में ही संवेदना होती है, लेकिन करुणा का भाव इंसान को इंसान बनाता है. संघ प्रमुख शुक्रवार को जयपुर में आयोजित तीसरे सेवा संगम में बोल रहे थे. उन्होंने कहा कि सेवा संगम का यह तीसरा आयोजन है.संघ के स्वयंसेवक सभाओं से सेवा का कार्य पहले से करते आ रहे हैं. संघ के मूल में डॉक्टर हेडगेवार मौजूद हैं. इस कार्यक्रम में देश भर से 3000 हजार से अधिक प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे हैं. संघ प्रमुख ने कहा कि आरएसएस का मूल भाव लोगों की सेवा करना है. इस भाव को ही तमाम प्रबुद्ध जन मिशनरी का नाम देते हैं. लेकिन हमारी सेवा मिशनरीज की सेवा से काफी अलग और विस्तार में है. उन्होंने कहा कि हमारे आचार्य गुरु जो सेवा करते हैं
वह मिशनरियों की सेवा से बहुत ज्यादा है. संघ प्रमुख के मुताबिक सेवा के साथ ही करुणा का भी ग्लोबलाइजेशन होना चाहिए.उन्होंने कहा कि सत्य के बाद करुणा को ही स्थान दिया गया है. समाज में कोई भी व्यक्ति दुर्बल या निर्बल नहीं होना चाहिए. इस लिए जहां-जहां समाज में जरूरत है, संघ के स्वयंसेवक वहां जाकर काम कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि डॉ. हेडगेवार की जन्मशताब्दी के समय तय किया गया गया था कि देशभर में इतने बड़े स्तर पर काम हो रहा है तो उसे एक व्यवस्था में लाया जाए. फिर इसी आधार पर कार्य का और विस्तार किया जाए. उसके बाद संघ में सेवा विभाग के कार्यों की शुरुआत हुई.उन्होंने कहा कि देश में सेवा का मंत्र तो पहले से ही है. दुनियाभर में मिशनरी अनेक संस्था, स्कूल और अस्पताल चलाते हैं. लेकिन हिन्दू समाज के संत संन्यासी क्या कर रहे हैं. इसी सोच के तहत तमिलनाडु में हिन्दू सर्विस सेवा फेयर किया गया. इसके बाद दक्षिण के चार प्रांतों में जो आध्यात्मिक क्षेत्र के लोग सेवा कर रहे हैं, वह मिशनरियों की तुलना में काफी ज्यादा है. उन्होंने कहा कि तुलना हमारा पैमाना नहीं है. बल्कि हमारा लक्ष्य नर और नारायण की समान रूप से सेवा है.