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बिना पेमेंट के इलाज नहीं करेंगे प्राइवेट अस्पताल, Right to Health बिल पर सहमति…पर उठे कई सवाल

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जयपुर: राजस्थान में गहलोत सरकार का बहुप्रतीक्षित राइट टू हेल्थ बिल अब जल्द ही विधानसभा में पारित हो सकता है. बिल के पिछले सत्र में पेश किए जाने के बाद से लगातार इसके प्रावधानों को लेकर निजी अस्पतालों के विरोध प्रदर्शन के चलते बिल प्रवर समिति के पास अटका हुआ था, वहीं बिल को लेकर प्राइवेट डॉक्टरों ने बीते दिनों हड़ताल, सरकारी योजनाओं का बहिष्कार तक कर दिया लेकिन अब इस पर सरकार और प्राइवेट सेक्टर के बीच सहमति बन गई है. जानकारी के मुताबिक डॉक्टर्स और सरकार के बीच लगभग सभी बिंदुओं पर सहमति बन गई है. बीते शनिवार इंडियन मेडिकल एसोसिएशन राजस्थान के मीडिया प्रभारी डॉ. संजीव गुप्ता ने बताया कि बिल में बदलाव को लेकर मुख्य सचिव स्तर पर वार्ता के बाद सरकार और डॉक्टर्स के बीच करीब 8 बिंदुओं पर सहमति बन गई है और अब बिल बदलाव के साथ ही आएगा. हालांकि इन सहमति पर अब सीएम की मुहर का इंतजार बाकी है. इधर बिल में बदलाव को स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने वाले संगठनों का कहना है कि इन बदलावों से कानून कमजोर हो जाएगा. बता दें कि निजी अस्पतालों का लंबे समय से बिल में इमरजेंसी की परिभाषा और इमरजेंसी में बिना भुगतान के इलाज करने को बाध्य होने का प्रावधान था ऐसे में अब अगर नया बिल आता है तो प्राइवेट अस्पताल इसके लिए बाध्य नहीं होंगे.

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इमरजेंसी की परिभाषा पर झुकी सरकार !

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बिल को लेकर बनी ज्वाइंट एक्शन कमेटी के चेयरमैन डॉ. सुनिल चुग के नेतृत्व में डॉक्टरों की मुख्य सचिव स्तर पर वार्ता के बाद कई मुख्य बिंदुओं पर सरकार से सहमति बन गई है जहां बिल में अब निजी चिकित्सकों के हितों का भी ध्यान रखा जाएगा. वही IMA के मीडिया प्रभारी डॉ. संजीव गुप्ता ने जानकारी दी कि राइट टू हेल्थ बिल को लेकर चिकित्सकों को आ रही परेशानी के अनेक बिंदुओं पर सैद्धांतिक सहमति बनी है और नए बिंदुओं पर जो सहमति बनी है, वह लागू हुए तो निजी अस्पताल बिना भुगतान के इलाज के लिए बाध्य नहीं होंगे. मालूम हो कि निजी अस्पतालों का बिना भुगतान के सभी आपात स्थितियों का इलाज करने की बाध्यता को लेकर कहना था कि इमरजेंसी की परिभाषा तय नहीं है ऐसे में उन्हें भारी नुकसान होगा जिसके बाद अब अब निजी अस्पतालों को बिना भुगतान के इलाज नहीं करने की बाध्यता खत्म हो गई है.

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..बाकी इन मांगों पर बनी बात

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वहीं निजी अस्पतालों का कहना था कि दुर्घटना पीड़ितों के लिए मुफ्त रेफरल परिवहन यानि एंबुलेंस की सुविधा सरकार को करनी होगी जिस पर सरकार का कहना है कि किसी मरीज को बड़े अस्तपालों में रेफर करना हो तो एंबुलेंस की व्यवस्था या तो सरकार करेगी या मरीज को करनी होगी. वहीं मरीजों की शिकायतों के लिए बनने वाले एक प्राधिकरण को लेकर निजी क्षेत्र का कहना था कि जिला स्वास्थ्य समिति में ग्राम प्रधान और अन्य स्थानीय प्रतिनिधि होंगे जो पूर्वाग्रह के चलते डॉक्टर्स के खिलाफ पक्षपाती हो सकते हैं, उन्हें प्राधिकरण में शामिल नहीं किया जाए जिस पर बनी सहमति के मुताबिक कोई भी जनप्रतिनिधि सीधे तौर पर अस्पताल पर एक्शन नहीं ले सकेगा और मरीज की शिकायत के बाद सुनवाई बोर्ड में डॉक्टर्स होंगे. वहीं डॉक्टर्स और अस्पतालों के खिलाफ एक ही शिकायत निवारण प्रणाली हो जिस पर भी सरकार मान गई है. इसके अलावा राज्य सरकार की स्वास्थ्य योजनाओं से जुड़ने के लिए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से बाध्यता ना होकर पैकेज की दरें ठीक की जाएं जिस पर सरकार का पक्ष है कि निजी अस्पतालों की बाध्यता पूरी तरह खत्म की जाएगी और संभवत: पैकेज दरें भी बढ़ाई जाएंगी.

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अब कानून महज एक औपचारिकता : जेएसए

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वहीं बिल को लेकर शुरूआत से अपने सुझाव रखने वाले सामाजिक संगठ जन स्वास्थ्य अभियान का कहना है कि सरकार ने निजी डॉक्टर्स एसोसिएशन की सारी मांगें मान ली जो बेहद निराशाजनक है कि एक राज्य की सरकार को निजी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र लॉबी के दबाव के आगे इस तरह घुटने टेकने पर मजबूर होना पड़ा. जेएसए की राज्य समनव्यक छाया पचौली का कहना है कि बिल में प्रस्तावित शिकायत निवारण प्रणाली अब महज एक औपचारिकता स्वरूप रह जाएगी क्योंकि शिकायत निवारण एवं अन्य कार्यों हेतु गठित जिला और राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरणों में अब सरकार के प्रतिनिधि और चिकित्सकों के अलावा अन्य कोई सदस्य नहीं होंगे ऐसे में इस प्राधिकरण को गठित करने का कोई औचित्य दिखाई नहीं देता है. वहीं निजी डॉक्टरों के मुताबिक इस कानून के तहत सारे अधिकार सिर्फ़ राजस्थान के निवासियों पर ही लागू होंगे जिस पर सरकार ने सहमति दी है, ऐसे में पचौली के मुताबिक राजस्थान के निवासी के स्वास्थ्य के आधिकारों के अलावा किसी और का हनन हो इससे सरकार को कोई लेना देना नहीं है? यह कैसा स्वास्थ्य का अधिकार हुआ?

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