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जगह जगह थे जमींदार डर की सूरत, चढ़े ही आते थे सर पर बुखार की सूरत, बला से कम ना थी एक एक गंवार की सूरत’ मिर्जा खान दाग उर्फ दाग देहलवी ने ये लाइनें दिल्ली में 1857 की क्रांति के बाद उस वक्त लिखी थीं, जब दिल्ली जीतने के कुछ दिनों बाद ही दिल्ली में वो सब देखने को मिल रहा था, जो किसी ने सोचा भी नहीं था।पढ़िए 1857 की
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दरअसल अंग्रेजों की विद्रोही सिपाहियों ने या तो हत्या कर दी या फिर वो जान बचाकर भाग गए लेकिन सिपाहियों को वेतन देने के लिए बादशाह जफर के पास पैसा नहीं था, बड़ी मुश्किल से 1 लाख रुपया जुटाया भी गया, वो भी कब खत्म हुआ पता ही नहीं चला। मौके का फायदा उठाकर ऐसे अराजक तत्व और चोर लुटेरे दिल्ली में सक्रिय हो गए, जो अंग्रेजी सेना के हटते ही लूटपाट मचाने लगे।
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