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ना पेंशन मिली और ना ही बेटे को नौकरी…अडानी विल्मर फैक्ट्री में गंवाए पैर, अब राष्ट्रपति से मदद की आस

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बूंदी: राजस्थान के बूंदी जिले में स्थित अडानी विल्मर फैक्ट्री में हुए हादसे में अपने दोनों पैर गंवाने वाले मजदूर को अब तक न्याय नहीं मिला. दरअसल, फैक्ट्री में मजदूर ने एक हादसे के दौरान अपने दोनों पैर गंवा दिए थे. हालांकि, 18 साल बीत जाने के बावजूद अभी तक न्याय नहीं मिला है. वहीं, बुजुर्ग का नाम बाबूलाल रेगर बताया जा रहा है. यहां पर बाबू लाल ने डीएम को ज्ञापन देकर अपने साथ हुए अन्याय की शिकायत की. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूर बाबूलाल रेगर बीते शुक्रवार को जब साइकिल से बूंदी जिला कलेक्ट्रेट पहुंचे तो उसकी आँखों में आंसू थे. इस दौरान राजस्थान बीज निगम के निदेशक चर्मेश शर्मा भी पीड़ित मजदूर के साथ रहे. वहीं, कलक्ट्रेट में बाबूलाल रेगर ने बताया कि मैं बचपन से अपाहिज नही थे.

क्या है मामला?

इस दौरान बाबू रेगर कलेक्ट्रेट पहुंचे. जहां उन्होंने कहा कि एक एक्सीडेंट हादसे में वो विक्लांग हो गए थे. उस दौरान बाबू लाल ने फ्रैक्ट्री प्रबंधन को कई बार मशीने खराब होने की जानकारी दी थी. मगर, सभी ने उस बात को अनसुना कर दिया था.जिसके चलते अडानी विल्मर फैक्ट्री में काम करते हुए दोनों पैर कट गए, जिसके बाद फैक्ट्री प्रबंधन के ऊपर लापरवाही का आरोप लगाया था.

बेटे को ना मिली पेंशन और ना ही नौकरी

इस दौरान बूंदी जिले के डीएम को राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मु के नाम पर दिए गए ज्ञापन में पीड़ित बाबूलाल का कहना है कि कंपनी ने एक्सीडेंट के बाद बेटे को नौकरी और पेशन देने के नाम पर समझौता करा लिया था. हालांकि कुछ समय तक बेटे को फैक्ट्री में रखा. उसके बाद उसे उसकी नौकरी से भी निकाल दिया. इसके साथ ही पीड़ित बाबूलाल ने कंपनी पर आरोप लगाते हुए बताया था कि आजीवन पेंशन देने की बात की थी. मगर, अभी 18 साल बीत जाने पर भी पेंशन तक शुरू नहीं हो पाई है.

जल्द से जल्द पीड़ित की पेंशन की जाए शुरू

हालांकि, इस मामले में बीज निगम के डायरेक्टर का कहना है कि अडानी विल्मर कंपनी से तत्काल पीड़ित मजदूर को 18 साल तक की पेंशन देने की मांग की है. उन्होंने कहा कि पीड़ित मजदूर के फैक्ट्री में काम करने के दौरान साल 2004 में दोनों पैर कट गए थे. ऐसे में अभी तक पेंशन शुरू न करना और उसके बेटे को भी नौकरी नहीं देना अमानवीय है. पीड़ित बाबूलाल ने बताया कि वो करीब 18 सालों से दफ्तरों के चक्कर काट रहा है. जबकि, परिवार को खाने की नौबत आ गई है.

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