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अजय राय ने गाजे बाजे और ढोल नगाड़े के बीच गुरुवार को यूपी कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभाल लिया. काशी के पंडितों ने उन्हें हर हर महादेव के नारे के साथ अध्यक्ष की कुर्सी पर बिठाया. लखनऊ में कांग्रेस के पार्टी ऑफिस नेहरू भवन में गंगा आरती भी हुई. बीजेपी और फिर समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ चुके राय पर कांग्रेस को खड़ा करने की ज़िम्मेदारी है. देश के सबसे बड़े राज्य में कांग्रेस अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. पार्टी की हालत अपना दल और सुहेलदेव समाज पार्टी से भी ख़राब है. यूपी की प्रभारी महासचिव प्रियंका गांधी की राय पर अजय राय को अध्यक्ष की कमान मिली है. पर सवाल ये है कि यूपी में पार्टी अब दिल्ली की राय से चलेगी या फिर अजय राय की राय पर. कांग्रेस ने 2012 के विधानसभा चुनाव के बाद पूर्व सांसद निर्मल खत्री को यूपी में पार्टी का अध्यक्ष बनाया था. उससे पहले रीता बहुगुणा जोशी इस पद पर थीं. क्या जोशी की तरह आप भी सड़कों पर उतर कर आंदोलन करेंगे. इस सवाल के जवाब में निर्मल खत्री ने कहा, सोनिया जी और राहुल जी हमारे जन नेता हैं. हमारा काम तो संगठन को बूथ तक मज़बूत करना है. मेरा फ़ंडा एकदम क्लियर है. अब यही चुनौती अजय राय के सामने है. क्या वे जन नेता बनना चाहते हैं या फिर संगठन को खड़ा करना उनकी प्राथमिकता होगी. ये उन्हें सबसे पहले तय करना होगा. अगर उनके मन में कोई कनफ़्यूज़न रहा तो फिर वे पहले के नेताओं की तरह फेल हो सकते हैं. लोकसभा चुनाव उनके सिर पर है. इस बार कांग्रेस यूपी में समाजवादी पार्टी के साथ चुनाव लड़ने की तैयारी में है. हिंदी पट्टी में हर छोटे बड़े राजनैतिक दलों का अपना अपना सामाजिक आधार है. जिसे आप वोट बैंक कह सकते हैं. यूपी बिहार में जाति का फ़ैक्टर बाक़ी सभी कारणों पर भारी पड़ता है.
किस दम पर लड़ेगी कांग्रेस?
आज की तारीख़ में यूपी में कांग्रेस का अपना कोई वोट बैंक नहीं है. अजय राय खुद भूमिहार जाति से आते हैं. संख्या के हिसाब से चुनावों में इस जाति का कोई ख़ास असर नहीं है. तो सवाल ये है कि आख़िर किस सामाजिक समीकरण के दम पर कांग्रेस चुनाव लड़ेगी. उधार के सिंदूर मतलब समाजवादी पार्टी के साथभर से वो चुनाव में अपनी मांग नहीं भर सकती है. अमेठी से चुनाव हारने के बाद से राहुल गांधी ने यूपी छोड़ रखा है. कर्नाटक और हिमाचल चुनाव नतीजों के बाद अलसाए कांग्रेस कार्यकर्ताओं में थोड़ी सी हलचल तो दिख रही है. पर चुनौती उससे बहुत बड़ी है. पिछले हफ़्ते यूपी से कांग्रेस के एक बड़े नेता अपनी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लीकार्जुन खरगे से मिले और कुछ सुझाव दिए. तो उन्हें जवाब मिला कि यूपी के मामले में वे कुछ नहीं कर सकते हैं. फ़ैसला तो राहुल जी और प्रियंका जी को करना है. कहने का मतलब ये है कि अजय राय के पास विकल्प बहुत कम है और समय भी. बस एक राहत की खबर ये है कि बीजेपी विरोधी वोटर कांग्रेस की तरफ़ उम्मीद से देख रहे हैं. पर उन्हें ये भी तो बताना पड़ेगा कि कांग्रेस में जीतने की ललक है और क्षमता भी. अजय राय की छवि अब तक एक ज़मीनी और आक्रामक नेता की रही है. पर उनकी सबसे बड़ी परीक्षा उनके सामने है. यूपी कांग्रेस के नए नवेले अध्यक्ष के रूप में अजय राय की हालत बत्तीस दांतों के बीच जीभ की तरह है. राजनीति में चुनाव लड़ने और लड़ाने की उनको लंबा अनुभव रहा है. 1996 से लेकर 2009 तक वे बीजेपी से जुड़े रहे. वे पहली बार वाराणसी के कोलसला से 1996 में विधायक बने. बीजेपी से वे लगातार तीन बार एमएलए बने. 2009 में वे समाजवादी पार्टी में चले गए और वाराणसी से लोकसभा का चुनाव लड़े. बीजेपी के सीनियर लीडर मुरली मनोहर जोशी से उनकी अनबन हो गई थी. उस लोकसभा चुनाव में जोशी ही बीजेपी से विजयी हुए थे. जब दिग्विजय सिंह यूपी में कांग्रेस के प्रभारी बने तो उन्होंने अजय राय की घरवापसी करा दी. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ वे दो बार लोकसभा का चुनाव लड़ कर हार चुके हैं.