कोरोना की वजह से हुए लॉकडाउन ने दरभंगा के एक परिवार के सामने आर्थिक संकट खड़ा कर दिया था। हरियाणा में रहकर काम करनेवाले सौरभ की फैक्ट्री बंद हो गई। परिवार के सामने जब रोजगार का कोई उपाय नहीं बचा तो सभी वापस अपने गांव लौट आए। गांव आकर मोती की खेती (पर्ल फार्मिंग) शुरु कर दी औऱ इससे 4.5 लाख रुपए सालाना का मुनाफा कमाया।
सौरभ बताते हैं कि साल 2020 में जब गांव आए तब आजीविका का कोई साधन नहीं था। नौकरी के लिए ना कोई फैक्ट्री थी, ना ही कोई बड़ा मार्केट जिसमें कोई रोजगार कर सकें। बस थी तो सिर्फ बंजर जमीन, गड्ढे और पानी से भरा तालाब। तालाबों के अगल-बगल घूमते वक्त कुछ सीप दिखे। यह इधर काफी मात्रा में पाए जाते हैं। स्थानीय लोग इन्हें खुरचन कहते हैं, लेकिन किसी को आइडिया नहीं था कि इनसे कैसे फायदा उठाया जाए।
पहले मछली, फिर पर्ल फार्मिंग का शुरु किया काम
सौरभ बताते हैं कि उन्होंने पानी और बाढ़ की स्थिति को देखते हुए मछली पालन शुरु किया। फिर सीप से मोती उत्पादन का आइडिया आया। उन्होंने हरियाणा की एक संस्था से मोती उत्पादन की ऑनलाइन ट्रेनिंग ली। इसके बाद मानव निर्मित तालाब में पर्ल फार्मिंग शुरु कर दी। मानव निर्मित तालाब की लागत करीब 35 हजार रुपए आई।
सौरभ ने बताया कि यहां फार्म में दो तरह की मोती तैयार की जाती है। गोल मोती और कट मोती। गोल मोती में ज्यादा समय लगता है। कट मोती 8 महीने में तैयार हो जाता है। तैयार मोती का पेमेंट इलाके के ही ज्वेलर गुणवत्ता के हिसाब से कर देते हैं। उनको भी लोकल में मोती मिल जाता है। बाहर से मंगाने की जरूरत नहीं पड़ती। अभी जितना उत्पादन करते हैं, उससे ज्यादा ऑर्डर हाथ में हैं।