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कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता परसादी लाल मीणा ने एक बार कहा था कि जैसे राजस्थान में अशोक गहलोत के बिना कांग्रेस की कल्पना नहीं की जा सकती वैसे ही वसुंधरा राजे सिंधिया के बिना भारतीय जनता पार्टी भी सूबे में जीरो है. अगर पार्टी राजे को नजरअंदाज करेगी तो वो उसका बुरा हाल हो जाएगा. राजस्थान के इन दोनों ही दिग्गजों को अक्सर अंदरूनी कलह का शिकार होना पड़ा है, लेकिन हर बार ये जीत की पताका लेकर ही उन मुश्किल हालातों से बाहर निकलते हैं. रजवाड़ों की भूमि पर हर बार सत्ता बदलती है. एक बार कांग्रेस पार्टी की सरकार रहती है तो अगली बार बीजेपी के हाथ में परचम होता है.दिसंबर 1998 में गहलोत पहली बार सूबे के मुखिया बने थे. अगले चुनावों यानी 2003 में वसुंधरा के नेतृत्व में सूबे की सरकार बनी. तभी से एक साल तुम्हारी एक साल हमारी सरकार का फॉर्मूला राजस्थान में बदस्तूर जारी है. ढाई दशक का समय बीत गया है और सूबे की जनता ने सिर्फ दो ही लोगों को सीएम की कुर्सी पर देखा है. गहलोत और वसुंधरा. गहलोत तीन बार तो वसुंधरा दो बार इस कुर्सी पर बैठ चुकी हैं. हालांकि मौजूदा हालातों को देखा जाए तो इन दोनों ही नेताओं के लिए माहौल कुछ साथ देता नहीं दिखाई दियाा.पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व कद्दावर नेता वसुंधरा को कुछ खास पसंद नहीं करता है. ऐसे में कई मौके ऐसे आए जब लगा की पार्टी उनसे किनारा करने की कोशिश में है. इसके कई प्रयास भी किए गए, लेकिन बड़े ही माहिर खिलाड़ी की तरह वसुंधरा ने अपने दांव चले और बता दिया कि रजवाड़ों की भूमि पर अगर कमल किसी के हाथ में रहेगा तो वो हैं वसुंधरा राजे सिंधिया.
लोकसभा चुनाव के लिए वसुंधरा को बनाया गया झारखंड का प्रभारी
हाल ही में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अजमेर से आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनाव का बिगुल फूंका तब ये कयास लगाए जा रहे थे कि वो पूरी तरह से वसुंधरा को किनारे कर रहे हैं. इससे पहले ही वसुंधरा को आगामी लोकसभा चुनाव के लिए झारखंड का प्रभारी बनाकर किनारे लगाने की कोशिश भी की गई. हालांकि ऐसा नहीं हुआ और वसुंधरा ने अपने पासे कुछ यूं फेंके कि केंद्र भी समझ गया कि वसुंधरा के बिना सूबे में उतरे तो हाथ खाली ही रह जाएगा. शायद इसी लिए पार्टी अब उनके सामने सरेंडर करती हुई दिखाई दे रही है. हाल ही में वसुंधरा दिल्ली पहुंची.
BJP के वरिष्ठ नेताओं से मिलीं वसुंधरा राजे
दिल्ली में पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं से मिलीं. उन्होंने पार्टी मुख्यालय में बीजेपी के राष्ट्रीय संगठन महासचिव बीएल संतोष से मुलाकात की. ये मुलाकात राजस्थान में होने वाले चुनावों के मद्देनजर काफी अहम मानी जा रही है. राजनीति के जानकारों का मानना है कि बीजेपी आलाकमान वसुंधरा की ताकत को भांप चुका है और अब आगामी चुनावों में उन्हें बड़ी भूमिका सौंपा जाना लगभग तय है. इनमें चुनाव प्रचार कमेटी की कमान वसुंधरा के हाथ सौंपे जाने की बात प्रमुख है. वहीं दो बार मुख्यमंत्री रह चुकीं वसुंधरा के समर्थक इसबार भी उन्हें मुख्यमंत्री का चेहरा बनाकर उतारने की मांग करते रहे हैं. ये मांग दोबारा भी समय आने पर दोहराई जाएंगी.
2019 के लोकसभा चुनाव में खरी उतरी थीं वसुंधरा राजे
हालांकि वसुंधरा के विरोधी सामुहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ने की बातें करते हैं. इसके लिए हवाला 2018 विधानसभा चुनाव की हार का दिया जाता है. हालांकि इन चुनावों के बाद 2019 के लोकसभा चुनाव की जिम्मेदारियां भी पार्टी ने वसुंधरा को सौंपी थी, जिसपर खरी उतरते हुए उन्होंने पार्टी को सूबे में क्लीन स्वीप करने में मदद की. जिस कांग्रेस पार्टी ने लोकसभा चुनावों के ठीक एक साल पहले ही सूबे में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई, उसे लोकसभा चुनावों में 25 में से एक भी सीट नसीब न हुई. 24 सीटों पर बीजेपी का कब्जा रहा.वसुंधरा जमीनी स्तर पर नेताओं को जोड़ने के सारे दांव पेंच जानती हैं. ऐसे में पार्टी ये समझ चुकी है कि वसुंधरा को दरकिनार किया गया तो पार्टी के भीतर ही कई धड़े हो जाएंगे, जिसका फायदा कांग्रेस पार्टी को मिल सकता है और इसका असर आगमी लोकसभा चुनाव पर भी पड़ना तय है. दक्षिण भारत में कमजोर बीजेपी हरगिज भी राजस्थान को विधानसभा फिर लोकसभा में गंवाना हरगिज नहीं चाहेगी.