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चिड़ावा। दिव्यांग पैरा वेटलिफ्टिंग प्रतियोगिता में स्टेट लेवल पर रजत पदक विजेता खिलाड़ी दयासिंह का सोमवार को निधन हो गया। लेकिन दयासिंह को उनकी जिंदादिली और दया की प्रतिमूर्ति के रूप में हमेशा याद रखा जाएगा।
एक बच्ची के लिए खुद की जान लगाई दांव पर –
दयासिंह करीब आठ साल पहले जगन्नाथ यात्रा के दौरान बिजली का खंभा गिरने के दौरान एक बच्ची को बचाने के चक्कर में अपनी जिंदगी को दांव पर लगा दी और गंभीर रूप से घायल हो गए। दयासिंह की पोल की चपेट में आने से रीढ़ की हड्डी टूट गई थी। जिसके बावजूद दयासिंह ने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने साथी दिव्यांग खिलाड़ियों की प्रेरणा और गौरक्षा दल के साथियों के सहयोग से पैरा वेटलिफ्टिंग में हिस्सा लेना शुरू किया। उन्होंने निरंतर अभ्यास के चलते राज्य स्तरीय पैरा वेटलिफ्टिंग प्रतियोगिता में रजत पदक भी हासिल किया।

अधूरा रह गया एक सपना –
खिलाड़ी दयासिंह का सपना था कि वह देश के लिए पैरा ऑलम्पिक में पदक जीते। जिसके लिए वह नियमित तैयारी भी कर रहा था। इस बीच रीढ़ की हड्ड़ी में लगे जख्म गहरे होते गए। जिसके कारण संक्रमण फैल गया और पदक जीतने के अधूरे सपने के साथ ही दयासिंह ने दुनिया से विदाई ले ली।
दयासिंह के निधन पर जताया शोक –
दयासिंह की मौत की खबर मिलते ही दिव्यांग खिलाड़ी और गौरक्षा दल के सदस्य सरकारी अस्पताल पहुंचे। इस मौके पर अभिषेक पारीक, नवीन सैनी, विक्की हर्षवाल, अमित सैनी, विनय सोनी, अवतारसिंह शेखावत, भवानीसिंह राठौड़, परमहंस दिव्यांग सेवा समिति के अध्यक्ष होशियारसिंह, राष्ट्रीय पैरा खिलाड़ी अरुणकुमार दाधीच, संदीप सिंह, देवेंद्र सिंह, अरविंद दाधीच, पार्षद राकेश कुमार आदि मौजूद रहे। सभी ने दया सिंह के निधन पर गहरा दुख जताया। गमगीन माहौल में दया सिंह का अंतिम संस्कार किया गया।
पिता करते रहे आखिरी सांस तक सेवा –
अक्सर बेटे को पिता की सेवा करते देखा जाता है। लेकिन यहां परिस्थिति ने एक पिता को बेटे की सेवा में लगा दिया। पिता समंदर सिंह ने बेटे की सेवा खातिर अपनी नौकरी छोड़ दी और बेटे की आखिरी सांस लेने तक सेवा की। वहीं माता आँगनबाड़ी में आशा सहयोगिनी के पद पर कार्यरत है। एक भाई और बहन भी हैं। लेकिन इस पूरे परिवार का सब कुछ दया सिंह के इलाज पर ही लगता रहा। वहीं अब परिवार केवल एक मां की सेलरी पर ही चल रहा है।
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