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कर्नाटक के नए मुख्यमंत्री 75 साल के सिद्धारमैया होंगे। 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के बाद डीके शिवकुमार को CM बनाया जाएगा। चार दिन से चल रही उठापटक के बीच बुधवार रात को यह फैसला लिया गया। बुधवार रात को क्या-क्या हुआ और डीके को कैसे मनाया गया।
जब खड़गे से नहीं माने तो सोनिया ने फिर कॉल किया…
रात के 10.15 बज रहे थे। सिद्धरमैया कर्नाटक कांग्रेस के इंचार्ज रणदीप सुरजेवाला के साथ मीटिंग कर रहे थे। उनके साथ कांग्रेस के जनरल सेक्रेटरी केसी वेणुगोपाल भी थे। 10.38 पर कांग्रेस नेता अजय सिंह ने कहा कि ‘आज ही रात आखिरी निर्णय ले लिया जाएगा। कोई खास दिक्कत नहीं है।’ इधर रणदीप सिंह सुरजेवाला केसी वेणुगोपाल के घर पहुंचते हैं और फिर बातचीत शुरू होती है। यही वो मीटिंग थी जिसमें डीके शिवकुमार को डिप्टी सीएम के लिए मना लिया गया। मीटिंग करीब 1 बजे तक चलते रही। इसमें पहले खड़गे ने डीके को मनाया। तमाम दलीलें रखीं। प्रियंका-राहुल ने भी बात की।
जब बात नहीं बन रही थी तो फिर डीके की सोनिया गांधी से बात करवाई गई। सोनिया शाम को डीके से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग पर बात कर चुकी थीं लेकिन उसमें बात नहीं बन पाई थी। रात में उन्होंने फोन कॉल पर डीके से बात की।
डीके को साफ बताया किया गया कि, ‘कर्नाटक में कोई भी डिसीजन उनकी सहमति के बिना नहीं लिया जाएगा। सिद्धारमैया को भले ही सीएम बनाया जा रहा है, लेकिन उन्हें हर निर्णय में डिप्टी सीएम ही सहमति लेना ही होगी। साथ ही डीके को यह भी कहा गया कि, आपकी पसंद के विधायकों को वो पोर्टफोलियो दिए जाएंगे, जो वो चाहते हैं। ढाई साल बाद सिद्धारमैया को हटाकर आपको सीएम बना दिया जाएगा।’जब यह सब बातें हो रहीं थीं तब डीके के साथ उनके आठ से दस समर्थक और भाई डीके सुरेश भी मौजूद थे, जो कर्नाटक में कांग्रेस के एकमात्र सांसद हैं। सोनिया गांधी से बातचीत के बाद डीके नरम पड़े और रात में करीब 2 बजे तक वो नए फॉर्मूले पर पूरी तरह से राजी हो गए थे।
इसके बाद तय हुआ कि 18 मई को शाम 7 बजे कांग्रेस विधायकों की मीटिंग बुलाई जाएगी और सिद्धारमैया को विधायक दल का नेता चुना जाएगा। हालांकि मीडिया में यह खबर सुबह 7 बजे के करीब आई कि कर्नाटक कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार ने आज शाम को विधायक दल की बैठक बुलाई है। सुबह 10.30 बजे के करीब डीके ने खुद नए फॉर्मूले पर सहमति होने की बात कही।
यह सब बातें भी रात में ही तय हो गई थीं कि पिछले तीन दिनों से जो उठापटक चल रही है, उससे गलत मैसेज जा रहा है। सभी नेताओं को एकजुट होकर देश को मैसेज देना है कि कांग्रेस में कोई गुट नहीं है। पूरी पार्टी एक है।
इसी स्ट्रैटजी के तहत आज सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार एक ही गाड़ी से निकले। सीनियर जर्नलिस्ट अशोक चंदारगी कहते हैं, 2013 से 2018 के बीच सिद्धारमैया जब सीएम थे तब वो हाईकमान के कंट्रोल में नहीं थे। वो सारे डिसीजन अपने हिसाब से कर थे लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो पाएगा। अब हर डिसीजन में डीके शिवकुमार को शामिल करना ही होगा।
भास्कर ने बुधवार सुबह ही खुलासा कर दिया था कि सिद्धारमैया CM और शिवकुमार डिप्टी CM होंगे। शिवकुमार पर तीन फॉर्मूले पर बात हो रही थी। इसमें से वे 50-50 फॉर्मूले पर राजी हुए। पहले ढाई साल सिद्धारमैया सीएम रहेंगे और बाद के ढाई साल डीके। यानी डीके लोकसभा चुनाव के बाद 2025 में मुख्यमंत्री बनेंगे। लोकसभा चुनाव तक डीके शिवकुमार पीसीसी अध्यक्ष भी बने रहेंगे।
CM पद की रेस में सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार दोनों ही मजबूत दावेदार थे। डीके ने चुनाव में जिस तरह से रोल निभाया था, उन्हें पूरी उम्मीद थी कि इस बार CM उन्हें ही बनाया जाएगा। डीके शिवकुमार बुधवार दोपहर 12:15 बजे राहुल से मिलने पहुंचे थे। दोनों की एक घंटे मीटिंग हुई। इससे पहले पार्टी के वरिष्ठ नेता केसी वेणुगोपाल ने सोनिया गांधी से मुलाकात की थी। सूत्र बताते हैं कि पहले सोनिया गांधी डीके के नाम पर सहमत थीं, पर वे दो-तीन वजहों से पिछड़ गए।
