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यूपी में क्या कमाल कर सकते हैं सचिन पायलट? किन इलाकों में पड़ सकता है असर?

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राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच चली आ रही सियासी अदावत पर विराम लग गया है. सारे गिले-शिकवे भुलाकर पायलट कांग्रेस के लिए फिर से मेहनत शुरू कर दी है. माना जा रहा है कि जल्द ही मल्लिकार्जुन खरगे टीम में उन्हें अहम जिम्मेदारी दी सकती है. चर्चा कांग्रेस महासचिव बनाने की है और अगर ऐसा होता है तो उन्हें उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया जा सकता है. इसके पीछे यूपी के सियासी समीकरण होने के साथ-साथ उनके राजनीतिक कद के लिहाज से सटीक बैठ सकता है, लेकिन सवाल यह है कि यूपी की सियासत में पायलट कांग्रेस के लिए क्या कमाल कर सकते हैं?2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को टक्कर देने के लिए कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में अपने प्रदर्शन में सुधार करना होगा. यूपी में देश की सबसे ज्यादा लोकसभा सीटें हैं और दिल्ली का रास्ता इसी सूबे से होकर जाता है. 2014 और 2019 के चुनाव में कांग्रेस का यूपी में फ्लॉप शो रहा था. 2014 में पार्टी को 2 और 2019 में सिर्फ 1 सीट पर जीत मिली थी. राहुल गांधी अपनी सीट तक नहीं बचा पाए थे जबकि 2019 के चुनाव से ठीक पहले प्रियंका गांधी को कांग्रेस ने महासचिव बनाकर यूपी का प्रभार सौंपा था.

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पायलट को हाथों में होगी यूपी की कमान

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प्रियंका गांधी की काफी मशक्कत व मेहनत होने बाद भी कांग्रेस यूपी की सियासत में खड़ी नहीं हो सकी. 2022 के बाद से प्रियंका गांधी यूपी से मोहभंग होता दिख रहा है और अब वो दूसरे राज्यों पर फोकस कर रही हैं. ऐसे में कांग्रेस के लिए यूपी में ऐसे नेता की जरूरत है, जो सूबे में वेंटीलेटर पर पड़ी कांग्रेस को राजनीतिक संजीवनी दे सके. ऐसे में सचिन पायलट को लेकर सियासी चर्चा तेज हो गई है कि उन्हें कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव बनाते हुए उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया जा सकता है. कांग्रेस अगर सचिन पायलट को ये जिम्मेदारी देती है तो वह एक तीर से दो निशाने साध लेगी. पहला तो यह है कि सचिन पायलट को यूपी की कमान सौंपकर वह राजस्थान विधानसभा चुनाव में गुटबाजी से बच जाएगी. पायलट खेमे में ये संकेत जाएगा कि उनके नेता को अहमियत दी जा रही है और उन्हें यूपी जैसा अहम राज्य सौंपा जा रहा है. दूसरा, पायलट गुर्जर समुदाय से आते हैं और उत्तर प्रदेश खासतौर से पश्चिम यूपी में इनकी अच्छी खासी संख्या, जो आगामी चुनाव में कांग्रेस का भविष्य तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं.

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पश्चिमी यूपी से है पायलट का कनेक्शन

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सचिन पायलट का जन्म पश्चिमी यूपी के सहारनपुर में हुआ था. सचिन के पिता राजेश पायलट वायुसेना में रहते हुए सहारनपुर में तैनात थे. यहीं पर 7 सितंबर 1977 को सचिन पायलट जन्मे थे. हालांकि, सचिन पायलट मूल रूप से ग्रेटर नोएडा के वैदपुरा गांव के रहने वाले हैं. उनके पिता राजेश पायलट ने वायुसेना की नौकरी छोड़कर सियासत में कदम रखा था. यूपी के बजाय उन्होंने राजस्थान को अपनी सियासी कर्मभूमि बनाई थी. राजस्थान के भरतपुर से वह सांसद चुने गए थे. साल 2000 में रोड हादसे में राजेश पायलट की मौत के बाद सचिन पायलट राजनीति में एक्टिव हो गए. सचिन अक्सर ग्रेटर नोएडा स्थित अपने पैतृक गांव आते रहते हैं. ऐसे में पायलट को जब राजस्थान के उपमुख्यमंत्री और प्रदेशाध्यक्ष के पद से हटाया गया था तो उनके पैतृक गांव में लोगों का रोष बढ़ गया था. इतना ही नहीं पश्चिमी यूपी के गुर्जर समुदाय के बीच भी पायलट की पकड़ मजबूत मानी जाती है.

