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रमाबाई अंबेडकर मैदान में दो दिन तक चले सपा के सम्मलेन में सियासी समीकरणों को साधने का जबरदस्त कोशिश करी गयी। इसकी बानगी मंच के साथ साथ पार्टी के वरिष्ठ नेताओ के बयानों से भी दिखाई पड़ी। वहीँ पार्टी की जमीनी ताकत और प्रभाव को बढ़ाने के लिए जहाँ एक तरफ दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यंकों पर फोकस किया गया वही दूसरी तरफ पार्टी ने नौजवानो को भी केंद्र में रखा। इसके पीछे पार्टी का राजनितिक फायदा भी है क्योंकि संघर्ष में युवा ही आगे रहते हैं।
रमाबाई अंबेडकर मैदान में आयोजित इस सम्मेलन के दोनों दिन मंच पर सामाजिक भाईचारा दिखाने की भरपूर कोशिश की गई। मंच के बीच बैठे अखिलेश यादव के दाहिने और बाएं तरफ दोनों दिन अलग-अलग नेताओं को बैठने का मौका दिया गया। दहिने तरफ पहले दिन प्रो. रामगोपाल यादव, किरनमय नंदा, माता प्रसाद पांडेय, मनोज पांडेय, स्वामी ओमवेश जैसे नेता थे तो दूसरे दिन राम गोविंद चौधरी, लालजी वर्मा, विशंभर निषाद और इंद्रजीत सरोज को मौका मिला। इसी तरह पहले दिन बाएं तरफ स्वामी प्रसाद मौर्य, लालजी सुमन, अवशेध प्रसाद रहे तो दूसरे दिन डिंपल यादव, जया बच्चन, सफीकुर्ररहमान बर्क, सलीम शेरवानी, विशंभर निषाद जैसे नेता मौजूद रहे। मंच के पीछे एक तरफ मुलायम सिंह यादव तो दूसरी तरफ अखिलेश यादव की तस्वीर थी। बैनर पर सरदार वल्लभ भाई पटेल, डॉ. आंबेडकर, डॉ. लोहिया सहित अन्य महापुरुषों की तस्वीरें भी लगाई गईं थीं। सम्मलेन के पंडाल में जहाँ एक तरफ लोहिया की तस्वीरें और उनसे जुड़े नारे लगे थे वहीँ दूसरी तरफ आंबेडकर की तस्वीरें भी मौजूद थी। यह सारी चीजे पार्टी में हो रहे बदलाव की तरफ संकेत कर रही थी।
मंच पर मौजूद नेताओं ने अपने भाषण के दौरान बार बार दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यको के साथ साथ युवाओं के एकजुट होने की बात करी। मुलायम सिंह और काशीराम की दोस्ती के किस्से याद किये गए। आजम खां, मदरसा सर्वे सहित अन्य प्रकरण के जरिए अल्पसंख्यकों के साथ हो रहे अन्याय पर भाजपा सरकार को घेरने की कोशिश हुई।