डीके इसलिए नहीं बन पाए CM…
पहली बड़ी वजह रही उनके ऊपर चल रही CBI और ED की जांच। कांग्रेस को डर था कि उन्हें CM बनाया तो BJP हमलावर हो सकती है। कांग्रेस को इससे नुकसान होगा। हाल में कर्नाटक के DGP प्रवीण सूद को CBI का डायरेक्टर भी बनाया गया है।
डीके और प्रवीण सूद की बिल्कुल नहीं पटती। कहा जा रहा था कि सूद को जानबूझकर ऐन वक्त पर CBI की कमान सौंपी गई है, क्योंकि डीके ने सरकार आने के बाद उन पर एक्शन लेने की बात कही थी।
डीके के पिछड़ने की दूसरी वजह ये रही कि वे वोक्कालिग्गा कम्युनिटी से आते हैं। इस कम्युनिटी की कर्नाटक में करीब 11% आबादी है। ओल्ड मैसूरु में इसका असर है। डीके की ओल्ड मैसूरु में अच्छी पकड़ है, लेकिन पूरे कर्नाटक के नजरिए से देखा जाए तो सिद्धारमैया डीके पर भारी पड़ते दिखाई देते हैं। वे कुरुबा कम्युनिटी से आते हैं और उनकी दलितों, पिछड़ों और मुस्लिमों में भी पकड़ है। उनकी सेकुलर छवि है।
कांग्रेस सिद्धारमैया की साफ छवि का फायदा लोकसभा चुनाव में उठाना चाहती है। कर्नाटक में लोकसभा की 28 सीटें हैं। इनमें सिर्फ एक सीट पर कांग्रेस का सांसद है। वे भी डीके शिवकुमार के छोटे भाई डीके सुरेश हैं। इस बार पार्टी चाहती है कि 28 में से कम से कम 20 सीटें अपने पाले में की जाएं। इसके जरिए जरूरी है कि सिद्धारमैया की छवि, जमीनी पकड़ डीके की संगठन क्षमता का फायदा उठाया जाए।
कर्नाटक में डीके पावरफुल बने रहेंगे
डीके शिवकुमार कर्नाटक की राजनीति में पावरफुल बने रहेंगे। उनके पसंदीदा विधायकों को बड़े पोर्टफोलियो दिए जाएंगे। लोकसभा चुनाव को मैनेज करने की पूरी जिम्मेदारी उन पर होगी, यानी टिकट बंटवारे से लेकर इलेक्शन स्ट्रैटजी बनाने तक में उनका रोल सबसे बड़ा रहेगा।
हाईकमान ने डीके को CM न बनाने के पीछे एक हवाला उम्र का भी दिया गया है। उन्हें कहा गया है कि अभी वे सिर्फ 61 साल के हैं और उनके पास राजनीति करने का लंबा वक्त है। कर्नाटक में आने वाले वक्त में वही कांग्रेस का नेतृत्व करेंगे, जबकि सिद्धारमैया का यह आखिरी चुनाव है। ऐसे में वो सिद्धारमैया CM बनने दें।
सोनिया गांधी को मां की तरह मानते हैं डीके
डीके शिवकुमार गांधी परिवार के लिए पूरी तरह से वफादार हैं। वे सोनिया गांधी को मां की तरह मानते हैं। CM पद के लिए रस्साकशी चल रही थी, तब राहुल गांधी सिद्धारमैया को CM बनाने की वकालत कर रहे थे, लेकिन सोनिया और प्रियंका गांधी डीके शिवकुमार के नाम पर सहमत थीं। कांग्रेस लीडरशिप ने इस पूरी स्थिति को लोकसभा चुनाव से जोड़ते हुए देखा।
फिर यह तय हुआ कि डीके को अभी CM बनाया तो लोकसभा चुनाव में इसका नुकसान उठाना पड़ेगा। सिद्धारमैया के मामले में ऐसा नहीं होगा। राहुल के साथ ही सोनिया गांधी ने भी डीके शिवकुमार से तमाम पॉइंट़्स पर बात की। इसके बाद वो राजी हुए।
लोकसभा चुनाव के लिहाज से कांग्रेस ने बनाया था फॉर्मूला
सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार की दावेदारी के बीच कांग्रेस हाईकमान ने एक फॉर्मूला तैयार किया था। इसके तहत कुरुबा कम्युनिटी से आने वाले सिद्धारमैया को CM और उनके अंडर में तीन डिप्टी CM का प्लान था।
तीनों डिप्टी CM अलग-अलग कम्युनिटी के होंगे। इनमें वोक्कालिगा कम्युनिटी से आने वाले डीके शिवकुमार, लिंगायत कम्युनिटी के एमबी पाटिल और नायक/वाल्मिकी समुदाय के सतीश जारकीहोली का नाम शामिल था। कर्नाटक में कुरुबा आबादी 7%, लिंगायत 16%, वोक्कालिगा 11%, SC/ST करीब 27% हैं, यानी इस फैसले से कांग्रेस की नजर 61% आबादी पर थी।
कर्नाटक में कांग्रेस की 34 साल बाद सबसे बड़ी जीत
कर्नाटक के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 224 में से 135 सीटें जीती हैं। उसे 43% वोट मिले हैं। राज्य में सरकार चला रही BJP को 66 और JD(S) को 19 सीटें मिली हैं। कांग्रेस ने कर्नाटक में 34 साल बाद सबसे बड़ी जीत हासिल की है। इससे पहले 1989 में उसने 178 सीटें जीती थीं। 1999 में उसे 132 सीटें मिली थीं।