बर्लिन: जर्मनी ने आकस्मित अमेरिकी विमान निर्माता कंपनी लॉकहीड मॉर्टिन से () खरीदने का ऐलान किया है. जर्मन गवर्नमेंट के शीर्ष अधिकारियों ने बताया कि अपने पुराने टॉरनेडो विमान को बदलने के लिए इस डील को मंजूरी दी गई है. जर्मनी ने 35 की संख्या में एफ-35 (F-35) लड़ाकू विमानों की इस डील को काफी गुप्त तरीके से अंजाम दिया है. एफ-35 () को दुनिया का सबसे शक्तिशाली लड़ाकू विमान कहा जाता है. यह पांचवी पीढ़ी का स्टील्थ लड़ाकू विमान है. लॉकहीड मार्टिन (Lockheed Martin) का दावा है कि वर्टिकल टेकऑफ और लैंडिंग करने में माहिर इल लड़ाकू विमान को रडार से पकड़ा नहीं जा सकता है.
टॉरनेडो विमान की स्थान एफ-35 का करेगा इस्तेमाल
फरवरी में ऐसी समाचार आई थी कि जर्मनी एफ-35 लड़ाकू विमानों में दिलचस्पी दिखा रहा है. वर्तमान में टॉरनेडो एकमात्र ऐसा लड़ाकू विमान है, जो संघर्ष की स्थिति में जर्मनी में रखे अमेरिकी परमाणु बम लेकर जा सकता है. जर्मन वायु सेना 1980 के दशक से टॉरनेडो विमानों को उड़ा रही है. अब तकनीक पुरानी पड़ने के कारण 2015 से इसे क्रमबद्ध तरीके से हटाने का प्लान बनाया गया है. जर्मनी के लिए लॉकहीड मॉर्टिन का एफ-35 खरीदना बोइंग के लिए बड़ा झटका बताया जा रहा है. पूर्व जर्मन रक्षा मंत्री एनेग्दर क्रैम्प-कैरेनबाउर ने टॉरनेडो की स्थान पर बोइंग के एफ-18 लड़ाकू विमान खरीदने का समर्थन किया था.
फ्रांस की टेंशन बढ़ा सकती है जर्मन एफ-35 की डील
जर्मनी के इस फैसले से फ्रांस भी परेशान हो सकता है. फ्रांस ने जर्मनी के एफ-18 या एफ-35 की खरीद को संयुक्त योजना के विरूद्ध माना है. दरअसल, जर्मनी और फ्रांस ने साथ मिलकर पांचवी पीढ़ी के स्वदेशी लड़ाकू विमान की परियोजना पर कार्य करने की हामी भरी थी. दोनों राष्ट्र 2040 तक पहले लड़ाकू विमान के प्रोटोटाइप को उड़ाने की प्लानिंग भी कर रहे थे. चांसलर ओलाफ स्कोल्ज ने दो हफ्ते पहले ही फ्रांस के साथ संयुक्त रूप से विमान बनाने का जिक्र किया था.
रक्षा बजट बढ़ाने का ऐलान कर चुका है जर्मनी
जर्मन चांसलर ओलाफ शोल्ज ने फरवरी के आखिर में अपने सशस्त्र बल विशेष कोष में 100 अरब यूरो निवेश करने का ऐलान किया था. इसी के साथ जर्मनी का रक्षा बजट बढ़कर कुल जीडीपी का 2 फीसदी हो जाएगा. 2021 में जर्मनी का पूरा रक्षा बजट 47 अरब यूरो ही था. नाटो के आंकड़ों के मुताबिक, जर्मनी 2021 में अपने सकल घरेलू उत्पाद का 1.53 फीसदी ही रक्षा पर खर्च कर रहा था. जर्मनी के इतने कम रक्षा बजट की अमेरिका कई बार आलोचना कर चुका है.
रूस के साथ बढ़ते तनाव का प्रभाव
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से ही जर्मनी एक खामोशिप्रिय राष्ट्र बना रहा है. नाटो का मेम्बर होने के कारण जर्मनी ने पिछले 20 से 30 वर्ष में अपने रक्षा बजट को ज्यादा नहीं बढ़ाया था. इस राष्ट्र में अमेरिकी थल सेना और वायु सेना का अड्डा भी है. इसके बावजूद जर्मनी ने अपनी ऊर्जा जरुरतों को पूरा करने के लिए रूस के साथ समझौता किया था. नॉर्ड स्ट्रीम-1 गैस पाइपलाइन के जरिए रूस से जर्मनी को पिछले कई वर्ष से गैस का निर्यात किया जा रहा है.
जर्मनी ने रूस को दिया तगड़ा आर्थिक झटका
यूक्रेन पर आक्रमण के बाद जर्मनी ने रूस की नॉर्ड स्ट्रीम गैस पाइपलाइन-2 के अप्रूवल प्रॉसेस को रोक दिया है. 11 बिलियन $ की यह गैस पाइपलाइन बाल्टिक सागर से होते हुए रूस के साइबेरिया से जर्मनी तक जाएगी. यह पाइपलाइन रूस और जर्मनी के बीच पहले से चल रहे नॉर्ड स्ट्रीम-1 की क्षमता को लगभग दोगुना कर देगी. रूस इस पाइपलाइन के जरिए यूरोप के दूसरे राष्ट्रों तक अपनी गैस को पहुंचाने का स्वप्न देख रहा था.