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दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार केंद्र की ओर से अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग को लेकर लाए गए अध्यादेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है. दिल्ली सरकार ने अपनी याचिका में केंद्र सरकार के अध्यादेश को गैर-कानून और असंवैधानिक करार दिया है. दिल्ली सरकार ने याचिका पर तत्काल सुनवाई करते हुए अध्यादेश पर रोक लगाने की मांग की है. इसके साथ-साथ आम आदमी पार्टी ने 3 जुलाई को अध्यादेश की कॉपी जलाने का भी फैसला किया है. सुप्रीम कोर्ट ने 11 मई को केजरीवाल सरकार की याचिका पर अपना फैसला सुनाते हुए दिल्ली में पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था और भूमि से जुड़े मामले को छोड़कर सभी सेवाओं का कंट्रोलिंग पॉवर चुनी हुई सरकार को सौंपने का आदेश दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार दिल्ली सरकार को है. इसके साथ-साथ कोर्ट ने यह भी साफ किया था
कि दिल्ली की चुनी हुई सरकार के हर अधिकार में उपराज्यपाल दखल नहीं दे सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट इस फैसले को केजरीवाल सरकार की बड़ी जीत मानी गई थी, लेकिन इस मामले में उस समय नया मोड़ आ गया जब 19 मई को केंद्र सरकार ने एक अध्यादेश लाते हुए कोर्ट के आदेश को पलट दिया. केंद्र सरकार ने अपने अध्यादेश के जरिए अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार वापस उपराज्यपाल को दे दिया. इस प्राधिकरण में कुल तीन सदस्य होंगे. पहला दिल्ली के सीएम, दूसरा दिल्ली के मुख्य सचिव और तीसरे सदस्य के रूप में दिल्ली के गृह प्रधान सचिव को इसमें शामिल किया गया. प्राधिकरण का अध्यक्ष दिल्ली के मुख्यमंत्री का बनाया जाएगा.अध्यादेश लाने के पीछे केंद्र सरकार की ओर से दलील दी गई है कि दिल्ली कोई आम स्टेट नहीं है यह देश की राजधानी है और सुप्रीम कोर्ट से लेकर संसद और राष्ट्रपति भवन स्थित है. देश के कई बड़े अधिकारी दिल्ली में ही रहते हैं. ऐसे में अगर कभी कोई चूक होती है तो इससे देश-दुनिया में भारत की छवि धुमिल होगी. सरकार ने कहा कि दिल्ली में लिए गए फैसले का असर केवल यहां रह रहे लोगों पर ही नहीं बल्कि पूरे देश की जनता पर पड़ता है.