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पायलट से कांग्रेस को यूपी में क्या लाभ

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सचिन पायलट को कांग्रेस यूपी का प्रभारी बनाती है तो निश्चित तौर पर गुर्जर वोटों पर खास प्रभाव पड़ेगा. यूपी की राजनीति में एक समय गुर्जर समाज के सबसे बड़े और सर्वमान्य नेता के तौर पर कांग्रेस के राजेश पायलट, बीजेपी के हुकुम सिंह, सपा के रामशरणदास, मुस्लिम गुर्जरों में मुनव्वर हसन हुआ करते थे. ये चारो बड़े नेताओं का निधन हो चुका है, जिसके चलते गुर्जर सियासत यूपी में खत्म सी हो गई है. ऐसे में सचिन पायलट यूपी में सक्रिय होते हैं तो दोबारा से गुर्जर राजनीति को नई दिशा दे सकते हैं, क्योंकि उनके पिता की सियासी विरासत साथ है और गुर्जर समुदाय के बीच उनकी अपनी भी पकड़ है.

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गुर्जर वोटर्स का किन क्षेत्रों में है प्रभाव

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गुर्जर समुदाय यूपी में भले ही दो फीसदी के करीब हों, लेकिन पश्चिमी यूपी में उनकी आबादी 15 फीसदी के करीब है. पश्चिम यूपी गाजियाबाद, नोएडा, संभल, बिजनौर, मेरठ, सहारनपुर, शामली, बागपत लोकसभा गर्जुर समुदाय की अच्छी खासी संख्या है. इन लोकसभा सीटों पर गुर्जर समुदाय किसी भी दल का खेल बनाने और बिगाड़ने का माद्दा रखते है. इन इलाकों में गुर्जर वोटरों का सीधा असर है. गुर्जर समुदाय ओबीसी में आते हैं. ये आर्थिक और राजनीतिक तौर पर मजबूत माने जाते हैं, जिसके दम पर वो जीतने की ताकत रखते हैं. उत्तर प्रदेश में गुर्जर समाज लंबे वक्त तक कांग्रेस का वोटबैंक रहा है, लेकिन 1990 के बाद बसपा और सपा के बीच बंटता रहा है. 2014 के लोकसभा चुनाव से गुर्जर समुदाय के लोग बीजेपी के साथ जुड़ गए हैं, जिसे वापस अपने खेमे में लेने के लिए सपा और आरएलडी दोनों ही मशक्कत कर रहे हैं तो कांग्रेस की नजर भी पश्चिमी यूपी की गुर्जर नेताओं पर है. ऐसे में अगर कांग्रेस सचिन पायलट को यूपी की कमान सौंपती है तो गुर्जर वोटों को लेकर मुकाबला रोचक हो सकता है. सचिन पायलट राजस्थान की सियासत में अपनी छवि एक युवा नेता को तौर पर तो बनाई ही है, लेकिन साथ ही गुर्जर समुदाय के एक बड़े चेहरे के तौर पर भी खुद को राष्ट्रीय राजनीति में स्थापित किया है. पश्चिमी यूपी में मिहिर भोज को लेकर पहले से ही सियासी तपिश गर्म है. ऐसे में सचिन पायलट की यूपी में एंट्री होती है तो गुर्जर राजनीति में कांग्रेस भी जमीनी तौ पर आक्रमक तरीके से सियासत करती हुई नजर आ सकती है. पायलट को जमीनी स्तर पर राजनीति करने के लिए जाना जाता है और उन्हें यूपी की प्रभार देने से कांग्रेस को एक ऐसा चेहरा मिल जाएगा, जो उनके लिए कदम से कदम मिलाकर संघर्ष कर सकते हैं.

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अखिलेश-जयंत के सामने पायलट

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यूपी में सपा की कमान अखिलेश यादव के हाथों में है तो आरएलडी की बागडोर जयंत चौधरी संभाल रहे हैं. ऐसे में कांग्रेस भी सचिन पायलट जैसे युवा चेहरे को प्रभार सौंपकर यूपी के युवाओं को साधने का दांव चल सकती है. सचिन पायवट की जयंत चौधरी और अखिलेश यादव के साथ बेहतर तालमेल भी है, जिसके चलते यूपी में कांग्रेस को गठबंधन के लिए भी सियासी मुफीद हो सकता है. जयंत चौधरी तो कांग्रेस को गठबंधन में शामिल करने की पैरवी भी कर रहे हैं. इस तरह से तीन युवा नेताओं की जोड़ी बनती है तो यूपी की सियासत में बीजेपी के लिए राजनीतिक चुनौती खड़ी हो सकती है.

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