चिड़ावा यानी शिवनगरी के शिवालयों की श्रृंखला में आज हम पहुंचे हैं एक और प्राचीन शिवालय में।
ये है प्राचीन राधा-गोविंद मंदिर। इस मंदिर को भैड़ा वाला मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। 200 साल पहले इस मंदिर और शिवालय का निर्माण जगन्नाथ भैड़ा ने करवाया। फिलहाल मंदिर की व्यवस्था मंदिर कमेटी अध्यक्ष बाबूलाल भैड़ा सम्भाल रहे हैं।
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इस शिवालय की विशेषता ये है कि यहां शिवालय और मंदिर में अखंड ज्योति लगातार प्रज्वलित है। जिस गर्भगृह में राधा-गोविंद विराजे हैं, उसके बांई तरफ शिवालय स्थित है। राधा-गोविंद के गर्भगृह में ही गरुड़ देव की मूर्ति विराजित है। जो कि बहुत कम मंदिरों में देखने को मिलता है। वहीं सूर्य देव की मूर्ति के साथ ही गोविंद को अतिप्रिय गौमाता की मूर्तियां भी भगवान के साथ पूजी जा रही है। भगवान राधा-गोविंद के बिल्कुल सामने बिराजे हैं हनुमान जी महाराज। मंदिर में वर्तमान में पं.रामपाल अरड़ावतिया पूजा पाठ का जिम्मा सम्भाले हुए है। मंदिर में विशेष रूप से जन्माष्टमी के अवसर पर खास उत्सव होता है। राजकला कॉम्प्लेक्स के पास वाली गली में स्थित ये मंदिर स्थापत्य कला का भी बेजोड़ नमूना है। यहाँ पर की गई सुंदर चित्रकारी और मुख्यद्वार पर उकेरे गए गणेशजी महाराज के चित्र प्राचीन चित्र शैली का बेहतरीन उदाहरण हैं। मन में श्रद्धा के भाव लिए इस दर पर आने वालों की मनोकामना अवश्य पूरी होती, ऐसी श्रद्धालुओं की मान्यता है। अब लेते हैं आस्था और विश्वास की इस ठौर से विदाई और कल फिर मिलेंगे एक और प्राचीन शिवालय में….हर..हर… महादेव