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राजस्थान के चुनावी रण में जाट समुदाय के 3 दल, 2 गठबंधन संग, एक अकेले आजमा रहा किस्मत

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अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले इस साल भी कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं. इसमें राजस्थान भी शामिल है. राजस्थान में अशोक गहलोत की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार लगातार दूसरी बार सत्ता में बने रहने की कोशिशों में लगी हुई है. जबकि भारतीय जनता पार्टी की कोशिश राजस्थान में लंबे समय से जारी उस सियासी परंपरा को बनाए रखने की है जिसमें हर 5 साल बाद सरकार बदल जाती है. उत्तर प्रदेश और बिहार की तरह राजस्थान में भी जातीय समीकरण की काफी अहमियत रही है. राजस्थान में अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी सबसे ताकतवर बिरादरी है और इसमें भी जाट समाज का खासा दबदबा है. राज्य में 40 फीसदी ओबीसी में से 12 फीसदी जाट समाज के लोग शामिल हैं और उनकी किसी भी चुनाव में बेहद अहम भूमिका रहती है. राज्य के करीब 50 विधानसभा सीटों पर जाट वोटर्स का जबर्दस्त दबदबा है जबकि कम से कम 20 सीटों पर वे हार-जीत का परिणाम बदलने का माद्दा रखते हैं. यही वजह है कि हर विधानसभा चुनाव में 10 से 15 फीसदी तक विधायक जाट बिरादरी से ही चुनकर सदन पहुंचते हैं.

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जाट समुदाय और 3 अहम दल

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राजस्थान के चुनावी समर में जाट समुदाय के 3 दल अपनी खासी अहमियत रखते हैं जिसमें 2 दल तो गठबंधन के साथ जुड़े हुए हैं जबकि एक अकेले ही अपनी किस्मत आजमा रहा है. जयंत चौधरी की अगुवाई वाली राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) का पहले से ही कांग्रेस के साथ नाता है और वह उसके गठबंधन का हिस्सा है. पार्टी से जुड़े विधायक सुभाष गर्ग मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेहद करीबी माने जाते हैं और राज्य सरकार में मंत्री भी हैं.वहीं हरियाणा में बीजेपी के साथ साझा सरकार में शामिल जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) का यहां भी भगवा पार्टी के साथ नाता बना हुआ है. पार्टी ने अपनी चुनावी समर में उतरने का ऐलान भी कर दिया है. जेजेपी उन सीटों पर चुनाव लड़ने का मूड बना रही है जहां पर बीजेपी कमजोर रही है. जेजेपी के इस कदम से बीजेपी को जाट बहुल क्षेत्र में वोट हासिल करने में खासी सहूलियत होगी.

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अकेले ही हनुमान बेनीवाल की पार्टी

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जेजेपी के अध्यक्ष अजय सिंह चौटाला पहले ही कह चुके हैं कि उनका पार्टी कोटपूतली, नोहर, भादरा, फतेहपुर और लूणकरणसर समेत कई विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी. राजस्थान में एक अन्य जाट दल है राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी), जिसके नेता हैं हनुमान बेनीवाल. बेनीवाल की खासियत यह है कि वे राजस्थान के ही नेता हैं जबकि दोनों अन्य जाट दलों का बेस दूसरे राज्य में है. हालांकि हनुमान बेनीवाल पहले एनडीए के साथ जुड़े हुए थे, लेकिन कृषि कानून के मुद्दों पर मतभेदों की वजह से बीजेपी से अपनी राहें अलग कर ली.अब देखना होगा कि राजस्थान की सियासत में रसूख रखने वाली जाट बिरादरी से कांग्रेस और बीजेपी में से किसको और कितना फायदा मिलता है. फिलहाल अभी से दोनों दल सियासी समीकरण सेट करने में लगे हैं.

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