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जहां परिंदा भी पर न मार सके, वहां तक कैसे पहुंची स्मोक स्टिक? आसान भाषा में समझें

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जहां परिंदा भी पर न मार सके वहां दो युवकों का स्मोक स्टिक के साथ पहुंच जाना चौंकाने वाली बात है. यह युवक विजिटर बनकर संसद में घुसे थे. ये सबसे ज्यादा गंभीर बात है, क्योंकि संसद में जाने वाले हर विजिटर को एक या दो नहीं बल्कि चार सुरक्षा घेरों से गुजरना पड़ता है. हर एंट्री पॉइंट पर जवान मुस्तैद रहते हैं. सिर्फ दिल्ली पुलिस ही नहीं बल्कि सीआरपीएफ- आईटीबीपी के जवान, दिल्ली पुलिस की स्वाट टीम और एनएसजी कमांडो भी यहां तैनात होते हैं. संसद में बुधवार को मची अफरा-तफरी एक बड़ा सवाल बन गई है. ये सवाल इसलिए भी बड़ा है, क्योंकि स्मोक स्टिक लेकर अंदर घुसे युवकों ने 13 दिसंबर की तारीख चुनी. ये वही तारीख है, जिस पर 22 साल पहले संसद आतंकी हमले का शिकार हुई थी. उस हमले के बाद संसद की पूरी सुरक्षा प्रणाली को दुरुस्त किया गया था. चेक नाके, एंट्री प्वाइंट, मेटल डिटेक्टर, स्कैनर सब थे, लेकिन स्मोक स्टिक को कोई नहीं पकड़ पाया. आसान भाषा में समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर संसद की सुरक्षा प्रणाली कैसे काम करती है और पास बनने से लेकर एंट्री और जांच से विजिटर्स कैसे गुजरते हैं.

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  1. पहला सुरक्षा घेरा : संसद में विजिटर्स की एंट्री के लिए सबसे जरूरी होता है पास, ये पास सांसद की संस्तुति पर लोकसभा सचिवालय की ओर से जारी किया जाता है, जब कोई विजिटर्स पास को लेकर पहुंचता है तो उसे पहला सुरक्षा घेरा संसद भवन के गेट पर पार करना होता है, इसकी सुरक्षा दिल्ली पुलिस के हाथ होती है. विजिटर की मेटल डिटेक्टर से पूरी सुरक्षा जांच होती है, यदि बैग है तो उसे स्कैनर से चैक किया जाता है, फोन और इन्य इलेक्ट्रॉनिक आइटम जमा करा लिए जाते हैं. इसके बाद एंट्री दे दी जाती है.
  2. दूसरा सुरक्षा घेरा : परिसर में एंट्री के बाद विजिटर्स को दूसरा सुरक्षा घेरा पार करना होता है जो मुख्य इमारत से पहले कुछ दूरी पर होता है. यहां दोबारा स्कैनिंग की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है. यहां सीआरपीएफ, आईटीबीपी के जवान, दिल्ली पुलिस की स्वाट टीम और एनएसजी कमांडो तैनात रहते हैं. यहां से विजिटर गरुड़ द्वार की तरफ भेज दिए जाते हैं, ये वही द्वार है जहां से पास धारकों की एंट्री होती है. इस गेट से सांसद या मंत्री नहीं जाते.
  3. तीसरा सुरक्षा घेरा : तीसरा सुरक्षा घेरा गरुड़ द्वार पर होता है, यहां पर विजिटर्स की जांच की जिम्मेदारी पार्लियामेंट सिक्योरिटी सर्विस के जवानों के हाथ में होती है, यही सिक्योरिटी टीम पास धारकों की तीसरी बार जांच करती है और उन्हें संसद भवन के अंदर एंट्री देती है, सिर्फ विजिटर ही नहीं, बल्कि इसी गेट पर मीडिया और अन्य आगंतुकों की सुरक्षा जांच की जाती है.
  4.  चौथा सुरक्षा घेरा : गरुड़ द्वार से एंट्री लेने के बाद विजिटर्स को सीधे संसद भवन की पहली मंजिल पर भेज दिया जाता है, यहां पर एक बार फिर जांच होती है. यदि गेट पर जमा करने से कोई आइटम रह गया तो वहां लॉकर में जमा किया जा सकता है. खास बात ये है कि यदि विजिटर की जेब में कोई कागज का टुकड़ा भी है तो उसे भी निकलवा दिया जाता है, पेन और सिक्कों को भी साथ नहीं ले जाने दिया जाता. यहां भी पार्लियामेंट सिक्योरिटी सर्विस के ही लोग होते हैं. 

    यहां भी होती है जांच

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    चार सुरक्षा घेरे पार करने के बाद अंतिम जांच होती है विजिटर्स गैलरी के गेट पर, यहां सिर्फ पास चेक होता है और विजिटर्स गैलरी से संबंधित नियम और कायदे समझाए जाते हैं. मसलन किस तरह का बर्ताव करना है. एक बार सीट पर बैठ गए तो दोबारा उठना नहीं हैं, जब तक कि बाहर न जाना हो. यहां विजिटर्स के एक-दूसरे से बात करने पर भी पाबंदी होती है. विजिटर्स गैलरी में भी सुरक्षाकर्मी तैनात रहते हैं, ताकि किसी तरह की कोई हरकत न कर सके.

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    ऐसे स्मोक स्टिक ले गए युवक

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    अब तक आप समझ चुके होंगे कि आखिर क्यों संसद की सुरक्षा में सेंध लगाना आसान नहीं है. फिर भी सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर युवक स्मोक स्टिक लेकर संसद में अंदर कैसे पहुंचे. दर्शक दीर्घा यानी विजिटर गैलरी से छलांग लगाने वाले युवकों ने स्मोक स्टिक को जूते से निकाला था. दरअसल सदन में पहुंचे युवकों ने स्मोक स्टिक को जूते में रखा था. इसके लिए उन्होंने बाकायदा तैयारी की थी. इसीलिए संसद परिसर में एंट्री से लेकर दर्शक दीर्घा तक युवक आसानी से पहुंच गए. यदि स्मोक स्टिक की जगह कोई मेटल या अन्य कोई चीज होती तो वह युवक पहले सुरक्षा घेरे को ही पार नहीं कर पाते.

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