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चिड़ावा में दयासिंह का हादसे से पहले एयरफोर्स में चयन हो चुका था और तीन मार्च 2015 को ज्वॉइन करना था दया सिंह उन सभी के लिए प्रेरणास्रोत है जो दिव्यांगता को अपनी कमजोरी मानते हैं

चिड़ावा।संजय दाधीच
  दया सिंह उन सभी के लिए प्रेरणास्रोत है जो दिव्यांगता को अपनी कमजोरी मानते हैं। दया सिंह ने दिव्यांगता को कमजोरी नहीं बल्कि चुनौती के रूप में लिया और कठिन परिश्रम एवं साहस से दयासिंह ने खुद के जीवन की कहानी को ही बदल दिया। हाल ही में दया सिंह ने वेट लिफ्टिंग में राज्य स्तर पर रजत पदक जीता हैं।
ये है दया सिंह की कहानी-
 21 दिसंबर 2014 को श्री जगन्नाथ रथ यात्रा के दौरान एक बिजली का पोल नीचे गिरने वाला था। इसी दौरान दया सिंह की नजर पड़ी तो वो बच्ची को बचाने दौड़ पड़ा। बच्ची तो बच गई लेकिन पोल दया सिंह की पीठ पर आ गिरा। दया सिंह की रीढ़ की हड्डी में गम्भीर चोट आई। परिजनों ने दया सिंह जयपुर एसएमएस, दिल्ली एम्स और अहमदाबाद के अस्पताल में दिखाया, लेकिन सभी जगह से निराशा ही हाथ लगी और डॉक्टरो ने कहा कि अब दयासिंह कभी बैठना तो दूर करवट भी नहीं ले पाएगा। तभी दयासिंह ने यूट्यूब पर एक विडियो देखा, जिसमें पैरा ओलंपिक के बारे में बताया गया। जिसके बाद दयासिंह के जुनून सवार हो गया और पैरा ओलंपिक में कुछ कर गुजरनी की ठानी। शुरूआत 2018 में की और एक साल बाद ही 3 दिसंबर 2019 में चिड़ावा के डालमिया स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स में हुई प्रतियोगिता में ट्राई साइकिल और पॉवर लिफ्टिंग में मेडल हासिल किए। इसके बाद 19 से 21 फरवरी तक जयपुर में आयोजित हुई स्टेट प्रतियोगिता में मेडल हासिल कर जिले एवं कस्बे का नाम रोशन किया।
एयरफोर्स में हुआ था चयन, तीन मार्च को थी ज्वाइनिंग
दयासिंह का हादसे से पहले एयरफोर्स में चयन हो चुका था और तीन मार्च 2015 को ज्वॉइन करना था। लेकिन 21 दिसंबर 2014 में उस हादसे ने दयासिंह के जीवन को बदल दिया। दयासिंह के चयन होने पर जहां परिवार में खुशी का माहौल था और घटना के बाद परिवार के सब सपने बिखर गये थे। लेकिन दया सिंह ने अपनी हिम्मत और हौसलों के बल पर वेट लिफ्टिंग को अपना नया मुकाम बनाया और वे अब इसी में आगे कदम बढ़ा रहे हैं।  दयासिंह के पिता समुन्द्रसिंह प्राईवेट स्कूल में पढ़ाते थे, लेकिन दयासिंह की घटना के बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी। जन सहयोग से ही हवासिंह का इलाज करवाया गया। इस सफलता में मदर फाउण्डेशन, कीवी स्पोर्ट्स और गोरक्षा दल के अभिषेक पारीक व भवानी सिंह राजपुरोहित ने मदद की। फिलहाल सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिल रही है। आंगनबाडी केंद्र कार्यकर्ता के रूप में कार्यरत मां गीता देवी की तनख्वाह से ही घर का खर्चा चल रहा है। सरकार से अभी भी मदद की दरकार है।
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