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अक्सर होती है देरी… जजों की नियुक्ति पर CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने रखी अपनी बात

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भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने हाल ही में भारत में न्यायाधीशों की नियुक्ति पर नियंत्रण के लिए चल रहे संघर्ष के मुद्दे अपनी बात रखी है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जजों की नियुक्ति प्रक्रिया में अक्सर देरी होती है, जिससे लंबे समय तक रिक्तियां बनी रहती हैं. केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) की मुंबई बेंच के नए कैंपस के उद्घाटन पर बोलते हुए कहा कि जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि ट्राब्यूनल बनाने की उद्देश्य था कि इससे अदालतों पर कोर्ट में लंबित मामलों के बोझ को कम किया जा सके. सीजेआई ने स्वीकार किया कि ट्राब्यूनल भी कई तरह की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. उन्होंने सवाल उठाया कि क्या उनके कामकाज में आने वाली मुश्किलों के मद्देनजर इतने सारे ट्राब्यूनल स्थापित करने की क्या सच में जरूरत थी? जस्टिस चंद्रचूड़ ने न्यायिक मामलों में सरकार के हस्तक्षेप न करने पर बात करते हुए महाराष्ट्र में शासन संस्कृति की भी सराहना की. उन्होंने न्यायिक बुनियादी ढांचे को समर्थन और बढ़ाने में सरकार की भूमिका को पहचानने के महत्व पर जोर दिया.

अदालत कक्षों की कमी पर जताई चिंता

सीजेआई ने यह स्वीकार करते हुए कि टेक्नोलॉजी न्याय तक पहुंच को सुविधाजनक बनाने में भूमिका निभाती है लेकिन साथ ही यह भी कहा कि फिजिकल रूप से न्याय तक पहुंच को कम नहीं आंका जाना चाहिए और इसमें लगातार सुधार किया जाना चाहिए. बुनियादी ढांचे की कमी के मुद्दे पर बोलते हुए सीजेआई ने सेंटर फॉर रिसर्च एंड प्लानिंग की एक हालिया रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें जिला न्यायपालिका में न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या के बावजूद अदालत कक्षों की कमी का पता चला. रिपोर्ट से पता चला कि पिछले तीन सालों में 42.9% अदालत कक्ष निर्माणाधीन हैं.

महिला जजों को होती है कई समस्या

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने स्वीकार किया कि न्याय तक पहुंच में कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है, और विलंबित परिणामों का प्रभाव प्रत्येक व्यक्ति के लिए अलग-अलग होता है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि महिला वकीलों को अक्सर समाज के कारण बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, क्योंकि वे न केवल अदालत में अपने तत्काल विरोधियों के साथ संघर्ष करती हैं, बल्कि अपनी क्षमताओं के संबंध में वर्षों से चली आ रही लैंगिक धारणाओं का भी मुकाबला करती हैं.

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