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छत्तीसगढ़ में टीएस सिंहदेव को डिप्टी सीएम बनाने के फैसले के बाद एक सवाल राजस्थान की फिज़ा में तारी है कि क्या अब फिर से सचिन पायलट की किस्मत चमकने वाली है? क्या उनकी डिप्टी सीएम पद पर वापसी हो सकती है? राजनीति संभावनाओं का खेल है, यहां कुछ भी हो सकता है और कभी भी. सवाल उछालने वालों के अपने तर्क हैं. सरेदस्त उनकी बातें सुनने पर लगता है कि सही ही तो कह रहे हैं. असल में टीएस सिंहदेव और सचिन पायलट में कुछ समानताएं हैं. दोनों ही जन्मजात कांग्रेसी हैं. साल 2018 के विधान सभा चुनाव में सिंहदेव छतीसगढ़ में कांग्रेस का चेहरा थे. राजस्थान में सचिन चेहरा थे. चुनाव में दोनों ही के समर्थकों का दावा था कि सरकार बनने की सूरत में उनके नेता का सीएम बनना तय है. पर, असल समय पर दोनों की ही बाजी पलट गयी. टीएस सिंह देव को कई विभागों का मंत्री बनाकर कांग्रेस ने उनके कद को बरकरार रखने की कोशिश की तो राजस्थान में सचिन पायलट डिप्टी सीएम बन गए. कुछ ही दिन बाद दोनों ही लोगों की अपने-अपने सीएम की अनबन की खबरें आम हो गईं. बाद में सचिन की डिप्टी सीएम कुर्सी चली गयी. तभी से उनके सुर गहलोत के खिलाफ बगावती बने हुए हैं.
सिंहदेव की ताकत से वाकिफ है पार्टी
सिंहदेव ने भी समय के साथ अपने कुछ विभाग छोड़ दिए. दोनों ही नेता सीएम से अनबन की खबरों के बीच पार्टी में बने रहे. दोनों पर ही हाईकमान का भरोसा बना रहा. सचिन और सिंहदेव को लेकर हाईकमान ने उनके सीएम के साथ बैठकें भी करवाई. संभवतः यह पहला मौका होगा जब कांग्रेस पार्टी ने सिंहदेव के डिप्टी सीएम बनाने की घोषणा की. हालांकि, कांग्रेस में यह आम रहा है लेकिन औपचारिक तौर पर ऐसी घोषणा पहली बार देखी गयी है. इसे चुनावी जीत के टूल के रूप में देखा जा रहा है. चूंकि सिंहदेव की ताकत से पार्टी वाकिफ है, इसलिए यह फैसला अब किया. इससे कई निशाने एक साथ सध गए लेकिन फिलहाल सरकार वापसी का लक्ष्य है. ऐसे में पार्टी कोई चूक नहीं करना चाहती. हर छोटे-छोटे टूल पर भी पार्टी की नजर है. सिंहदेव तो खैर पूरी मशीनरी हैं और लगभग डेढ़ दर्जन सीटें उनके सीधे प्रभाव में हैं.
क्या सचिन पायलट भी बनेंगे उपमुख्यमंत्री?
इसी आधार पर अब राजस्थान में भी सचिन पायलट के बारे में भी चर्चा होने लगी है. इस बात से कांग्रेसी और सचिन पायलट समर्थक भी सहमत हैं कि विधान सभा चुनाव में सचिन अकेले चुनाव में बहुत कुछ हासिल नहीं कर पाएंगे लेकिन कई सीटों पर हराने में तो महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर ही सकते हैं. दूसरा तथ्य यह भी है कि सीएम अशोक गहलोत उनके बारे में कुछ भी कहते रहे हों या सचिन पायलट गहलोत के बारे में सार्वजनिक तौर पर कुछ भी कहते रहे हों लेकिन दोनों ही मामलों में कांग्रेस हाईकमान ने लगभग मौन ही रखा. हाल ही में दोनों के बीच बैठाकर समझौता कराने की कोशिश भी की गयी.
सचिन के तेवर तीखे
हालांकि, उसके बाद भी सचिन के तेवर तीखे ही बने हुए हैं. बावजूद इसके वे पार्टी में बने हुए हैं. यह घटना रेखांकित करती है कि सचिन पार्टी के लिए महत्वपूर्ण हैं और समय आने के साथ ही उनका उपयोग तय कर दिया जाएगा. चर्चा थी कि पिता राजेश पायलट कई पुण्यतिथि पर सचिन नई पार्टी बनाने जा रहे हैं, पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. ऐसे में यह तो तय है कि कांग्रेस आला कमान सचिन कि उपयोगिता पर बहुत कान्फिडेंट है.
हाईकमान के गुड नोट्स में सचिन पायलट
राजस्थान कि राजनीति पर गहरी नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार प्रो राकेश गोस्वामी कहते हैं कि राजनीति में कुछ भी संभव है. किसी भी बात से इनकार नहीं किया जा सकता. यूं भी हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में जीत के बाद कांग्रेस का आत्मविश्वास बढ़ा हुआ है. सचिन पायलट हाईकमान के गुड बुक में हैं. अगर ऐसा न होता तो अब तक कब के बाहर हो गए होते. जिस तरीके से उन्होंने गहलोत के खिलाफ हर तरह का मोर्चा खोला फिर भी पार्टी ने उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की. जबकि कई बार ऐसा लगा कि अब कार्रवाई हुई कि तब हुई. पर हर बार वे बचते रहे. ऐसे में चुनाव के ठीक पहले कोई नई और महत्वपूर्ण जिम्मेदारी कांग्रेस उन्हें दे सकती है.
राजस्थान कांग्रेस को दिखी नई उम्मीद
राजस्थान कांग्रेस को भी एक नई उम्मीद दिखने लगी है. सिंहदेव के फैसले के आम होने के बाद से ही सचिन चर्चा में आ गए. कांग्रेस प्रवक्ता सुरेन्द्र राजपूत कहते हैं कि राजनीति संभावनाओं का खेल है. यहां कुछ भी हो सकता है. अक्सर वह होते हुए देखा गया है, जिसकी लोग कल्पना भी नहीं करते. कांग्रेस पार्टी राजस्थान में फिर से सरकार बनाने को तत्पर है. इस काम में सचिन पायलट महत्वपूर्ण हैं. पार्टी उनके कद के अनुरूप कोई भी जिम्मेदारी दे सकती है. इससे मैं भी इनकार नहीं करता और राजनीति की समझ रखने वाला कोई और भी इनकार नहीं करेगा. चुनाव लड़ने और जीतने के लिए टीम और टीम भावना, दोनों की जरूरत होती है. इस काम में सचिन पायलट माहिर हैं. साल 2018 के चुनाव में उन्होंने इसे साबित किया था. इसलिए मैं तो उम्मीदों से हूं.