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शुक्रवार देर शाम मुजफ्फरपुर में प्रापर्टी डीलर आशुतोष शाही की गोलियों से भून कर हत्या कर दी. उनके साथ उनके दो बार्डीगार्ड की अपराधियों ने हत्या कर दी. चार की संख्या में मोटरसाइकिल से आए अपराधियों ने पिस्टल से दनादन फायरिंग कर तीनों की जान ले ली. आशुतोष शाही पर मुजफ्फरपुर के पहले मेयर समीर कुमार की हत्या का आरोप था. पांच साल पहले समीर शाही और उनके ड्राइवर को AK-47 से भून दिया गया था. पांच साल पहले हुई समीर शाही या अब आशुतोष शाही की गोलियों से छलनी कर हत्या, मुजफ्फरपुर के लिए नया नहीं है. AK- 47 की गूंज यहां पहली बार 1990 में ही सुनाई दी थी. तब बाहुबली अशोक सम्राट के गुर्गों ने सम्राट के पीए रहे मिनी नरेश की हत्या का बदला लेने के लिए छाता चौक पर AK 47 से बाहुबली चंद्रेश्वर सिंह की गोलियों से भून कर हत्या कर दी थी. दावा किया जाता है कि बिहार में पहली बार AK-47 के गोलियों की गूंज सुनाई दी थी. यह वह दौर था जब बिहार पुलिस ने AK 47 के दर्शन भी नहीं किए थे. तब यह सिर्फ सेना के पास हुआ करता था और आतंकियों- खालिस्तानियों के पास. कहा जाता है कि सम्राट के सेना में काम करने वाले दोस्त ने आतंकियों से जब्त वह हथियार उपलब्ध कराया था. हालांकि इस बात का कभी कोई सबूत नहीं मिला.
बाहुबलियों का बाहुबली कहा जाता था सम्राट
अशोक सम्राट को बाहुबलियों का बाहुबली कहा जाता था. बेगूसराय के एक गांव में पैदा हुए अशोक सम्राट का खौफ बिहार की राजधानी पटना, शेखपुरा, लखीसराय, मोकामा, वैशाली और मुजफ्परपुर तक नहीं बल्कि गोरखपुर तक था. अशोक सम्राट तब रेलवे के ठेकों का बेताज बादशाह कहा जाता था. बिहार में तब सूरजभान सिंह और सम्राट ठेकों के लिए आमने सामने थे, क्योंकि अशोक सम्राट के पास उस दौर में AK-47 हुआ करता था इसलिए वह सूरजभान पर बीस साबित हो रहा था.
डबल MA था सम्राट, दरोगा के लिए भी चयन
सम्राट बेगूसराय के एक संभ्रात परिवार का लड़का था. जरायम की दुनिया में आने से पहले वह पढ़ने लिखने वाला लड़का कहा जाता था. वह संस्कृत समेत दो सब्जेक्ट से पोस्ट ग्रेजुएट था. तब डबल एमए वालों को इंटलेक्चुअल कहा जाता है. दावा ये भी किया जाता है कि अशोक सम्राट का चयन दरोगा के लिए भी हुआ था. कहा जाता है कि सम्राट का साथी रामविलास चौधरी उर्फ मुखिया ने किसी वजह से जहर खा ली. इस बात की जानकारी जब सम्राट को हुई तो वह लौट आया और खुद को भी गोली मार ली. हालाकि दोनों दोस्तों की जान बच गई.
सम्राट तय करता था जीत हार
रेलवे के ठेकों के साथ-साथ अशोक सम्राट बिहार के कई जिलों की राजनीति भी तय करने लगा था. उसके गुर्गे डरा धमकाकर वोट दिलाने का काम करते थे. जहां डराने धमकाने से काम नहीं चलता था, वहां बूथ कैप्चरिंग कर लिया जाता था. अशोक सम्राट बृजबिहारी प्रसाद का खास था. दावा तो ये भी किया जाता है कि अशोक सम्राट से नजदीकी की वजह से ही सूरजभान सिंह के कहने पर बृजबिहारी प्रसाद की यूपी के डॉन श्रीप्रकाश शुक्ला ने हत्या की थी.
पिस्टल से मारा गया AK-47 रखने वाला डॉन
बृजबिहारी प्रसाद की हत्या के बाद सम्राट से राजनीति छत्रछाया उठ गया था. तब उसने जरायम की दुनिया में सुरक्षित रहने के लिए खुद माननीय बनने की सोची थी. इसके बाद वह आनंद मोहन सिंह की पार्टी से चुनाव लड़ने वाला था. वह चुनाव लड़ राजनीतिक ओट ले पाता इससे पहले 5 मई 1995 को वैशाली में पुलिस एनकाउंटर में मारा गया. वह पुलिस के लिए कितना बड़ा सिरदर्द था.. इस बात से समझा जा सकता है कि सम्राट का एनकाउंटर करने वाले इंस्पेक्टर शशिभूषण शर्मा को आउट ऑफ टर्म जाकर सीधे डीएसपी बना दिया गया. इसके साथ ही उसे प्रेसिडेंट मेडल से भी नवाजा गया था.