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कर्नाटक जीत से फीकी रह गई सचिन पायलट की ‘जन संघर्ष पदयात्रा’, न मीडिया फेम मिला न हाईकमान ने लिफ्ट दी

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कांग्रेस नेता सचिन पायलट ने 15 मई को अपनी पांच दिन की पदयात्रा पूरी करने के साथ ही अगले आंदोलन की घोषणा भी कर दी. उन्होंने कहा है कि सरकार ने इस महीने के अंत तक अगर उनकी मांगें नहीं मानीं तो वे पूरे प्रदेश में फिर से आंदोलन करेंगे. हाल ही में उन्होंने अपनी ही सरकार के खिलाफ एक दिन का उपवास भी रखा था. उन्होंने पिछली वसुंधरा सरकार में हुए कथित भ्रष्टाचार की जांच की मांग हाल के दिनों में तेज कर दी है. उनकी एक मांग नौकरी भर्ती एग्जाम के पेपर लीक की जांच को लेकर है. चुनाव के मुहाने पर खड़ी अपनी ही सरकार के खिलाफ लगातार आंदोलन कर रहे सचिन पायलट के किसी भी आंदोलन का अब सरकार पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा है. पार्टी हाईकमान भी उन्हें फिलहाल उनके हाल पर छोड़ रखा है. अजमेर से शुरू होकर जयपुर में खत्म हुई सचिन पायलट की पदयात्रा का समय भी ऐसा था कि उन्हें जो मीडिया हाइप मिल सकती थी, नहीं मिली. सचिन ने 11 मई को यात्रा की शुरुआत की. 13 मई को कर्नाटक चुनाव के साथ ही उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव की भी मतगणना तय थी. मतगणना के बाद कांग्रेस की जीत हुई तो सारा का सारा मीडिया फोकस उधर ही रहा, अभी भी सरकार गठन तक ऐसा ही चलने वाला है.

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दोनों में समझौते की संभावना दूर-दूर तक नहीं दिखती

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अब लोग अलग सवाल उठाने लगे हैं कि सचिन पायलट के आंदोलनों का हासिल हिसाब असल में क्या है? जाहिर है, फिलहाल उनके हाथ खाली ही हैं. सीएम अशोक गहलोत उनकी सुनने भी नहीं जा रहे हैं. जितना सुनना था, पहले काफी सुन चुके हैं. अब दोनों के बीच दूरियां इतनी बढ़ चुकी हैं कि समझौते की भी संभावना दूर-दूर तक नहीं दिखती. हालांकि, राजनीति संभावनाओं की ही मंडी है. हो कुछ भी सकता है. सचिन पायलट सब कुछ जान-बूझकर कर रहे हैं. असल में फिलहाल उन्हें न सरकार लिफ्ट दे रही है और न ही कांग्रेस हाईकमान और विरोध की यात्रा में वे इतना आगे निकल चुके हैं कि पीछे मुड़ने की संभावना न के बराबर दिखती है. वे युवा हैं, होशियार हैं और उनमें संभावनाएं हैं. पर, एकदम अलग पड़ जाने की वजह से एक अजीब सी कसक लिए वे कुछ न कुछ करते रहते हैं.

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पहले केंद्रीय मंत्री रहे, सरकार गई तो राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष बने

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सचिन केन्द्रीय मंत्री थे. सरकार चली गई तो फिर राजस्थान पीसीसी के अध्यक्ष बना दिए गए. यहां तक कोई गड़बड़ी नहीं हुई. उन्होंने खूब मेहनत की. साल 2018 में चुनाव हुआ और राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बन गई. उन्हें सीएम बनने की उम्मीद थी, लेकिन उस कुर्सी पर अशोक गहलोत बैठे. डिप्टी सीएम की शपथ सचिन ने ली, लेकिन रह-रहकर सीएम की कुर्सी उन्हें बेचैन किए रही. फिर जो हुआ, सब जानते हैं. सचिन न पीसीसी अध्यक्ष रहे न ही डिप्टी सीएम, अब वे सिर्फ एमएलए हैं. अपना सब कुछ गंवाने का श्रेय भी सचिन को ही जाता है.

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सचिन पायलट ने अशोक गहलोत को हमेशा प्रतिद्वंद्वी की तरह देखा

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वरिष्ठ पत्रकार विनोद भारद्वाज कहते हैं कि सचिन पायलट से शुरू में ही चूक हुई. वे अगर गहलोत को बड़े भाई की तरह देखते तो उनकी ओर से वही प्यार उड़ेला जाता. पर, सचिन ने उन्हें हमेशा प्रतिद्वंद्वी की तरह देखा. जबकि यह सच सब जानते हैं कि गहलोत के बाद फिलहाल कांग्रेस में सचिन ही नेता हैं. डिप्टी सीएम के रूप में अगर सचिन काम करते रहते और गहलोत से सीखते हुए आगे बढ़ते तो आज कांग्रेस और सरकार, दोनों की स्थिति जुदा होती. गहलोत अपने आप में राजनीति की पाठशाला हैं. पर, सचिन ने ऐसा न करके खुद और पार्टी, दोनों का नुकसान किया.

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घोटाले के आरोपियों के घर बुलडोजर नहीं चला तो हो गए नाराज

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इस बीच एक तथ्य यह सामने आया है कि जिस कथित घोटाले की मांग सचिन अब कर रहे हैं, उस मामले में कांग्रेस के ही एक नेता राम सिंह कासवान हाईकोर्ट लेकर गए थे, तब सचिन खुद पीसीसी चीफ थे, उस समय अदालत ने यह रिट खारिज कर दी थी. लोग सवाल उठा रहे हैं कि जब हाईकोर्ट ने उनकी नहीं सुनी तो पीसीसी चीफ और बाद में डिप्टी सीएम रहे सचिन ने क्यों कुछ नहीं किया? जिस पेपर लीक घोटाले का मुद्दा वे उठा रहे हैं, उसमें राजस्थान पब्लिक सर्विस कमीशन के सदस्य रहे बाबूलाल कटारा गिरफ्तार हुए और जेल गए. सचिन का सवाल है कि कटारा के घर पर बुलडोजर क्यों नहीं चला? लोगों का कहना है कि कानून की किस किताब में लिखा है कि ऐसे मामले में आरोपी के घर पर बुलडोजर चला दिया जाए?

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सरकार के खिलाफ झंडा उठाकर सब कुछ गंवा बैठे सचिन पायलट

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इस पूरे मामले पर वरिष्ठ पत्रकार, प्रोफेसर राकेश गोस्वामी कहते हैं कि सचिन पायलट जो कुछ भी मांग आज उठा रहे हैं, उन सब पर कार्रवाई करने या करवाने की स्थिति में थे. सरकार में डिप्टी सीएम रहते यह काम बहुत आसान था. शुरू में उनके रिश्ते गहलोत से ठीक भी थे. उस समय कुछ किए नहीं, हां सरकार के खिलाफ झंडा उठाकर सब कुछ गंवा बैठे. अब जब चुनाव सिर पर है तो सरकार को ही असहज करने से पीछे नहीं हैं. ऐसे में उनकी नीति को सब लोग समझ गए हैं, पार्टी, सरकार और आम जनता भी. अब सचिन के आंदोलनों का फिलहाल गहलोत सरकार पर कोई असर भी नहीं पड़ने जा रहा है.

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