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जोधपुर। राजस्थान उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस मदन गोपाल व्यास ने पति की ओर से प्रस्तुत याचिका को स्वीकार करते हुए यह आदेश दिया कि यदि बच्चे के दोनों संरक्षक एम्पलॉयड है तो बच्चे के भरण-पोषण की जिम्मेदारी भी दोनों को शेयर करनी होगी। पति की ओर से वकील हैदर आगा व सलमान आगा ने दलीले दी और यह तर्क दिया कि इस मामले में नाबालिग बच्चे का पिता सेल्समैन की नौकरी करता है जबकि बच्चे की माता अध्यापिका है और जब बच्चे के दोनों संरक्षक कमा रहे है और दोनों की आर्थिक स्थिति लगभग समान है। ऐसे में बच्चे के भरण-पोषण की जिम्मेदारी का बोझ अकेले पिता पर डाला जाना गलत है।
फैमेली कोर्ट ने 8 हजार गुजारा भत्ता का दिया था आदेश
इस मामले में पारिवारिक न्यायालय संख्या 03, जोधपुर ने उसे 8 हजार रूपये प्रतिमाह अंतरिम गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया जो कि बहुत अधिक है। प्रार्थी के अधिवक्ता ने भरण-पोषण भत्ता कम करने का निवेदन किया।
हाइकोर्ट ने किया 5 हजार किए
हाइकोर्ट ने वकील की दलीलों के बाद अंतरिम गुजारा भत्ते की राशि 8 हजार से घटाकर 5 हजार कर दी और आदेश पत्नी के मुकदमा करने की तारीख से मान्य होगा। दरअसल 43 वर्षीय सेल्समैन विजय शाह और उसकी अध्यापिका पत्नी शिल्पा जैन का फैमेली कोर्ट में चल रहे केस में फैमिली कोर्ट नंबर 3 के जज ने बच्चों व पत्नी के लिए अंतरिम गुजारा भत्ता 8 हजार रुपए देने का आदेश दिया था। जिसे सेल्समैन पति ने हाईकोर्ट में चैलेंज किया था। पति की ओर से दायर याचिका पर हाईकोर्ट ने मंगलवार को फैसला दिया। 2019 में फैमेली कोर्ट में डाइवोर्स केस दायर हुआ। मार्च 2023 में अंतरिम गुजारा भत्ते के आदेश फैमेली कोर्ट ने दिए। अप्रैल 2023 में पति ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई जिस पर सुनवाई के बाद मंगलवार को हाईकोर्ट ने आदेश दिया