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तारकेश्वर मंदिर में गायें हर दिन बाबा भोलेनाथ पर चढ़ाती थी दूध, अब मंदिर में उमड़ता है कांवड़ियों का सैलाब

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तारकेश्वर मंदिर पश्चिम बंगाल के हुगली जिले में स्थित प्रसिद्ध शिव मंदिर है. सावन महीने में तारकेश्वर मंदिर में भगवान शिव पर जलाभिषेक करने के लिए तारकेश्वर में लाखों भक्तों की भीड़ उमड़ती है. हालांकि हर साल की तरह इस बार भी गुरु पूर्णिमा से मेले के दौरान श्रद्धालुओं को गर्भगृह में प्रवेश पर रोक है. बाहर से ही भगवान भोलेनाथ को जलाभिषेक करने के नियम बनाये गये हैं. श्रावणी मेला के अवसर पर पुलिस प्रशासन ने मंदिर के आसपास पूरे तारकेश्वर चौक पर सुरक्षा बढ़ा दी है.मंदिर परिसर को साफ-सुथरा रखने के लिए नगर पालिका ने अतिरिक्त पहल की है. वहीं, पूर्वी रेलवे पूरे महीने हर सप्ताह रविवार और सोमवार को 6 जोड़ी स्पेशल ट्रेनें चला रहा है. श्रावणी  मेला गुरु पूर्णिमा से राखी पूर्णिमा तक एक महीने के लिए आयोजित किया जाता है. श्रावणी मेला को लेकर पुलिस प्रशासन ने चौकसी बढ़ा दी है. तारकेश्वर मंदिर से सटे इलाके में अतिरिक्त पुलिस और नागरिक स्वयंसेवकों को तैनात किया गया है. पूरे तारकेश्वर इलाके में 24 घंटे सीसीटीवी से निगरानी की जा रही है. तारकेश्वर मंदिर से सटे दूधपुकुर में स्पीड बोर्ड लगाया गया है. एक अग्निशामक यंत्र है. इसके अलावा वैद्यबाटी तारकेश्वर मार्ग पर लगभग सभी स्थानों पर लाइटें लगाई गई हैं, साथ ही सड़क पर विभिन्न स्थानों पर अतिरिक्त पुलिस की तैनाती की गई है. तारकेश्वर मंदिर के पुजारी अमिताभ हाजरा ने कहा कि भले ही श्रावण मास मल मास हो, लेकिन भक्तों की कोई कमी नहीं होगी. इस साल मेला दो महीने तक चलेगा. इस बार मेले के दौरान रविवार सुबह 8 बजे से सोमवार सुबह 8 बजे तक भक्तों को बाबा के शीश पर जल चढ़ाने का मौका मिलेगा.

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राजा विष्णु दास के भाई ने 1729 में बनाया था मंदिर

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वह बताते हैं कि राजा विष्णुदास के भाई ने 1729 में इस मंदिर की स्थापना की थी. अठारहवीं सदी की शुरुआत में अयोध्या के विष्णुदास तारकेश्वर के रामनगर गांव में बस गए थे. जब वह प्रतिदिन फल, शहद इकट्ठा करने के लिए जंगल में जाता थे. तो उसे वहां एक काला पत्थर पड़ा हुआ दिखाई देता था. वह बताते थे कि हर दिन कुछ गायें आकर उस पत्थर को दूध देती थीं. यह दृश्य देखकर विष्णुदास को बड़ा आश्चर्य हुआ. बाद में उसे एक सपना आया. स्वयं महादेव ने उन्हें स्वप्न में आदेश दिया कि तारकेश्वर के निकट घने जंगल में रखे हुए शिव लिंग की स्थापना करो और वहां एक मंदिर बनाओ. उसके बाद विष्णुदास ने यह जिम्मेदारी अपने भाई भारमाल्य को दी. भारमाल्य उस चट्टान को जंगल में न रखकर कहीं और रखना चाहते थे. लेकिन वह चट्टान नहीं उठा सके. इस घटना के कुछ दिन बाद स्वयं शिव ने भारमाल्य को स्वप्न में दर्शन दिए और कहा कि यह चट्टान कभी नहीं उठाई जा सकेगी. क्योंकि इसका विस्तार गया-काशी तक है. इसलिए उसे उस शिवलिंग को हटाने के बजाय उस स्थान पर शिव मंदिर का निर्माण कराना चाहिए. परिणामस्वरूप भारमाल्य विष्णुदास ने तारकेश्वर का यह मंदिर बनवाया,स जिसे बाद में बर्दवान के महाराजा द्वारा पुनर्निर्मित किया गया था. इस प्रकार तारकेश्वर मंदिर में भगवान शिव की पूजा की जाती है. इस जागृत शिव मंदिर की बात दूर-दूर तक फैल गई. देश के विभिन्न हिस्सों से अनगिनत भक्त शिव के सिर पर जल चढ़ाने के लिए इस तारकेश्वर मंदिर में जल चढ़ाने लगे.

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