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कर्नाटक की सियासत में अब भाजपा का क्या होगा, कैसे जीतेगी दक्षिण का दुर्ग?

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कर्नाटक में बीजेपी का विजय रथ पटरी से उतर गया. जैसा कि सर्वे में अनुमान लगाया गया था, वह सही साबित हुआ. कांग्रेस प्रदेश की सत्ता में एक बार फिर पूरी ताकत के साथ वापस आ गई. कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को बहुमत से जादुई आंकड़े से कहीं ज्यादा (136) सीटें मिलीं, जबकि बीजेपी को 64 सीटें ही हासिल हो सकीं. पीएम नरेंद्र मोदी, गृहमंंत्री अमित शाह समेत बीजेपी के स्टार प्रचारकों ने प्रदेश में जिस तरह से प्रचार अभियान चलाया- उसे देखते हुए ये आंकड़ा प्रत्याशित नहीं. ये पार्टी की करारी है. वास्तव में बीजेपी ने कर्नाटक को दक्षिण के राज्यों में प्रवेश का द्वार माना और पिछले करीब चार दशक से पार्टी इसके संघर्ष करती रही है लेकिन लाख प्रयास के बावजूद बीजेपी को कर्नाटक की सीमा से पार निकलने का कभी अवसर नहीं मिला. बल्कि कर्नाटक में ही कभी जीत तो कभी हार का सामना करना पड़ता रहा. 2023 के चुनाव में पार्टी एक बार फिर हार गई.

1983 में यहां बीजेपी का हुआ उदय

देश के कई राज्यों की तरह कर्नाटक में भी कभी कांग्रेस का लंबा राज कायम था. लेकिन साल 1983 से सारे राजनीतिक समीकरण बदलते गये. रामकृष्ण हेगड़े के नेतृत्व में जनता पार्टी ने कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर दिया था. यही वो मौका था जब भारतीय जनता पार्टी ने जनता पार्टी को बाहर से समर्थन देकर कांग्रेस को सत्ता से दूर रखकर अपनी एंट्री मारी. सन् 1983 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने यहां पहली बार चुनाव लड़ा. बीजेपी ने यहां की 110 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किये, लेकिन जनता पार्टी को जहां 95 सीटें मिलीं, वहीं कांग्रेस को 82 सीटों पर जीत मिली जबकि बीजेपी को 18 सीटें मिलीं. तब जनता पार्टी और भारतीय जनता पार्टी ने मिलकर पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार बनाई. हालांकि दो साल बाद विशेष परिस्थितिवश प्रदेश में दोबारा चुनाव हुए. इस बार जनता पार्टी ने 139 सीटों के साथ बंपर जीत हासिल की और पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई, नतीजतन कांग्रेस को 65 सीटें मिलीं जबकि बीजेपी को 3 सीटों पर ही संतोेष करना पड़ा. बीजेपी का संघर्ष इसके बाद के 1989 के चुनाव में भी देखने को मिला, कांग्रेस 178 सीटें जीतकर सत्ता में आई लेकिन बीजेपी को केवल 4 सीटें मिलीं.

राम मंदिर आंदोलन से मिला फायदा

1990 के बाद की देश की राजनीति को दो विशेष आंदोलनों ने खासतौर पर प्रभावित किया-एक-मंडल कमीशन की क्रांति और दूसरे-रामजन्मभूमि आंदोलन. राममंदिर आंदोलन से भारतीय जनता पार्टी को देशव्यापी भरपूर लाभ हुआ. 1994 के चुनाव में भाजपा को यहां 40 सीटें हासिल हुईं. इसके बाद धीरे-धीरे ग्राफ बढ़ता गया. बीजेपी को जहां 1999 में 44 सीटें मिलीं वहीं 2004 में 79 तो 2008 में 110 सीटें मिलीं.

कर्नाटक में बीजेपी का उतार चढ़ाव जारी रहा

भ्रष्टाचार के आरोप के चलते 2008 में मुख्यमंत्री बने बीएस येदियुरप्पा को इस्तीफा देना पड़ा था. प्रदेश में कांग्रेस पार्टी ने बीजेपी के खिलाफ भ्रष्टाचार का माहौल बनाया, जिसके चलते बीजेपी को भारी नुकसान हुआ. कांग्रेस को 122 सीटें मिलीं जबकि बीजेपी को वापस 40 पर आना पड़ा. लेकिन अगले चुनाव में बीजेपी की निराशा फिर से दूर हो गई. साल 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 104 सीटें मिलीं जबकि कांग्रेस को 80 तो जेडीएस को 37 सीटें मिलीं. हालांकि सबसे ज्यादा सीटें हासिल करके भी बीजेपी को सरकार बनाने का मौका नहीं मिला. कांग्रेस और जेडीएस ने मिलकर सरकार बनाई. परंतु यह सरकार ज्यादा दिनों तक नहीं चल सकी. कांग्रेस-जेडीएस की सरकार गिरने पर बीजेपी ने फिर से सरकार बनाई. पहले बीएस येदियुरप्पा मुख्यमंत्री बने लेकिन उनके इस्तीफा देने के बाद बसवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री के तौर पर चुना गया था.

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