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जानलेवा मानी जाती है ‘रैट-होल’ तकनीक जो बनी 41 मजदूरों की आखिरी उम्मीद, लग चुका है बैन

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17 दिन बीत जाने के बाद भी उत्तरकाशी के सिलक्यारा सुरंग में फंसे 41 मजदूर बस उम्मीद के ही सहारे जी रहे हैं. जो सुरंग के ठीक बाहर बचाव में लगे हैं. वो इस प्रयास में जुटे हैं कि कोई जतन कर इन मजदूरों को बाहर निकाला जाए. बचाव अभियान में बार-बार दिक्कतें आ रहीं हैं. हालांकि, कल एक सफलता जरूर हाथ लगी जब मलबे में फंसी ऑगर के हेड को निकालने के बाद मैनुअल खुदाई का काम शुरू हो गया. खुदाई का काम अब जिस तरह हो रहा है, इसे ‘रैट होल’ तकनीक कहते हैं. मजदूरों की आखिरी उम्मीद बताए जा रहे इस रैट होल तकनीक का इतिहास क्यों विवादित है. 9 साल पहले एनजीटी यानी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने क्यों इसे बैन कर दिया था. मेघालय चुनाव में क्यों ये एक बहुत बड़ा मुद्दा बना था. आइये एक-एक कर समझते हैं.

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रैट होल माइनिंग क्या है?

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रैट होल माइनिंग में होता ये है कि खदानों में काम करने वाले लोग सुरंगों में नीचे उतरते हैं. बेहद संकीर्ण सुरंग में घुसकर वे कोयला निकालते हैं. सुरंग इतना संकीर्ण होता है कि बमुश्किल एक समय में एक आदमी सुरंग में अट पाए और फिर वह शख्स चूहे की तरह हाथों से सुरंग खोद मलबा हटाता है. इसी तकनीक के आसरे अब 41 मजदूरों की जिंदगी बचाने की कोशिश जारी है.

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रैट होल माइनिंग को लेकर क्यों है विवाद?

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रैट होल माइनिंग की तकनीक खदान में काम करने वाले लोगों के लिए बहुत खतरनाक साबित हुई है. इस लिए साल 2014 में एनजीटी यानी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने इस पर रोक लगा दी थी. बावजूद इसके मेघालय जैसे राज्य में इसका इस्तेमाल जारी रहा. कहा गया कि इसके पीछे की वजह नेताओं, अधिकारियों और कोयला खादान वालों की गठजोड़ रही जिन्होंने कोर्ट के फैसले की परवाह नहीं की.

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मेघालय: जान पर खेल लोग करते हैं रैट होल माइनिंग

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एनजीटी ने जब इस पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया था, तब यह कहा था कि ये पूरी प्रक्रिया ही एकदम अवैज्ञानिक है. लेकिन मेघालय के खासी और जयंतिया पहाड़ी इलाकों में जहां दुर्गम कोयले के खादान हैं, बहुत से लोगों की इस तकनीक के सहारे रोजी रोटी चलती रही. वे एनजीटी की मांग को लेकर विरोध भी कर चुके हैं. मेघालय में जब इस साल चुनाव हुआ तो एक मांग यह भी थी कि एनजीटी ने जिस रैट होल तकनीक को बैन किया, उसको लचीला बनाय जाए ताकि जिनकी उससे आजीविका चलती है, वे कम से कम प्रभावित हों.

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रैट माइनिंग को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला

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हालांकि, साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने एनजीटी के प्रतिबंध को रद्द कर दिया था और वैज्ञानिक तरीके से राज्य में कोयला खनन को अनुमति दे दी थी. तब राज्य की नेशनल पीपल्स पार्टी और भाजपा के समर्थन वाली सरकान ने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का श्रेय बटोरा था. हालांकि कहते हैं कि ऊपरी अदालत के फैसले से राज्य में रैट माइनिंग को लेकर चीजें थोड़ी उलझ गईं. कुछ लोगों ने आरोप लगाया कि इससे पूरी प्रक्रिया में लालफीताशाही लौट आई.

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